पत्रकारिता का गिरता स्तर

hindipatrakarita-150x150पत्रकार यानि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ। जब हम या आप पत्रकार शब्द सुनते है तो हमारे मन में जो तस्वीर या छवि सामने उभरती है वो कलम या कैमरा लिए एक ऐसे आदमी की होती है जो अत्यंत तीव्र बुद्धि वाला होता है और उसे हर सही या गलत की समझ होती है। जाहिर सी बात है ऐसे आदमी के लिए हर आदमी के दिल में बहुत इज्जत होती है। और होनी भी क्यूं नहीं चाहिए आखिर वो व्यक्ति जनता का नुमाइंदा जो ठहरा। उसके हर सही या गलत निर्णय पर देश का भविष्य और वर्तमान निर्धारित होता है।

हमारे देश के कुशाग्र बुद्धिजीवियों ने देश का संविधान बनाया जिसमें कानून बनाने की लिए विधानपालिका व उसे चलाने के लिए कार्यपालिका की व्यवस्था थी, यदि इन नियमों की देख-रेख के लिए न्यायपालिका की भी व्यवस्था की गई। समय बीतता गया तो उक्त तीनों उच्च विभाग धीरे-धीरे अपने कार्य से मुख मोड़ने लग पडे। अब सवाल ये पैदा हुआ कि इन्हें इनकी जिम्मेदारियों का अहसास कौन करवाएगा। इस तरह पत्रकार का जन्म हुआ। समय के साथ-साथ समाज के इस मुखिया की शक्तियों में शनै:-शनै: इजाफा होता गया। अमेरिका व भारत जैसे देशों में पत्रकारों को विशिष्ट शक्तियां दी गई ताकि समय पड़ने पर पत्रकार बड़े विशिष्ट व गणमान्य व्यक्तियों व प्रशासन के खिलाफ भी अपनी आवाज उठा सके। पत्रकारों को अंग्रेजी भाषा में मीडिया व मास कम्युनिकेटर कहा जाने लगा। क्योंकि पत्रकार वर्ग सम्पूर्ण जनता का प्रतिनिधित्व करता है, परन्तु शक्तियां बढ़ने पर पत्रकार का भी ईमान डोलने लग पड़ा। आज बहुत कम पत्रकार ऐसे होंगे जो वास्तव में जन-कल्याण को ध्यान में रखते होंगे। कहा जाता है कि आज का श्रोता वर्ग बहुत समझदार है परन्तु ये कथन कितना सच है लेख पढ़ने के बाद आप स्वयं निर्णय लें।

आज यदि हम कोई भी बड़ा समाचार चैनल देखते हैं तो वह मात्र सनसनीखेज खबरें ब्रेकिंग न्यूज के रूप में 24 घंटे दिये जा रहा है और दर्शक वर्ग भी बिना पलक झपकाए, बिना किसी शिकायत के परोसी न्यूज को देखे जा रहा है। खबरें भी ऐसी जिनमें न्यूज फैक्टर ना के बराबर होता है। अभी एक साल पहले बालीवुड के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन ने अपने बेटे अभिषेक की शादी अदाकारा ऐश्वर्य बच्चन से की थी तो सभी चैनल वालों ने एक सप्ताह तक ये समाचार अपने दर्शकों के सामने इस समाचार की सब्जी परोसी, जिसे लोगों ने भी चटकारे ले ले कर खाया। खैर बालीवुड के महानायक होने के कारण यदि इसे समाचारों में शामिल कर भी लिया जाए तो इसको इतना तूल देने की क्या जरुरत थी। ऊपर से मीडिया ध्दारा इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि सिर्फ आप के लिए हम शादी में ना बुलाए जाने के बावजूद ये समाचार कवर कर रहे हैं। उदाहरण तो काफी दिए जा सकते है।

आरुषि मर्डर केस की बात की जाए तो मीडिया ने इस केस को नया मोड़ देने के लिए पहले ही डा0 राजेश तलवार को हत्यारा साबित कर दिया। अंत में हत्यारा कोई और ही निकला। भारतीय दर्शक और पाठक तो मात्र गीली मिटटी की तरह होते है, मीडिया रुपी कारीगर उसे जो रुप देना चाहे दे देता है। मुंबई पर हुए आतंकी हमलों ने मीडिया के स्तर में आई गिरावट को स्पष्टतया लोगों के सामने ला दिया जिसमें एक शीर्ष समाचार चैनल के संपादक द्वारा मात्र अपने चैनल को लोकप्रियता दिलाने के लिए एक पीड़ित व्यक्ति के साथ र्दुव्यवहार किया गया। साथ ही सभी चैनलों ने मुबंई में छिपे आतंकवादियों व घेराव करते सुरक्षा बलों को लाइव दिखाया जिससे आतंकवादी सचेत हो गए। मशहूर टीवी रिर्पोटर बरखा दत्ता ने मना करने के बाबजूद कारगिल युद्ध के समय युद्धक्षेत्र के बीत्र खड़े होकर रिर्पोटिंग की थी। जो बहादुरी का कम मूर्खता का अधिक प्रतीक था, उनकी जान मुश्किल से जाते जातें बचीं। इस बात पर बहुत वाद-विवाद हुआ है कि तो क्या मीडिया को और आजादी देने की बजाय जितनी आजादी उसे प्राप्त है वो भी छीन ली जाए? लेकिन भला तब पत्रकार होने या ना होने का क्या औचित्य रह जाएगा? आखिर एक पत्रकार की सीमाएं क्या होनी चाहिए। इस पर एक समिति का भी गठन किया गया है जिन्होंने मीडिया को कुछ र्निदेश जारी किए थे।

सबसे पहले तो उसे सुरक्षा के क्षेत्र में दखलअंदाजी करने का कोई हक नहीं है। जिन मामलों से देश व इसके निवासियों की सुरक्षा जुड़ी है, उन मामलों को सरेआम नहीं किया जा सकता। दूसरी बात कि मीडिया को खुद अपनी तरफ से, बिना किसी प्रमाण के अपना निर्णय नहीं दे सकती। जिस तरह आरुषि हत्याकांड के समय मीडिया ने किया था और बिना किसी प्रमाण के एक निर्दाष व्यक्ति को हत्यारा साबित कर दिया था उस तरह का आचरण सर्वथा गलत होगा। एक और बात कि मीडिया को अपनी शक्तियों के दुरुपयोग करने की स्वतंत्रता नहीं मिलनी चाहिए। और यदि पत्रकार व्यक्ति ऐसा करता है उसके खिलाफ भी मामला उठाया जाना चाहिए। उमा खुराना मामला सब के सामने है। महज टीआरपी यानि टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट या टेलीविजन रेटिंग पर प्रोग्राम की खातिर इलैक्ट्रानिक मीडिया उलजुलूल खबरों को दिन व रात चलाए जा रखता है। अब उनकी मजबूरी ये है कि उनको चैनल चलाने के लिए स्पांसर चाहिए। और चैनल को स्पांसर व एडवरटीजमैंट तभी मिलेगी जब चैनल लोकप्रिय होगा। लेकिन चैनल को लोकप्रिय बनाने के लिए घटिया रास्ता अपनाने से बेहतर है कि अच्छा व सत्यतापूर्ण बहुत ही समाचार ही दिखाया जाए। समाचार पत्रों के स्तर में भी काफी गिरावट आ चुकी है। पत्रों में स्थानीय खबरों को अधिक महत्व दिया जाने लगा है। समाचार पत्र अष्लीलता को अधिक परोसने लगे हैं। हालांकि सभी न्यूज चैनल व सभी अखबारें ऐसी नहीं है। अभी भी कुछ ऐसे पत्रकार बन्धु, चैनल व अखबारें है जो अपने कर्तव्य को पूरी निष्ठा के साथ निभा रहा है। जो अभी भी पैसे को अधिक तवज्जो ना देकर सत्य को महत्व देते है। निश्चित तौर पर ये लोग बधाई के पात्र हैं। अभी भी मीडिया को जागना होगा लोगों के हक के लिए, लोगों की जागरुकता के लिए। आखिर देश के चतुर्थ स्तंभ होने का इतना हक तो अदा करना ही होगा।

-राजेश कुमार

8 COMMENTS

  1. mene hindi vishesh se snatak kya ahi,, delhi university se.. mene journalism k exams bhi diye hai,,delhi universtiy or jamia millia islamia university se,,,,….Par mai inertview clear nahi kar saki,,,,, ////Kripya meri madad kare or sahi rasta dikhae,,, mujhe kaya karna chahiye abhi

  2. mujhe pata hai,, yaha apse puchna vyartha nahi jaega,, apne comment k liye kaha,,or mene apni samasya samne dal di.. Par ye meri majboori hai,, mujhe sahi margdarshan akarne vala or koi nia mil raha,, kripya suljhae

  3. Dear Jairam,

    Media ke girte star ko dekhte hue hamein ek sudhar ki aur avashya hi prayaas karne chahiye ki jo koi bhi sarvekshan media mein ikattha kiyaa jaata hai usmein shamil hone waalon ki sankhya likhna anivarya karvaana chahiye. Kabhi kabhi to result inke aakalan se vipreet ho jaane per ye uska result dikhaana hi band kar detein hai. Arthaat Kisi bhi Survey ko prarambh karne per survey ka samay aur result ko dikhane ka samay nishchit hona chahiye.

    Ho sake to Nyayalaya ki sharan bhi lee ja sakti hai. Kyonki 10 logon ke SMS survey ko bhi ye log aise dikhaatein hain ki jaise poora desh yahi kaha raha hai.

    Satish Mudgal

  4. Kal ki ek pramukh khabar thi ki pandher ko high court ne bari kar diya jabki koli ki phansi ki saja ko barkarar rakha. Yahoo.com per Jagaran samachaar mein ek khabar banayee gayee ki” Narpishach Bari ”

    Kya yeh sarasar Court of Contempt Nahin Hai. Kya media yeh nahin kaha raha ki court ne ek narpishach ko bari kar diya. Magar kon hai jo inke karyon per kadi nazar rakhe jaisa ki consumer protection
    act ke antergat consumer ke adhikaaron ki raksha hoti hai.

    Satish

  5. Jis per kisi ka ankush nahin hota vo Nirankush kahalata hai. Samaaj mein Nirankush ko sahee nahee maana jata. Ankush arthat karyon per nazar rakhne wala vyakti ya sanstha. Jo uske galat karne per use kuchh kah sake, samajha sake, Aur Rok sake. Magar media per jab bhi kisi tarah ke ankush ki baat aati hai to kaha jaata hai ki media per kon ankush laga sakta hai to is per sarkar apne ko aksham maanti hai. Formality ke liye koi board vagairah bana deti hai jo usi media ke logon se milker banaya gaya hota hai. Kya swayam media apne per koi ankush rakh payega. Kadapi Nahin. Media per Niyantran Ham-Aapko arthat janta ko milker hi lagaana hoga. Yedi ichchh ho to raaste svayam hi nikal aatein hain. Janta mein hi is loktantrik desh ki asli sarvabhaumik satta ka vaas hai.

    Satish
    Media per jab bhi koi

  6. aap ki soach or pratikriyae media ki or sahi hai..ki vastav me hume chothe stabh ki bhumika ko sahi disha dena hai..meri subhkamnaye hai ki aap ise tarah se disha nirdesh dete rahe…

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