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वैदिक युग में थे रिवर्स गेयर वाले विमान

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vimaan shastraवैदिक युग में भारत में ऐसे विमान थे जिनमें रिवर्स गियर था यानी वे उलटे भी उड़ सकते थे। इतना ही नहीं, वे दूसरे ग्रहों पर भी जा सकते थे। सच है या नहीं, कौन जाने। अब एक जाना-माना वैज्ञानिक इंडियन साइंस कांग्रेस जैसे प्रतिष्ठित कार्यक्रम में भाषण के दौरान ऐसी बातें कहेगा तो आप क्या कर सकते हैं!
3 जनवरी से मुंबई में इंडियन साइंस कांग्रेस शुरू हो रही है जिसमें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित दो वैज्ञानिकों समेत दुनियाभर के बुद्धिजीवी हिस्सा लेंगे। इन्हीं में एक होंगे कैप्टन आनंद जे बोडास जो मानते हैं कि ‘आधुनिक विज्ञान दरअसल विज्ञान ही नहीं’ है।
मुंबई मिरर अखबार को बोडास ने बताया कि जो चीजें आधुनिक विज्ञान को समझ नहीं आतीं, यह उसका अस्तित्व ही नकार देता है। बोडास कहते हैं, ‘वैदिक बल्कि प्राचीन भारतीय परिभाषा के अनुसार विमान एक ऐसा वाहन था, जो वायु में एक देश से दूसरे देश तक, एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक और एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक जा सकता था। उन दिनों विमान विशालकाय होते थे। वे आज के विमानों जैसे एक सीध में चलने वाले नहीं थे, बल्कि दाएं-बाएं और यहां तक कि रिवर्स भी उड़ सकते थे।’
कैप्टन बोडास ‘प्राचीन भारतीय वैमानिकी तकनीक’ विषय पर बोलेंगे। वह केरल में एक पायलट ट्रेनिंग सेंटर के प्रिंसिपल पद से रिटायर हुए हैं। उनके साथ इस विषय पर एक और वक्ता होंगे जो स्वामी विवेकानंद इंटरनेशनल स्कूल में एक लेक्चरर हैं।
कैप्टन बोडास भारतवर्ष में हजारों साल पहले हासिल की गईं जिन तकनीकी उपलब्धियों का दावा करते हैं, उनका स्रोत वह वैमानिका प्रक्रणम नामक एक ग्रंथ को बताते हैं, जो उनके मुताबिक ऋषि भारद्वाज ने लिखा था। वह कहते हैं, ‘इस ग्रंथ में जो 500 दिशा-निर्देश बताए गए थे उनमें से अब 100-200 ही बचे हैं। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बहुत वक्त गुजर गया, फिर विदेशियों ने हम पर राज किया और देश की बहुत सी चीजें चुरा ली गईं।’

वह कहती हैं, ‘ऐसा पहली बार हो रहा है जब भारतीय विज्ञान कांग्रेस में एक सत्र में संस्कृत साहित्य के नजरिए से भारतीय विज्ञान को देखने की कोशिश होगी। इस साहित्य में वैमानिकी, विमान बनाने की जानकारी, पायलटों के पहनावे, खाने-पीने और यहां तक कि सात तरह ईंधन की भी बात है। अगर हम इन चीजों के बारे में बोलने के लिए संस्कृत के विद्वानों को बुलाते तो लोग हमें खारिज कर देते लेकिन कैप्टन बोडास और उनके साथी वक्ता अमीय जाधव संस्कृत में एमए के साथ-साथ एमटेक भी कर चुके हैं।’

वैसे, इस भारतीय विज्ञान कांग्रेस में इस विषय पर चर्चा का कई जाने-माने वैज्ञानिक समर्थन कर रहे हैं, जिनमें आईआईटी बेंगलुरु में एयरोस्पेस इंजिनियरिंग के प्रफेसर डॉ. एस. डी. शर्मा भी शामिल हैं।

इंडियन साइंस कांग्रेस में यह विषय इसलिए रखा गया है ताकि ‘संस्कृत साहित्य के नजरिए से भारतीय विज्ञान को देखा जा सके’। इस विषय पर होने वाले कार्यक्रम में संचालक की भूमिका मुंबई यूनिवर्सिटी के संस्कृत विभाग की अध्यक्ष प्रफेसर गौरी माहूलीकर निभाएंगी। वह कैप्टन बोडास की बात को सही ठहराने की कोशिश करती हैं।

4 COMMENTS

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  2. दि ऐसे विषयों की सार्थक चर्चा हो तो कुछ काम की बात निकल सकती है. अन्यथा हमारी आदत है की हर चीज को हमारे ”यहाँ प्रचलित थी”बताने कि. कीमियागरी को भी हम अपनी पुरानी तकनीक बताते हैं मगर ऐसी प्राचीनतम पुरातात्विक धातु कहीं मिली नहीं है. रिवेर्से गियर वाले विमान मैं धातु आवश्यक अवयव रहा ही होगा। इतना ही नहीं मिश्र धातु भी ऐसे विमान मैं लगी होगी,

  3. एक पुराना चुटकुला याद आ रहा है.एक अमेरिकी और एक भारतीय आपस में बहस कर रहे थे और अपने को दूसरे से श्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रयत्न कर रहे थे। बहस के दौरान अमेरिकी बोला कि हमारे यहां जमीन की खुदाई में ताम्बे के तार मिले। भारतीय ने पूछा ,”इसका मतलब?” अमेरिकी बोला,”इसका मतलब हमारे यहां प्राचीन काल से टेलीफोन की व्यवस्था थी..”भरतीय ने जबाब दिया खुदाई तो मेरे यहां भी हुई . थी। “अमेरिकी ने पूछा ,”क्या मिला?” भारतीय बोला ,”कुछ नहीं. ” अमेरिकी ने अगला प्रश्न किया,”इसका मतलब ” “सीधा मतलब है कि हमारे यहां वायरलेस व्यवस्था प्राचीन काल से थी”. यह भारतीय का उत्तर . था
    यह बात भी कुछ इसी से मिलती जुलती लग रही है ,क्योंकि अगर ऐसा कुछ होता तो उसका कुछ अवशेष तो कहीं मिला होता।

  4. उपयोगी एवं महत्व पूर्ण लेख। वैदिक साहित्य में विमान का उल्लेख अनेक स्थानो पर मिलता है जिससे सिद्ध है कि महाभारत काल वा उससे पूर्व हमारे पूर्वज विमानों का प्रयोग करते थे। महर्षि दयानंद जी का मानना था कि प्राचीन उन्नत वैदिक काल में हमारे देश के निर्धन से निर्धन व्यक्ति के पास अपने विमान होते थे। वैदिक साहित्य का अध्ययन करने पर यह बात सत्य प्रतीत होती है। लेख के लिए lekhak महोदय जी को धन्यवाद।

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