बढ़ती महंगाई पर सरकार के खोखले दावे

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डॉ. मयंक चतुर्वेदी

इस देश के आम आदमी ने जिस विश्वास के साथ भारतीय कांग्रेस पार्टी को अपना अमूल्य वोट देकर केन्द्र में कांग्रेस नीत संप्रग सरकार बनाई जब उसे नहीं मालूम था कि भविष्य में कांग्रेस का हाथ गरीब आदमी के साथ नहीं रहने वाला। यह उन लोगों के साथ होगा, जो गरीबों की थाली से उसका निवाला छीनने के प्रयासों में लगे रहते हैं। वास्तव में आज कांग्रेस का हाथ गरीबों के साथ नहीं बल्कि महंगाई की मार से आ�¤ ® जन को मारने वालों के साथ हाथ से हाथ मिलाकर खड़ा हुआ है।

केन्द्र की कांग्रेस नीत संप्रग सरकार भले ही यह दिखाने का प्रयास करे कि देश में उत्तरोत्तर प्रगति हो रही है। हमारी विकास दर निरंतर बढ़ रही है। हम विश्व के तेजी से विकसित होते देश हैं, किंतु सरकार के यह सभी दावे जमीनी धरातल पर खोखले नजर आ रहे हैं। आंकड़ों की बाजीगरी से केन्द्र की संप्रग सरकार कागजों और फाइलों में खुश हो सकती है लेकिन इस सत्य को नहीं नकार सकेगी कि आज देश में बढ़ती महà ��गाई को रोकने के लिए रिजर्व बैंक के सामने मुँह ताकने के अलावा उसके पास अन्य कोई विकल्प नहीं, फिर रिजर्व बैंक की भी अपनी सीमा है, आखिर महंगाई रोकने के लिए किए जाने वाले उपायों में एक सीमा से बाहर तो वह भी नहीं जा सकती। वर्तमान में खाद्य मुद्रास्फीति दर जिस तरह 12.21 प्रतिशत पर जा पहुँची है, उसने रिजर्व बैंक के तमाम प्रयासों पर पानी फेर दिया है। मार्च 2010 से अब तक 13 बार रिजर्व बैंक महंगाई कà �‹ काबू करने के लिए मांग पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी कर चुकी है। इसके अलावा महंगाई को रोकने की दिशा में खाद्य वस्तुओं के निर्यात में पाबंदी तथा घरेलू जिंस बाजार में स्टॉक सीमा जैसे सरकारी प्रयास तथा रिजर्व बैंक द्वारा एक बार फिर रेपोरेट में बढ़ोत्तरी किया जाना महंगाई पर लगाम लगाने के दिशा में असफल सिद्ध हुए हैं।

आज बढ़ती महंगाई को रोकने के लिए प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह से लेकर वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी तथा योजना आयोग के अध्यक्ष सहित सभी सरकारी अर्थशास्त्रियों के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। इससे अधिक और क्या निराशाजनक माना जाये कि अर्थशास्त्रियों से लेस केन्द्र की कांग्रेसनीत संप्रग सरकार बेतहाशा बढ़ते दामों पर सरकारी नियंत्रण नहीं कर पा रही, जिसके कारण दिनों दिन रोजमर्रा में खा ने-पीने की वस्तुओं के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। महंगाई को रोकने के लिए किए जाने वाले उपायों की उपेक्षा और केन्द्र सरकार की उदासीनता का ही यह परिणाम है कि दालें और मोटे अनाज के स्थिर मूल्य भी बाजार में अस्थिर हो गये हैं। खाद्य वस्तुओं में पिछले दिनों जो उछाल आया, उसे रोकने की दिशा में अभी तक केवल सरकारी बयानबाजी ही हो सकी है। यही कारण है कि देश में सब्जियों की व्यापक पैदावार होने के �¤ �ावजूद उनमें 28.89 प्रतिशत वृद्धि हो गई, पिछले 6 माह से खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर उच्च स्तर पर है और सरकार इसे कम करने की दिशा में केवल आश्वासन दे रही है।

वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़े जिन्हें सरकार स्वयं जारी करती है स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि सब्जियों के मूल्य में हुई 28.89 फीसदी वृद्धि के अलावा फलों के दामों में 11.96, दूध की कीमतों में 11.73, प्रोटीन आहार के लिए महत्वपूर्ण अंडा, मीट, मछली जैसी सामग्री में 12.82, दालों में 11.64, ईधन और बिजली की मंहगाई दर 14.50 तथा अनाज में 4.62 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है। खाद्य वस्तुओं ने तो अपने सभी रिकार्ड त�¥ �ड़ ही दिए हैं, बच्चों की पढ़ाई भी महंगाई की मार से नहीं बच सकी हैं। साधारण काफी और पुस्तकों की कीमतों में 25 से लेकर 70 प्रतिशत तक वृद्धि हो गई है। घर बनाने की सामग्री हो या वस्त्र उद्योग सरकार की उदासीनता और बिचौलियों पर अंकुश नहीं लगाने का परिणाम है कि आज प्रत्येक वस्तु आम आदमी की गिरफ्त से बाहर होती जा रही है। जबकि केन्द्र की कांग्रेसनीत संप्रग सरकार अच्छी तरह जानती है कि महंगाई बढऩे के पीछे मूल कारण क्या हैं और उनका निवारण कैसे संभव हैं किन्तु महंगाई को नियंत्रित करने के लिए जो इच्छाशक्ति चाहिए उसका अभाव केन्द्र सरकार के पास स्पष्ट दिखता है। इसलिए तो वह हर बार महंगाई के लिए कभी अंतरराष्ट्रीय कारणों को जिम्मेदार बताती है तो कभी भारतीय जन की तेजी से बढ़ती क्रय शक्ति को कसूरवार ठहरा देती है। पेट्रोल कीमतों में पिछले 17 माह में 11 बार केन्द्र सरकार ने कीमतें बढ़ाई है। यूपीए सरकार दूसरी बार केन्द्र में आने के बाद से प्रति लीटर 29 रूपए तक बढ़ा चुकी है। जिसके कारण रोजमर्रा की हर वस्तु पर इसका बुरा असर पड़ा है और वह पहले से कई गुना अधिक मंहगी हो गई हैं।

आज देश में खाद्य वस्तुओं तथा सम्पूर्ण बाजार पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं, सट्टेबाज, दलाल, बड़े व्यापारी जमाखोरी कर वस्तुओं और अन्य सामग्री के दाम बढ़ा देते हैं। अपनी मर्जी से यह रिटेलर, थोक व्यापारी वस्तुओं की कीमतें तय कर रहे हैं, उन्हें इस बात से कोई लेना-देना नहीं कि आम उपभोक्ता पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। जबकि ऐसी खुली छूट पर अंकुश लगाने के लिए बने तमाम सरकारी विभाग ऐसा होते देखकर भी भ्रष्टाचार की गिरफ्त के कारण आंखे खुली होने के बावजूद अंधे होने का नाटक कर रहे हैं।

यह किसी से छुपा नहीं है कि आज देश में वस्तुओं के भण्डारण एवं वितरण में अनेक खामियां व्याप्त हैं किन्तु केन्द्र सरकार की ओर से इन कमियों को दूर करने के लिए खोखले दावों के अलावा तत्परता से सख्त कदम उठाते हुए इन खामियों को दूर करने के समुचित उपाय नहीं किए जा रहे। इसके कारण रोज करोड़ों टन अनाज, फल और सब्जियां सड़ जाते हैं। जमाखोर भी जानते हैं कि हमारे खिलाफ कोई सख्त कार्रवाही नहीं होने वाली।

ऐसे में प्रश्न यह है कि बाजार में बेकाबू होती इस महंगाई पर यदि केन्द्र सरकार अंकुश नहीं लगा सकती है तब! आखिर गरीब आदमी अपने परिवार के लिए दो-वक्त की दाल-रोटी की व्यवस्था सहजता से कैसे करे। जबकि यह सर्व विदित है कि भारत में श्रम शक्ति का मूल्य विश्व के कई देशों की तुलना में अत्याधिक कम है। वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में भारतीय अर्थव्यवस्था चौथे स्थान पर है, लेकिन प्रतिव्यक्ति आय 133 वें पायदान पर। ऐसे में केन्द्र सरकार को महंगाई पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए शीघ्र कठोर निर्णय लेने की जरूरत है।

अब केवल दावे और वायदों से काम नहीं चलने वाला, कहीं ऐसा न हो कि सरकार की उदासीनता के कारण जनता को विवश होकर सडक़ों पर उतरना पड़ जाये और सरकार को अपना 5 वर्षीय कार्यकाल पूरा होने के पूर्ण ही दिल्ली से विदा होना पड़े।

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मयंक चतुर्वेदी
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

2 COMMENTS

  1. आज़ादी के बाद से ही इस देश में आर्थिक नीतियों में गंभीर खामियां रही हैं.हमारे बाद जो देश आर्थिक प्रगति के रस्ते पर चलना शुरू किये थे उनके लोगों का जीवन स्तर हमारे से कहीं ज्यादा बेहतर है. समाजवाद के नाम पर देश की उत्पादक क्षमता को जंजीरों में बाँध दिया गया. उस समय केवल दो राजनीतिक दल सरकार की नीतियों का विरोध करते थे, भारतीय जन संघ और चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य की स्वतंत्र पार्टी.लेकिन उन दोनों को पूँजी पतियों का दलाल कहा जाता था.भरपूर उत्पादन होने के बावजूद वितरण की खामियों के चलते देश में अनाज तक की नकली कमी बनायीं गयी ताकि कांग्रेस पार्टी को जमाखोरों व मुनाफाखोरों से मोती रकमें चंदे के रूप में मिलती रहें. इमरजेंसी जैसी स्थिति में भी राशन की दुकानों पर चीनी चावल के लिए मारामारी होती थी. खुले बाज़ार में चीनी सात रुपये किलो बिक रही थी. लेकिन इमरजेंसी समाप्त होते ही जनता पार्टी की सरकार आई. मुरारजी देसाई प्रधान मंत्री बने. नीतियों में कुछ बदलाव किये गए और राशन की दुकानों पर ताले लटक गए.चीनी का भाव खुले बाज़ार में घाट कर ढाई रुपये किलो हो गया. न तो चीनी खाने वालों की संख्या घटी,न चीनी मीलों की संख्या बढ़ी, न चीनी विदेश से मंगाई,फिर भी ऐसा हुआ. १९९८ में भाजपा के नेतृत्व में एन दी ऐ की सरकार सत्ता में आई और सभी वस्तुओं की कीमतें छे वर्ष तक स्थिर रही (केवल शरद पवार के षड़यंत्र के कारन नवम्बर १९९८ में प्याज को छोड़कर).कैसे? इमानदारी से सही आर्थिक नीतियां अपनाये जाने के कारन.लेकिन तत्कालीन प्रधान मंत्री नरसिम्हा राव के निर्देश पर आर्थिक उदारीकरण (आंशिक) के द्वारा लाईसेंस, कोटा,परमिट राज से थोड़ी छूट देने वाले अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यु पी ऐ सरकार केवल आर्थिक घोटालों के लिए ही याद की जाएगी. महंगाई इनके भ्रष्टाचार, व अनेतिक आचरण के कारन ही बढ़ रही है. जिसके लिए तरह तरह के बहाने गढ़े जा रहे हैं.२००४ में सोनिया गाँधी ने चुनाव में कहा था की सत्ता में आने के १०० दिन के अन्दर सभी चीजों के दाम कम कर देंगे, लेकिन हुआ उल्टा. कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ की बजाय कांग्रेस का हाथ आम आदमी की गर्दन पर बन गया है. आम आदमी का जीना दूभर हो गया है.हर तरफ एक ही शोर है. और नहीं बस और नहीं.

  2. बहुत अच्छा लिखा है. आपको हार्दिक बढ़ाई. इकबाल हिन्दुस्तानी

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