गणित समझने मे हमे कभी भी दिक़्कत नहीं होती थी, अवधारणाये(concepts) सब समझ मे आ जाती थीं, बस गणना(calculation) ग़लत हो जाती थीं, जोड़, घटा गुणा भाग मे ग़लतियां होने से अंक कम रह जाते थे।उस ज़माने मे कम्प्यूटर क्या कैलकुलेटर भी नहीं होते थे।साँख्यकी(statistics) मे पाई डायग्राम या बार डायग्राम जैसी मामूली चीज़ों के लियें भी बहुत गणना करनी पड़ती थीं, जबकि आजकल कम्पूयूटर मे आँकड़े डालते ही पाई डायग्राम या बार डायग्राम बन जाते हैं, तुरन्त परिणाम मिल जाते हैं।
ख़ैर, ये तो बहुत पुरानी बाते हैं, अब तो हमारी क्या हमारे बच्चों की पढ़ाई समाप्त हुए भी कई वर्ष हो चुके हैं।आजकल तो हम लेखन से ही जुड़े हैं, पर मुश्किलें जो छात्र जीवन मे थी , अब साहित्य मे भी बरकरार हैं।
कविता तो हम जैसी लिखते हैं आपको मालूम है। एक बार हमारे गुरु समान मित्र ने हमसे कहा कि हम छँद मुक्त तो बहुत लिख चुके हैं, हमे छँदबद्ध काव्य रचना करने की भी कोशिश करनी चाहिये।हमने भी सोचा कि ठीक है, कोशिश कर लेते हैं। कवि महोदय ने हमे दीर्घ और ह्रस्व स्वर पहचानना, मात्रायें गिनना, मात्रिक छँद और वार्णिक छँद का अंतर मेल पर समझा दिया। कुछ सरल छँद के नियम सोदाहरण लिख भेजे। हमने भी गूगल खंगाल कर छँदशास्त्र को पढ़ा और समझा। दोहा, चौपाई, रोला, सोरठा, मक्तक कुण्डलियाँ और अन्य छँदो का गणित समझा।अब जब लिखने बैठे तो हर पंक्ति मे मात्राओं की गणना करते करते, यही भूल जाते कि अगली पंक्ति मे क्या लिखने का सोचा था। भाव मस्तिष्क से फिसलने लगते और हम विषय से भटकने लगते। कविता मे छँद बिठाना बहुत कठिन लग रहा था, हमारे कवि मित्र को हमारे छँदो मे दोष मिल ही जाता था।सारा दिन हम उंगलियों पर मात्रा गिनने पर भी सही छँद नहीं लिख पा रहे थे।
हमे एक और तरीका सूझा, कि पहले अपनी ही शैली मे कविता लिख लेते हैं, फिर शब्दों को तोड़ मरोड़ कर, घटा बढ़ाकर किसी छँद मे बिठा देंगे, पर बहुत कोशिश करने पर भी हम इसमे सफल नहीं हुए ।हम सोचने लगे कि इस युग मे जब पाई डायग्राम और बार डायग्राम के लियें सौफ्टवेयर है, जब जन्म स्थान, तारीख़ और समय डालने से जन्मपत्री बन जाती है, गायक का सुर ताल भी कम्पूटर संभाल कर ठीक कर देता है, आप रोमन मे टाइप करते चलिये कम्प्यूटर स्वतः उसे देवनागरी मे बदल देता है, तो अब तक छँद मुक्त कविता को छँदबद्ध कविता मे बदलने के लियें किसी ने कोई सौफ्टवेयर क्यों नहीं विकसित किया!
आप तो जानती ही हैं कि Google Translation हिन्दी से अन्गेज़ी में अनुवाद करने में कैसे रचना की टाँग तोड़ देता है। अतुकांत को छंदबद्ध करने के साथ भी वैसा ही होगा।
Lekh rochak hai . Ek baat – koee computer 5+4 = 9 ko 10 mein nahin badal saktaa hai .