प्रकृति के साथ निर्ममता दिखाते शाही फरमान

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देश में कुछ दिनों पहले ऑक्सीजन को लेकर ज़ोरदार हाहाकार और अफ़रा-तफ़री मची हुई थी। इस बीच प्रकृति के बचाव में लिखी यह पंक्तियां एकदम सटीक बैठती हैं, रखेंगे अगर हम ख्याल उनका, तो वो भी हमारा ख्याल रखेंगे; पॉलिथीन की जगह झोला, टिसू पेपर की जगह रुमाल रखेंगे; एक पौधा लगाओ, उसको सम्भालो य़कीनन, वो पर्यावरण को सम्भाल रखेंगे। यह सही है कि आज हम जिस दौर में हैं, यह आधुनिकता से भरा और तकनीक की बुनियाद पर खड़ा है। लेकिन इस आधुनिकता को हम अंधी-आधुनिकता की संज्ञा दें, तो ज्यादा बेहतर रहेगा। आज इस अंधी-आधुनिकता और प्रगतिशील दौर में हमने विकास के नाम पर कुछ पाया है और बहुत कुछ खो दिया है।‌ मौजूदा वक्त में प्रकृति के साथ मानव का कनेक्शन ठीक नहीं बैठ रहा है, जिसका ही परिणाम है कि आज देश और दुनिया बेहद बुरे दौर से गुज़र रही है। आज मानव सभ्यता को कोविड-19 नामक अदृश्य विषाणु ने भीतर तक हिला कर रख दिया है। लेकिन, इसके बावजूद मानव अपनी बेजा हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। आज प्रकृति के साथ होता निर्मम व्यवहार भावी पीढ़ियों के भविष्य को जोखिम में डाल रहा है।‌ कथित प्रगति की राह पकड़ता मानव किस भयावहता की ओर बढ़ रहा है, इसका अंदाजा किसी को नहीं है। लेकिन यह तय है, भविष्य आशंकाओं से भरा रहने वाला है।‌

मौजूदा वक्त में मानव सभ्यता कोरोना‌ के जबरदस्त कहर को झेलते हुए आगे बढ़ रही है। ऐसे में यह उम्मीद की जा रही थी कि मानव सभ्यता कुछ सबक के साथ आगे बढ़ेगी और प्रकृति के साथ किसी भी प्रकार का खिलवाड़ नहीं करेगी।‌ लेकिन, यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि कुछ सीखा सबक जमीनी हकीकत में सामने नहीं आ रहा है।‌ क्योंकि एक फरमान जारी किया गया है, जिसमें मध्यप्रदेश के छतरपुर इलाके में बक्सवाहा जंगल को उजाड़ने की बात कही गई है। इसके अंतर्गत बक्सवाहा जंगल के नीचे दबे लगभग पचास हजार करोड़ के हीरा उत्खनन के लिए दो लाख से भी अधिक पेड़ों को काटे जाने की योजना है।‌ ऐसे ही फरमान देश में हर साल जारी किए जाते रहे हैं। इसका विरोध करने वालों को हमेशा से नजरंदाज किया जाता रहा हैं। वहीं इस बार, देश के पश्चिमी हिस्से का प्रदेश राजस्थान के पश्चिमी जिलों में भारी विरोध इस बात को लेकर सामने आ रहा है कि वहां भारी संख्या में सोलर पॉवर प्लांट स्थापित किए जा रहे हैं। इसके चलते कई लोगों की भूमि छिनी जा रही है और वहां बसे हुए लोगों को बेदखल किया जा रहा है।‌ बता दें कि राजस्थान के पाक सीमा से सटे सरहदी इलाकों में पिछले कुछ वर्षों से सौर ऊर्जा पॉवर प्लांट स्थापित किए जा रहे हैं। इस इलाके को सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए अनुकूल बताया जा रहा है। ऐसे में यहां भारी संख्या में पॉवर प्लांट की स्थापना की जा रही है। पॉवर प्लांट की स्थापना के लिए भूमि पर बसे लोगों से जगह खाली करवाई जा रही है। सरकारी भूमि होने की बात कहकर लोगों से भूमि हड़पने की घटनाएं सामने आई है। शुरुआती समय में सौर ऊर्जा पॉवर प्लांट स्थापित करने वाली कंपनी ने दावा किया कि इससे रोजगार में वृद्धि होगी और स्थानीय युवाओं को रोजगार में प्राथमिकता दी जाएगी। लेकिन ये दावे समय के साथ बदल गये। बता दें कि राजस्थान प्रदेश के सरहदी जिले जैसलमेर में रामगढ़ के निकट स्थापित किए गए सोलर ऊर्जा पॉवर प्लांट में कंपनियों की मनमानी सामने आई है। जहां कंपनी की मनमानी व तानाशाही रवैए से परेशान होकर एक युवक आमरण अनशन पर बैठ गया और इसके बाद उसकी हालत गंभीर बताई जा रही है। ऐसी घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है। बताया जाता है कि कंपनी पक्ष व ग्रामीण पक्ष में इस निर्णय पर सहमति बनी थी कि कंपनी अपने हर काम में वहां निवास करने वाली आबादी को रोजगार के लिए उचित अवसर प्रदान करेगी। लेकिन अब कंपनी अपने निर्णय से मुकर रही है। इस कारण से स्थानीय युवाओं में भारी आक्रोश देखा जा रहा है।

सोलर पॉवर प्लांट स्थापित किए जाने के चलते न केवल स्थानीय लोगों को प्रतिस्थापित किया जा रहा है, बल्कि प्रकृति के साथ बड़े पैमाने पर खिलवाड़ भी सामने आया है। इस इलाके में पाये जाने वाले वन्य जीवों के आवासों को उजाड़ा जा रहा है। वहीं, वनस्पतियों और पेड़-पौधों को काटा जा रहा है। ऐसे स्थल जो कभी मवेशियों के लिए चारागाह भूमि हुआ करते थे, उसे सोलर प्लांट भूमि के रूप में तब्दील किया जा रहा है। वहीं, स्थानीय लोगों की यह भी शिकायतें सामने आ रही है कि बाहरी प्रदेशों से आए वर्कर्स वन्य जीवों को अपना शिकार बना रहे हैं, जो बेहद अफसोसजनक है। ऐसे में, पश्चिमी मरुस्थलीय भूमि में विलुप्तता के कगार पर पहुंच चुके जीवों को बचाना मुश्किल हो गया है। यदि हम पश्चिमी मरुस्थलीय भूमि में रहने वाले जीवों की बात करें, तो यहां ऐसे जीव-जंतुओं की बहुलता है, जिन्हें विचरण के लिए खुले मैदानों की जरूरत होती है। राजस्थान के इस भू-भाग की पहचान थार मरुस्थल के रूप में है। इस भू-भाग में वर्षा बहुत अल्प मात्रा में होती है। इसलिए यहां पेड़-पौधों में कांटेदार छोटे वृक्ष व कंटीली झाड़ियां पाई जाती है। इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के स्तनपायी जीव पाये जाते हैं, जिनमें मरु बिल्ली, हिरण, लोमड़ी, खरगोश, चिंकारा, भेड़िया और नेवला आदि प्रमुख रूप से हैं। इसमें अधिकतर संकटग्रस्त है, ऐसे में इनके आवासों को उजाड़ा जाना बेहद चिंताजनक है। आज देश में पर्यावरण संरक्षण के लिए दिवस मनाया जाता है, लेकिन पर्यावरण का पलीता लगाते शाही फरमानों में कोई कमी नहीं आती। ये शाही फरमान लोगों के अरमानों पर पानी फेरते नजर आ रहे हैं। मेरे प्रकृति प्रेमी मित्र अरुण लाल (शिक्षक) चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं, जब प्रकृति ही नहीं रहेगी तो हम साहित्य कैसे रचेंगे और अपनी संस्कृति का बचाव कैसे करेंगे? उनकी चिंता जायज भी है क्योंकि साहित्य-रचना हमेशा से प्रकृति केन्द्रित रही है। आखिर में, हमें इस बात का ख्याल रहे कि प्राकृतिक संपदाओं का भारी मात्रा में होता दोहन बेहद भारी पड़ने वाला है।

  • अली खान

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