वेब सीरीज से सनातन हिन्‍दू व्‍यवस्‍था ”आश्रम” पर प्रहार

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डॉ. मयंक चतुर्वेदी

हिन्‍दू सनातन धर्म में ”आश्रम” वह अरण्‍य संस्‍कृति से उपजी व्‍यवस्‍था है, जिसमें भारत की अति प्राचीन संस्‍कृति के बीज बोए गए और जहां से वेद, उपनिषद, पुराण, निरुक्‍त, छंद, व्‍याकरण, तत्‍व, ज्ञान और मूल मीमींसा, ज्‍योतिष, प्राचीन विज्ञान धाराओं से लेकर अधिकांश अब तक के हुए अविष्‍कार, सनातन धर्म के वैश्‍विक शांति सूत्रों की खोज और उनकी स्‍थापना की गई है।  किंतु दुर्भाग्‍य है कि इस प्राचीनतन और अधुनातन संस्‍कृति पर हर तरफ से योजनाबद्ध घात-प्रतिघात जारी हैं।

आधुनिक दौर के इस समय में जहां बहुत कुछ बदला है वहीं, यदि कुछ नहीं बदला तो वह सनातन हिन्‍दू संस्‍कृति पर नए-नए प्रहार किस तरह से किए जा सकते हैं, उसकी योजना एवं षड्यंत्र । आज संचार के शस्‍त्र प्रभावी हैं,  इसके प्रयोग से कैसे हिन्‍दू सनातन संस्‍कृति को माननेवालों के मन में उनकी सांस्‍कृतिक पुरासंपदा और सिद्धान्‍तों के प्रति विष भरा जा सकता है इस दिशा में किए जा रहे प्रयास हर तरफ दिखाई दे रहे हैं।

कल्‍पना कीजिए, जब आप किसी घर के बारे में सोचते हैं तो सबसे पहले उसमें रहनेवाले परिवार का सजीव दृष्‍य मन में उपजता है, छोटे-छोटे बच्‍चे, माता-पिता, दादा-दादी, बुआ, चाची, भाई-बहन, ताऊ, आंगन, पूजा स्‍थल इत्‍यादि एकदम छाया रूप में हमारे सामने जैसे साक्षात प्रकट हो जाते हैं । वस्‍तुत: इसी तरह मंदिर के विचार से स्‍वभाविक है उस मंदिर के देवता, आरती, गीत और पुजारी के साथ तमाम मंदिर से जुड़ी अच्‍छी बातें विचारों में आती हैं। ऐसे ही सनातन काल से चली आ रही ‘आश्रम’ व्‍यवस्‍था है, जिसके विचार मात्र से ही विद्यार्थी, संत, मुनी, महात्‍मा, सत्‍संग, पूजा, जप, नियम, आसन का ध्‍यान सहज रूप से आता है। लेकिन जब इस ”आश्रम व्‍यवस्‍था” को दृष्‍यों के माध्‍यम से मनोरंजन की आड़ में खण्‍डित करने का प्रयास किया जाए तो निश्‍चित ही हिन्‍दू समाज को उसका प्रतिकार बड़े स्‍तर पर करना चाहिए।

आश्रम भारतीय सनातन समाजिक व्‍यवस्‍था की वह कड़ी है, जिसके अनुपालन से मनुष्‍य जन्‍म से आरंभ हुए कर्मों को मृत्‍यु पर्यन्‍त किए जाने के पश्‍चात अंत में मोक्ष को प्राप्‍त करता है। आश्रम शब्द संस्‍कृ‍त की श्रम धातु से निकला है जिसका अर्थ होता है प्रयत्न या परिश्रम। अमरकोश में ‘आश्रम’ शब्द की व्याख्या इस प्रकार से दी गई, आश्राम्यन्त्यत्र। अनेन वा। श्रमु तपसि। घां। यद्वा आ समंताछ्रमोऽत्र। स्वधर्मसाधनक्लेशात्‌।

अर्थात्‌ आश्रम जीवन की वह स्थिति है, जिसमें कर्तव्यपालन के लिए पूर्ण परिश्रम किया जाए। आश्रम का अर्थ ‘अवस्थाविशेष’,  ‘विश्राम का स्थान’, ‘ऋषिमुनियों के रहने का पवित्र स्थान’ इस अर्थ में लिया गया है। इस प्रकार ‘आश्रम’ मनुष्य जीवन यात्रा का वह पड़ाव या विश्राम स्थल है, जहाँ मनुष्य धर्मानुसार एक सामाजिक दायित्व (आश्रम) को पूर्ण कर अगले आश्रम की तैयारी करता है और धीरे-धीरे अपने जीवन के अन्तिम लक्ष्य मोक्ष की ओर बढ़ता है। इसीलिए महाभारत के शान्तिपर्व में लिखा गया कि ‘आश्रम’ ब्रह्मलोक तक पहुचनें के मार्ग की चार सीढि़यां हैं।

संपूर्ण जीवन के यह चार आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ्य, वानप्रस्थ और संन्यास हैं । वैदिक व्यवस्था इन चार आश्रमों के लिए मनुष्य की आयु 100 वर्ष निर्धारित करती है । जिसमें कि प्रत्येक आश्रम की अवधि 25 वर्ष है। ऋषियों ने मनुष्य जीवन के प्रथम 25 वर्ष ब्रह्मचर्य, द्वितीय 25 वर्ष की आयु अर्थात् 50 वर्ष तक गृहस्थ, तीसरे 25 वर्ष वानप्रस्थ तथा अन्तिम 25 वर्ष सन्यास आश्रम में जीवन जीने के लिए कहा है । संपूर्ण आश्रमधर्म की प्रतिष्ठा और उनके क्रम की अनिवार्यता सनातन धर्म में किस तरह से स्‍व संचालित थी, वह मनु के इस सिद्धांत ‘आश्रमात्‌ आश्रमं गच्छेत्‌’ अर्थात्‌ एक आश्रम से दूसरे आश्रम में जाना चाहिए के दिए गए निर्देश से भी दिखाई देता है।

छांदोग्य उपनिषद् में गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा ब्रह्मचर्य तीन आश्रमों का उल्लेख हुआ है। आपस्तंब धर्मसूत्र के अनुसार गृहस्‍थ, आचार्यकुल यानी ब्रह्मचर्य, मौन और वानप्रस्थ चार आश्रम थे। गौतम धर्मसूत्र  में ब्रह्मचारी, गृहस्थ, भिक्षु और वैराग्‍य चार आश्रम बतलाए गए । वसिष्ठ धर्मसूत्र के अनुसार गृहस्थ, ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ तथा परिव्राजक ये चार आश्रम हैं, तैत्तरीय संहिता, शतपथ ब्राह्मण, एत्तरेय ब्राह्मण, इत्‍यादि अनेक ग्रंथों में आश्रम व्यवस्था के बारे में विस्‍तार से दिया गया है।

इन सभी शास्त्रों में ‘आश्रम’ के संबंध में कई दृष्टिकोण हैं जिनको तीन वर्गों में विभक्त किया गया है। समुच्चय, विकल्प और बाध। समुच्चय का अर्थ है सभी आश्रमों का समुचित समाहार, अर्थात्‌ चारों आश्रमों का क्रमश: और समुचित पालन होना चाहिए। इसके अनुसार गृहस्थाश्रम में अर्थ और काम संबंधी नियमों का पालन उतना ही आवश्यक है जितना ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ एवं संन्यास में धर्म और मोक्ष संबंधी धर्मों का पालन। दूसरे सिद्धांत विकल्प का अर्थ यह है कि ब्रह्मचर्य आश्रम के पश्चात्‌ व्यक्ति को यह विकल्प चुनने की स्वतंत्रता है कि वह गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करे अथवा सीधे संन्यास ग्रहण करे।

इसमें तीसरा वर्ग बाध, उन व्यक्तियों के लिए है जो अपने पूर्वसंस्कारों के कारण सांसारिक कर्मों में आजीवन आसक्त रहते हैं और जिनमें विवेक और वैराग्य का यथा समय उदय नहीं होता। इस आधार पर कह सकते हैं कि सनातन हिन्‍दू व्‍यवस्‍था में सभी की दृष्टि का बराबर से सम्‍मान था। वस्‍तुत:  भारतीय मनीषियों ने मानव जीवन को केवल प्रवाह न मानकर उसको सोद्देश्य माना और उसका ध्येय तथा गंतव्य मोक्ष प्राप्‍ति को निश्चित किया । इसीलिए ही दुनिया के प्राय: सभी विद्वानों को यह स्‍वीकारना पड़ा है कि हिन्‍दू सनातन संस्‍कृति के चार पुरुषार्थ-धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष और चार आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्‍थ, वानप्रस्‍थ और सन्‍यास इसकी सर्वश्रेष्‍ठ सामाजिक रचना व्‍यवस्‍था है।

इस विषय पर डॉयसन (एनसाइक्लोपीडिया ऑफ रेलिजन ऐंड एथिक्स) को भी कहना पड़ा कि मनु तथा अन्य धर्मशास्त्रों में प्रतिपादित आश्रम की प्रस्थापना से व्यवहार का कितना मेल था, यह कहना कठिन है,  किंतु यह स्वीकार करने में हम स्वतंत्र हैं कि हमारे विचार में संसार के मानव इतिहास में अन्यत्र कोई ऐसा (तत्व या संस्था) नहीं है जो इस सिद्धांत की गरिमा की तुलना कर सके।

अब ब‍ताइए यदि कोई इस श्रेष्‍ठ व्‍यवस्‍था को ही ध्‍वस्‍थ करने का कुचक्र रचे, तब क्‍या उसे नहीं समझाना चाहिए? पिछले अनकों वर्षों से भारत में यही तो हो रहा है। जो इस मत के नहीं या जिन्‍हें इसकी समझ नहीं, वे  लगातार प्रचार-मनोरंजन एवं अन्‍य माध्‍यमों का उपयोग कर इस व्‍यवस्‍था पर प्रहार कर रहे हैं। जिसमें कि आश्‍चर्य यह है कि यह सब उस देश में हो रहा है, जहां सबसे अधिक ‘आश्रम’ व्‍यवस्‍था को माननेवाली हिन्‍दू जनसंख्‍या रहती है और उन्‍होंने अपने देश के लिए जो संविधान स्‍वीकार्य किया है वह भी इसकी इजाजत नहीं देता कि आप किसी के धर्म, उसके प्रतीक, आदर्श एवं सिद्धांतों का मखौल उड़ाओ। लेकिन यह क्‍या? कुछ लोग अपने फायदे के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं, जैसे इन दिनों  फ़िल्म निर्देशक प्रकाश झा गए हुए हैं।

वस्‍तुत: उनके द्वारा निर्देशित ”वेब सीरीज आश्रम” इसी प्रकार के कंटेंट से भरी हुई है, जिसे आज कोई भी जागृत सनातनी स्‍वीकार्य नहीं करेगा । वे पूर्व में इस नाम से सिरीज एक और दो रिलीज करने के बाद आश्रम सीजन-3 को रिलीज करने जा रहे हैं। इस सीरीज में बॉबी देओल काशीपुर वाले बाबा निराला की भूमिका में हैं और जो यह बता रहे हैं कि कैसे धर्म ”आश्रम” की आड़ में बाबा ने अपनी काली दुनिया का विस्तार किया है। संपूर्ण सिरीज में वह सब दिखाने का प्रयास हुआ है, जिसका कि हिन्‍दू सनातन व्‍यवस्‍था आश्रम से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। बल्‍कि इन सभी स्‍व कमियों से मुक्‍त होने के लिए ही लोग सदियों से ”आश्रम” की शरण लेते आए हैं।

साधु-संतों की कड़ी प्रतिक्रिया भी इस वेब सिरीज को लेकर अब सामने आ चुकी है। इसमें भोपाल गुफा मंदिर के महंत रामप्रवेश दास महाराज की बातों के दर्द को आज सभी महसूस करें, इसकी आवश्‍यकता अधिक है। वह कह रहे हैं कि सीरीज बनाने वाले कोई धर्मात्मा नहीं है। आश्रम हिंदू संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, जहां सनातन धर्म और संस्कृति की शिक्षा दी जाती है। संत समाज लोकहित के लिए पूर्जा-अर्चना और आराधना करते हैं। आश्रमों में संत का जीवन हमेशा विश्व कल्याण के लिए होता है। प्रकाश झा द्वारा निर्मित वेब सीरीज ‘आश्रम-3’ में सनातन धर्म के विरूद्ध दृश्यों को शामिल किया जा रहा है। इस सीरीज में आश्रम के महत्व को गलत ढंग से दिखाने की कोशिशें की गई हैं। जबकि आश्रम क्या है और उसका क्या महत्व है। यह दुनिया जानती है।

यहां बाबाजी कह तो सच रहे हैं। यह सच है कि कुछ दशक पूर्व से यह देखा जा रहा है कि यहां के तथाकथित बालीवुड के लोग भारतीय परंपराओं, सनातन संस्कृति पर कुठाराघात करने की दृष्टि से फिल्मों में गलत तरीके से साधु-संतों और आश्रमों का बिगड़ा स्वरूप दिखा रहे हैं। ये दूसरे धर्मों को लेकर कुछ नहीं दिखाते, क्योंकि उनसे ऐसे लोगों को मृत्‍यु होने तक का भय होता है। वस्‍तुत: इस संदर्भ में सरकार तय करें कि इस तरह की फिल्में और वेब सीरीज भविष्य में ना बन सकें।  आश्रम वेब सीरीज सनातन धर्म और संस्‍कृति को बदनाम करने का षड्यंत्र तो नजर आ ही रही है, साथ ही यह संविधान के अनुच्छेद 25-28 का हनन भी है । जिसे केंद्र के साथ सभी राज्‍य सरकारों को गंभीरता से लेना चाहिए ।

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