दुनिया को बचाना है तो बच्चों को बचाइए    

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अनिल पांडेय

इक्कीसवीं सदी में विकास और आधुनिकता के तमाम दावों के बावजूद बच्चे सबसे ज्यादा उपेक्षित हैं। जबकि दुनिया का भविष्य इन्हीं के कंधों पर है। बच्चों के लिए एक ऐसी दुनिया का निर्माण होना चाहिए जहां हर बच्चा आजादी के साथ एक गरिमापूर्ण जीवन जी सके। स्वतंत्र, सुरक्षित, स्वस्थ और शिक्षित होकर बच्चों को अपनी क्षमताओं के भरपूर विकास का अवसर मिल सके। लक्ष्य बहुत बड़ा है और इसे हासिल करने के लिए व्यवस्थागत बदलाव की जरूरत है। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और जानेमाने बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्यार्थी इस दिशा में लगातार प्रयासरत हैं। उनके नेतृत्व में बाल हिंसा के खिलाफ एक वैश्विक आंदोलन उभर रहा है। वे बच्चों के सवाल पर दुनियाभर के राजनीति और सामाज के क्षेत्र के शिखर नेताओं को एकजुट करने में जुटे हुए हैं। लीडर्स एंड लॉरीअट्स सम्मिट फॉर चिल्ड्रेन इसी का नतीजा है। इसकी शुरुआत पिछले साल भारत में हुई थी। ऱाष्ट्रपति भवन में हुए सम्मिट में 21 नोबेल लॉरिअट्स सहित विभिन्न क्षेत्रों के करीब 50 वैश्विक नेताओं ने हिस्सा लिया था। इसी कड़ी में दूसरा सम्मेलन जॉर्डन में हो रहा रहा है। हिंसा ग्रस्त सीरिया से सटे जॉर्डन में बाल हिंसा से प्रभावित बच्चों और खासकर युद्द और गृहयुद्ध की चपेट में आए देशों से पलायन कर रहे बच्चों की दशा पर चर्चा होगी। दुनिया के तमाम देशों और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से इस मसले का हल निकालने और पीड़ित बच्चों के शिक्षा व पुनर्वास के लिए नीतियां बनाने का आग्रह किया जाएगा।

 

हमने सामाजिक, आर्थिक और तकनीकि के क्षेत्र में बहुत तरक्की कर ली है, बावजूद इसके लाखों बच्चे और युवा आज भी किसी न किसी रूप में बंधुआ जैसी हालत में जीने को विवश हैं। इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। बच्चे अपना घर, अपना परिवार खो रहे हैं। तस्करी करके उन्हें बंधक बना लिया जाता है। वे औपचारिक शिक्षा से वंचित रह जाते हैं और नियमित रूप से शारीरिक तथा मानसिक प्रताड़ना झेलने को विवश हो जाते हैं। जो आंकड़े हमारे सामने हैं वे बता रहे हैं कि समाज में नैतिक स्तर पर कितना ह्रास हुआ है? इस समस्या की गंभीरता को भांपकर, इसके निदान के प्रति राजनीतिक इच्छाशक्ति का भी घोर अभाव दिखता है। दुनिया में चार करोड़ से अधिक लोग जिनमें सबसे ज्यादा संख्या बच्चों की है, आधुनिक दासता के चंगुल में फंसे हुए हैं। 15 करोड़ से ज्यादा बच्चे बाल मजदूरी के लिए अभिशप्त हैं। 26 करोड़ से अधिक बच्चे तो प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के अपने मौलिक अधिकार से वंचित रह जाते हैं। हमारे बच्चों के सपने तभी साकार हो सकते हैं, यदि हम दृढ़ संकल्प के साथ इस स्थिति को बदलने के लिए एक रणनीति के तहत मिल-जुलकर प्रयास करें। इस बदलाव के लिए हर हितधारक चाहे वे राजनीतिक दल और नीति निर्माता हों, समाज को प्रभावित करने वाले प्रबुद्धजन हों, विकास क्षेत्र के लोग हों, उद्योग या फिर सिविल सोसायटी के लोग हों, हर एक को इस गंभीर समस्या की जिम्मेदारी लेनी होगी और इसके निदान के लिए ठोस प्रयास करने होंगे।

 

यदि हम यह व्यवस्थागत परिवर्तन नहीं कर पाए, तो हम एक और पीढ़ी को गरीबी और निराशा में धकेल देंगे। बच्चे जिस हिंसा को झेल रहे हैं उसे खत्म करने के लिए वैश्विक करूणा से ओत-प्रोत कुशल और साहसिक नेतृत्व वाला एक आंदोलन खड़ा करना होगा। कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन की पहल पर दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में दिसंबर 2016 में शुरू हुआ लॉरीअट्स एंड लीडर्स सम्मिट फॉर चिल्ड्रेन्स ऐसा ही एक आंदोलन है। नोबेल लॉरीअट्स (नोबेल पुरस्कार विजेता), वर्ल्ड लीडर्स और जानेमाने विचारकों-चिंतकों की अगुवाई में लॉरीअट्स एंड लीडर्स एक ऐसा अभियान है जो बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य और आजादी के उनके अधिकारों से वंचित रखने वाली समस्याओं का ठोस समाधान निकालने की दिशा में प्रयासरत है। यह आंदोलन एक ऐसी सशक्त नैतिक आवाज बनाने के प्रति कटिबद्ध है, जिसकी अनदेखी कोई भी सरकार या अंतर-सरकारी एजेंसी न कर पाए।

दिल्ली के सम्मेलन में कैलाश सत्यार्थी के नेतृत्व में “100 मिलियन फॉर 100 मिलियन” नामक एक वैश्विक कैंपेन की शुऱुआत भी की गई है। इस अभियान का उद्देश्य दुनिया के 10 करोड़ वंचित व उपेक्षित बच्चों के लिए 10 करोड़ ऐसे सक्षम युवाओं को तैयार करना है जो उन्हें हिंसा और बाल मजदूरी के गुलामी के जीवन से निकाल पर शिक्षित और पुनर्वासित करें। यह कैंपेन दुनिया के कई देशों में लांच हो चुका है। इस सम्मेलन का एक महत्वपूर्ण असर यह रहा कि पहली बार बच्चों से जुड़े विषयों मसलन बाल दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग), बाल श्रम आदि को पिछले जी-20 के परिणामों में शामिल किया गया। इस एजेंडा को कई और अंतरऱाष्ट्रीय संस्थाएं आगे बढ़ा रही हैं।

दूसरा लॉरीअट्स एंड लीडर्स सम्मिट फॉर चिल्ड्रेन इस बार 26 और 27 मार्च 2018 को जॉर्डन में आयोजित किया जा रहा है। इसमें भारत के वे चार बच्चे भी शामिल हो रहे हैं, जो कभी बाल मजदूर थे और आज पढ़ लिखकर अपना जीवन संवार रहे हैं। इनमें एक शुभम इंजीनियर बन चुका है। बच्चों के मुद्दे पर आयोजित इस शिखर सम्मेलन में विस्थापन के शिकार बच्चों की संख्या में हो रही बेतहाशा वृद्धि और उससे उपजी समस्याओं पर खासतौर से विमर्श किया जाएगा। इसमें यह मांग भी रखी जाएगी कि इस समस्या को विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी जोर-शोर से उठाया जाए। कैलाश सत्यार्थी कहते हैं, “यह सम्मिट नोबेल लॉरिअट्स और वैश्विक नेताओं को एकमंच पर लाकर बच्चों के मुद्दों और उनकी चुनौतियों पर खुली चर्चा और समाधान के लिए यथार्थवादी रणनीतियां प्रस्तुत करने का एक ठोस और ईमानादार प्रयास है। हम सब इंतजार कर सकते हैं, लेकिन हमारे बच्चे अब और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते।”

 

विस्थापन के शिकार बच्चों की चिंताओं पर समर्पित इस वर्ष का लॉरीअट्स एंड लीडर्स सम्मिट फॉर चिल्ड्रेन इस समस्या की गंभीरता को वैश्विक स्तर पर सामने लाने का अद्वितीय अवसर प्रदान करेगा। इस साल दिसंबर में मोरक्को में होने वाला संयुक्त राष्ट्र का सम्मेलन पहली बार खासतौर से विस्थापन की समस्या पर केंद्रित होगा। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र आमसभा का भी सितंबर में सम्मेलन होने वाला है। लॉरीअट्स एंड लीडर्स सम्मिट में इस बात पर जोर दिया जाएगा की ऐसे सभी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बच्चों के पलायन के सवाल को जोर शोर से उठाया जाए।

विश्व मौजूदा दौर में कई संकटों में घिरा है और आबादी का विस्थापन एक बड़ी समस्या बनी हुई है। इस शिखर सम्मेलन के जरिए यह समझने की कोशिश होगी कि विस्थापन और अन्य संकटों का शिकार हो रहे बच्चे आज किन बड़ी चुनौतियों से जूझ रहे हैं? शोषण, तस्करी, दासत्व और दुर्व्यवहार से बच्चों की रक्षा और उन्हें समुचित शिक्षा प्रदान करने जैसे लक्ष्य को प्राथमिकता देकर इसके निवारण की दिशा में क्या कदम अनिवार्य रूप से उठाए जाने चाहिए? इस सम्मेलन में उन रणनीतियों और प्रयासों पर भी चर्चा होगी, जिन्हें पहले आजमाया गया था और जो काफी हद तक सफल भी रहे। इस सम्मेलन में यह पड़ताल होगी कि किस प्रयास को तेज किए जाने की जरूरत है? और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि सरकार, बिजनेस, तकनीक, मीडिया, बुद्धिजीवी, धर्मगुरू और किसी आम व्यक्ति की भी इसमें क्या भूमिका हो सकती है, जिससे हर बच्चा सुरक्षित, स्वतंत्र और शिक्षित हो सके।

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