सरदार पटेल, सोनिया और रामदेव

Ramdev-and-soniaडा. वेद प्रताप वैदिक
असहिष्णुता के दो कुरुप चेहरे कल देश के सामने आए। एक मुंबई में और दूसरा दिल्ली में! एक ‘कांग्रेस दर्शन’ नामक पत्रिका के मामले में और दूसरा जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में बाबा रामदेव के विरोध का!
पहले कांग्रेस दर्शन! इस पत्रिका को संजय निरुपम चलाते हैं। वे इस समय मुंबई कांग्रेस के एक जिम्मेदार पदाधिकारी हैं। वे पहले एक प्रखर पत्रकार भी रहे हैं। इस पत्रिका में छपे दो लेखों पर कांग्रेसी नेतागण आग-बबूला हो रहे हैं, जो कि स्वाभाविक है। इस पत्रिका के कार्यकारी संपादक को तुरंत बर्खास्त भी कर दिया गया है लेकिन मैं पूछता हूं कि क्या यह पहले दर्जे की असहिष्णुता नहीं है? यदि इस कांग्रेसी पत्रिका में यह छप गया कि यदि नेहरुजी, सरदार पटेल की सलाह मान लेते तो तिब्बत और कश्मीर की समस्याएं रहती ही नहीं तो इसमें गलत क्या है? और फिर क्या सरदार पटेल कांग्रेस के नेता नहीं थे? लेकिन कांग्रेस पिछले 50 साल से प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गई है। उसमें नेहरुजी, इंदिराजी, राजीवजी और सोनियाजी की समीक्षा करने का भी अधिकार किसी को नहीं है।
इसका नुकसान कांग्रेस पार्टी को ही भुगतना पड़ रहा है। पार्टी में से आंतरिक लोकतंत्र समाप्त हो गया है। अब भाजपा भी उसी के चरण-चिन्हों पर चलने लगी है। यह पूरे भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। इसी का परिणाम है कि सोनिया के बारे में ‘कांग्रेस दर्शन’ में जो छप गया है, उससे कांग्रेसी ज्यादा नाराज़ हैं। यदि सोनिया कभी ‘वेट्रेस’ रही हैं और वे ‘एयर होस्टेस’ बनना चाहती थीं तो इसमें बुराई क्या है? वे नरेंद्र मोदी से तो बेहतर ही रही हैं। वह तो रेल के डिब्बों में चाय बेचते थे लेकिन इस बात पर उन्हे कभी शर्म नहीं आई। यह ठीक है कि किसी पार्टी-पत्रिका में इस तरह के अप्रिय तथ्य किस रुप में छपते हैं, उन पर निगरानी जरुर रखनी चाहिए लेकिन थोड़ा-बहुत बर्दाश्त करने की हिम्मत भी होनी चाहिए।
ऐसा ही मामला जवाहरलाल नेहरु युनिवर्सिटी (जेएनयू) में अभी-अभी सामने आया। उसके संस्कृत विभाग ने एक अंतरराष्ट्रीय वेदांत संगोष्ठी की। उसमें बाबा रामदेव को निमंत्रण दिया। बाबा रामदेव अपनी व्यस्तता के कारण वह निमंत्रण स्वीकार न कर सके लेकिन छात्र संघ की उपाध्यक्षा शहला रशीद रोशा ने प्रदर्शन की धमकी दे दी। रामदेव पर ‘दक्षिणपंथी’ और ‘प्रतिक्रियावादी’ होने के आरोप भी लगाए। शहला को शायद पता नहीं कि देश के लाखों मुसलमान और ईसाई लोग रामदेव के योग और दवा से लाभ उठा रहे हैं। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के कई बड़े नेताओं ने रामदेव को वहां जाकर शिविर लगाने की प्रार्थना की है। दिल्ली के इस्लामिक सेंटर ने उनका अभिनंदन किया था।
बाबा रामदेव पर ‘अल्पसंख्यक विरोधी’ होने का आरोप लगाना अपने अज्ञान नहीं, मूर्खता का प्रदर्शन करना है। जेएनयू की प्रतिष्ठा को धूल में मिलाना है। मैं जेएनयू के पहले बैच का पीएच.डी. हूं। मुझे अपने विश्वविद्यालय पर गर्व है। वह विचारों की स्वतंत्रता के लिए विख्यात है। कोई किसी के खिलाफ प्रदर्शन करे, इसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन किसी को अपने विचार प्रकट करने से रोका जाए, इससे बढ़कर फाशीवाद क्या हो सकता है?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here