गणतंत्र दिवस के बहाने

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सतीश सिंह

राष्ट्रध्वज को फहराने का अधिकार नागरिकों के मूलभूत अधिकार और अभिव्यक्ति के अधिकार का ही एक हिस्सा है। यह अधिकार केवल संसद द्वारा ऐसा परितियों में ही बाधित किया जा सकता है जिनका उल्लेख संविधान की कण्डिका 2, अनुच्छेद 19 में किया गया है। खण्डपीठ में साफ तौर पर कहा गया है कि नागरिकों के द्वारा राष्ट्रध्वज का सम्मान किया जाना चाहिए। इसके उचित उपयोग पर कोई बंदिश नहीं है। साथ ही उक्त खण्डपीठ में इस बात पर भी जोर दिया गया कि भारतीय नागरिकों को ध्‍वज संहिता के द्वारा भविष्य में शिक्षित किया जाए। सर्वोच्च न्यायलय के 22 सितंबर, 1995 के निर्णय के अनुसार भी भारत का हर नागरिक राष्ट्रीय ध्वज के घ्वजारोहण के लिए स्वतंत्र है। परन्तु यह देश की विडम्बना ही है कि आज भी हमारे देश के नागरिक अपने अधिकारों से तो अवगत हैं, लेकिन कर्तव्‍यों से जान-बूझकर विमुख।

आजादी के 63 साल बीत जाने के बाद भी अधिकांश भारतीय नागरिकों को न तो राष्ट्रध्वज के बारे में किसी तरह की जानकारी है और न ही उनके मन में है राष्ट्रध्वज के प्रति किसी तरह का सम्मान।

हमारे राष्ट्रध्वज को 22 जुलाई 1947 को संविधान ने स्वीकार किया था और 14 अगस्त, 1947 को संविधान सभा के अर्धरात्रि के अधिवेशन में भारत के महिलाओं के तरफ से श्रीमती हंसीबेन मेहता ने राष्ट्रध्वज को संविधान सभा के अध्यक्ष श्री राजेन्द्र प्रसाद को प्रतीक स्वरुप भेंट किया था। राष्ट्रीय ध्वज को एक निश्चित आकार देने के लिए 23 जून, 1947 में एक अस्थायी समिति का गठन किया गया, जिसके अध्यक्ष बने राजेन्द्र प्रसाद और सदस्य क्रमश: मौलाना अबुल कलाम आजाद, श्री के. एम. पणीकर, सुश्री सरोजिनी नायूड, श्री के. एम. मुंशी, और डॉ बी. आर. अम्बेडकर को बनाया गया।

18 जुलाई, 1947 को हमारे तिरंगा को एक मानक रुप प्रदान किया गया तथा इसे अंतिम स्वीकृति के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरु को अधिकृत किया गया। श्री नेहरु की स्वीकृति के पश्‍चात् 22 जुलाई, 1947 को हमारा राष्ट्रीय ध्वज अपने मूर्त रुप में हमारे समक्ष आया।

ज्ञातव्य है कि राष्ट्रीय ध्वज का केसरिया रंग क्रांति, साहस और बलिदान का प्रतीक है, वहीं सफेद रंग और हरा रंग क्रमश: सत्य व शांति एवं श्रद्धा व शौर्य का प्रतीक है। 24 श्‍लाकाओं वाला गहरा नीला चक्र निरंतर गतिमान समय एवं विकास का प्रतीक है।

जाहिर है राष्ट्रीय ध्वज देश के मान-सम्मान का प्रतीक है। इसका ध्‍वजारोहण हम अपनी मर्जी से नहीं कर सकते हैं। लिहाजा राष्ट्रीय ध्वज से जुड़ी हर जानकारी का होना आम लोगों के लिए अति-आवश्‍यक है। ध्‍वज संहिता में भी इस बात पर बल दिया गया है। बावजूद इसके हालात अभी भी गंभीर है। आम व खास लोगों के सतही व अधकचरे ज्ञान की वजह से अक्सर राष्ट्रध्वज का अपमान होता रहता है। आश्‍चर्यजनक रुप से इसके बावजूद भी उनको अपनी गलती का अहसास कभी नहीं होता है। लिहाजा जरुरत इस बात कि है सभी राष्ट्रीय ध्वज का ध्‍वजारोहण करने से पहले निम्नवत् सावधानियाँ बरतें:-

• नागरिकों को राष्ट्रीय ध्‍वज के आकार का ज्ञान होना चाहिए। सामान्य तौर पर ध्‍वज की लंबाई, चौड़ाई से डेढ़ गुना होती है।

• राष्ट्रीय ध्‍वज साफ-सुथरा तथा कटा-फटा नहीं होना चाहिए।

• राष्ट्रीय ध्‍वज का ऊपरी रंग केसरिया और नीचे का रंग हरा होना चाहिए। मध्य में स्थित अशोक चक्र में 24 श्‍लाकाएँ हैं या नहीं हैं इसका भी ध्यान सभी को रखना चाहिए।

• राष्ट्रीय ध्‍वज को सदैव सम्मानजनक स्थान पर फहराना चाहिए। ऊँचाई इतनी हो कि वह दूर से ही दिखाई दे। ध्‍वजारोहण के समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वह जमीन, दीवार, वृक्ष या मुण्डेर इत्यादि से न सटे।

• राष्ट्रीय ध्‍वज और स्तंभ को माला इत्यादि से विभूषित नहीं करना चाहिए।

• निजी वाहनों पर कदापि राष्ट्रीय ध्‍वज न फहराएँ।

• एक स्तंभ पर राष्ट्रीय ध्‍वज के साथ कभी भी दूसरा ध्‍वज नहीं फहराएँ।

• राष्ट्रीय ध्‍वज का इस्तेमाल कभी भी सजावट की वस्तु की तरह नहीं करें।

• सूर्योदय पर राष्ट्रध्वज फहराएँ तथा सूर्यास्त होने पर सम्मानपूर्वक उसे उतार लें।

• राष्ट्रीय ध्‍वज का मौखिक या लिखित शब्दों या किसी भी प्रकार की गतिविधि के द्वारा उसका अपमान करना राष्ट्रीय प्रतिष्ठा के अपमान निवारण अधिनियम 1971 के अधीन दंडनीय अपराध है।

• बिना केन्द्रीय सरकार की अनुमति के राष्ट्रीय ध्‍वज का प्रयोग करना ‘प्रिवेंशन ऑफ इम्प्रापर यूज’ एक्ट 1950 के तहत अपराध है।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय ध्वज के ध्‍वजारोहण के लिए भी खास दिन निर्धारित हैं। पर इसकी जानकारी भी बहुत कम लोगों को है। अपनी मर्जी से कभी भी राष्ट्रीय ध्वज का ध्‍वजारोहण करके हम उसका अपमान करते रहते हैं। ध्यातव्य है कि राष्ट्रीय ध्वज का ध्‍वजारोहण हम 26 जनवरी और 15 अगस्त के अलावा निम्न अवसरों पर भी कर सकते हैं:-

• बिटिंग-रिट्रीट कार्यक्रम के सम्पन्न होने तक यानि 26 जनवरी से 29 जनवरी तक राष्ट्रीय ध्वज का ध्‍वजारोहण किया जा सकता है।

• जालियावालाँ बाग के शहीदों की स्मृति में मनाये जाने वाले राष्ट्रीय सप्ताह में भी राष्ट्रीय ध्वज को हम फहरा सकते हैं।

• राज्य के स्थापना दिवस समारोह में।

• भारत सरकार द्वारा निर्धारित किए गये राष्ट्रीय उल्लास के दिन भी राष्ट्रीय ध्वज को फहराया जा सकता है।

इसके अलावा राष्ट्रीय ध्वज को फहराते समय और उसको उतारने के दरम्यान या फिर निरीक्षण के समय वहाँ पर उपस्थित सभी लोगों को अपना मुख राष्ट्रीय ध्वज के तरफ रखते हुए सावधान मुद्रा में रहना चाहिए और जब भी ध्वज आपके सामने से गुजरे तो उसका अभिवादन या सम्मान करना चाहिए। ध्यान देने योग्य बात यहाँ पर यह है कि विशिष्ट व्यक्ति बिना शिरोवस्त्र के भी सलामी ले सकते हैं।

राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण का भी एक इतिहास रहा है। शुरु में राष्ट्रीय ध्वज के कपड़े का निर्माण स्वाधीनता सेनानियों के एक समूह के द्वारा उत्तारी कर्नाटक के धारवाड़ जिला के बंगलोर-पूना मार्ग में अवस्थित गरग गाँव में किया जाता था। उल्लेखनीय है कि इसकी स्थापना 1954 में की गई थी। गरग गाँव लंबे समय तक खादी के तिरंगे के निर्माण का केन्द्र बना रहा। अब राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण क्रमश: आर्डिनेंस फैक्टरी, शाहजहाँपुर और खादी ग्रामोद्योग आयोग, दिल्ली में किया जा रहा है। वैसे निजी निर्माता भी राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण कर सकते हैं। लेकिन उन्हें राष्ट्रीय ध्वज के मानकों व मान-सम्मान का पूरा ध्यान रखना चाहिए।

निश्चित रुप से हमारे राष्ट्रीय ध्वज का स्वर्णिम इतिहास है। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान देकर इसके मान-सम्मान की रक्षा की है। राष्ट्रीय ध्वज को सिर्फ एक ध्वज की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। वस्तुत: यह देश की स्वतंत्रता, स्वाभिमान, आकांक्षा तथा आदर्श का प्रतीक है। अगर हम स्वंय इसका सम्मान नहीं करेंगे तो दूसरे देश से क्या अपेक्षा रखेंगे?

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  1. राष्ट्रध्वज को फहराने और राष्ट्रध्वज से सम्बंधित बहुत उत्तम जानकारी श्री सतीश जी ने दी है. धन्यवाद.

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