सब जगत ब्राह्मण है

—–विनय कुमार विनायक
मनु-स्मृति है मानव पिता
मनु के आदेश से भृगुऋषि
रचित मानव आचारसंहिता!

जिसमें सब गरल नहीं,
है अमृत वाणी पुनीता,
पढ़ने, सुनने,गुनने की!

ऐसा है मनु का कहना-
शुद्र ही ब्राह्मण होता
ब्राह्मण ही शूद्र होता!
‘शूद्रो ब्राह्मणतामेति
ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम्।‘
(मनु.अ.10/65)

महाभारत शांतिपर्व
का शांतिपाठ कहता–
ब्राह्मण ही शूद्र है!
शूद्र ही ब्राह्मण है!
ब्राह्मण भृगुऋषि का कहना-
पूर्व में सृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने
आत्म तेज युक्त सूर्य-अग्नि के जैसा,
ब्राह्मण-प्रजापतियों का सृजन किया!
‘असृजद् ब्राह्मणानेव
पूर्वे ब्रह्मा प्रजापतीन्।
आत्मतेजो भिनिवृर्ताने
भास्कराग्निसमप्रभान।।‘

फिर तो ब्राह्मणों से ही
ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य-शूद्र का
सृजन होता चला गया!
‘ब्राह्मणा: क्षत्रिया वैश्या:
शूद्राश्च द्विजसत्तम ये
चात्ये- निर्ममे'(म.शा.अ.188)

भृगु ने पुनः कहा था
ब्राह्मणों का रंग श्वेत
क्षत्रियों का रंग लाल
वैश्यजन का रंग पीला
शूद्रों का रंग है काला!
‘ब्राह्मणानां सितो वर्ण:
क्षत्रियाणां तु लोहित:।
वैश्यानां पीतको वर्ण:
शूद्राणामसितस्तथा।।‘

भरद्वाज ने प्रश्न किया था
यदि चारो वर्णों में रंग भेद है
तो सभी वर्णों में सभी रंग है
अस्तु चारो वर्णों में ही
वर्णसंकरता का खेद है!
‘चातुर्वर्ण्यस्य वर्णेन
यदि वर्णो विभिद्यते।
सर्वेषां खलु वर्णानां
दृश्यते वर्णसंकर:।।‘

भृगु ऋषि ने पुनः कहा-
वर्णों में कोई विशेषता नहीं
सब जगत ब्राह्मण ही है
पूर्व में सभी ब्रह्म से उद्भूत
फिर कर्म से हुआ वर्ण भेद!
‘न विशेषोअस्ति वर्णानां
सर्वे ब्राह्ममिदं जगत।
ब्रह्मणा पूर्व सृष्टं हि
कर्मभिर्वर्णतां गतम्।।‘

काम भोग-प्रिय,तीक्ष्ण स्वभाव
क्रोधयुक्त गुस्से में लाल होकर
जिन ब्राह्मणों ने स्वधर्म छोड़ा
वे साहस कर्मा क्षत्रिय हो गए।
‘कामभोग प्रियास्तीक्षणा:
क्रोधना: प्रियसाहसा: ।
त्यक्तस्वधर्मा रक्तांगास्ते
द्विजा क्षत्रतां गता: ।।‘

गोपालन वृत्ति,निर्मल चित्त
कृषि व्यवसाय से प्रीति
जिन ब्राह्मणों ने कर ली
वे पीतवर्णी वैश्य बन गए!
‘गोभ्यो वृत्तिं समास्थाय
पीता: कृष्युपजीविन:।
स्वधर्मान नानुतिष्ठन्ति
ते द्विजा वैश्यतां गता:।।‘

हिंसा, असत्य प्रेमी, लोभी
सभी काले कर्मों में लिप्त
ब्राह्मण ही बन गए शूद्र!
‘हिंसानृतप्रिया लुब्धा:
सर्वकर्मोपजीविन: ।
कृष्णा: शौचपरिभ्रष्टास्ते
द्विजा: शुद्रतागता:।।‘

अस्तु ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य,
शूद्र अलग वर्ण होता नहीं,
कर्म भेद से अलग होता है,
यानि जन्मत: भेद है नही,
सत्कर्म से नियति बदलती!

ऐसे हैं बहुत उदाहरण
कर्म से वर्ण जाति के
बदलने की, शक, मग
पहलव,कुषाण, हूण है
विदेशी जाति का खून
बना ये हिन्दू राजपूत!

ईरानी पारसी आर्यजन
मनुपुत्र नरिष्यंत वंशी
शक है चतुष्वर्णी मग,
मशक,मानस, मंदग ये
मगध आ भारत बसे
ढलकर चारो वर्णों में!

मग सूर्य वंशी सूर्य पूजक
जादूगरी; मैजिक मग से
निसृत,अथर्ववेदी मगों की
मगध बिहार है आदिभूमि
अथर्ववेद की प्रसवस्थली!

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