अखिलेश आर्येन्दु
यह मामने में हमें कोई दिक्कत महसूस नहीं होनी चाहिए कि हम जिस युग में जी रहे हैं वह घोटालों का युग है । इस युग की शुरुआत कब हुई इसके बारे में इतिहासकारों में मतभेद तो हो सकते हैं लेकिन यह कोई नहीं कह सकता कि यह महान युग ‘घोटाले’ का नहीं है। हर युग की अपनी खासियत होती है । इस युग के पैरोकारों को घोटाला साम्राट, घोटाला महाराज, घोटाला भूषण, घोटाला श्री और घोटाला पति जैसे तमाम अलंकारों से विभूषित किया जा सकता है । मसलन, भूमि घोटाला करने वाले महापुरुष को घोटाला श्री, गेम्स घोटाले बाजों को घोटाला भूषण और तेल घोटाले बाज को घोटाला सिंधु से विभूषित किया जा सकता है । जिस तरह से होली पर मूर्खाधिपति, लंठाधिराज और वैसाखनंदन आदि विशेषणों से विभूषित कर होली की महानता को प्रदर्षित करते हैं, कुछ वैसे घोटाले बाजों को भी तमाम तमगों से नवाज सकते हैं । मेरी समझ से अपने इस महान देश में हर कुछ संभव है । असंभव जैसे शब्द इस धरती के नहीं लगते। यह भी आयात किया हुआ लगता है । जब कृषि प्रधान देश में गेंहू, तेल, चावल और चीनी का आयात ताली ठोक के जनहित में किया जा सकता है तो ‘असंभव’ का भी आयात कर लिया गया। और इस असंभव जैसे हताश करने वाले शब्द का इस्तेमाल सरकार और गैरसरकारी स्तरों पर करने की एक परम्परा ही चल पड़ी है । जैसे पुलिस का सुधार असंभव है। देश से गरीब को पूरी तरह से हटा पाना असंभव है इत्यादि। उसी तरह से घोटालों के इस युग में घोटले बाजों को पूरी तरह से सफाया नहीं किया जा सकता है । यानी जिस तरह से हवा हमारी जिंदगी का पर्याय है उसी तरह घोटाला अर्थात् भ्रष्टाचार हमारे जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है । इसलिए इस युग को घोटाला युग से कहना कोई संविधान का सीधा-सीधा उल्लंघन नहीं है। वैसे इस महान देश को ही सोने की चिड़िया कहा जाता रहा है । बात बहुत ही रिसर्च वाली लगती है । जहां सोने की चिड़ियाएं इतनी बड़ी तादाद में हों, वहां घोटालेबाज यानी चिड़ियामार न हों, संभव ही नहीं है । इस लिए घोटाले बाजों का हमें खैरमखदम करना चाहिए। यदि देश को चर्चा में बनाए रखना है, तो ऐसे कार्यों को करने वालों का हौसला अफजाई करना ही चाहिए। वे चाहे राजा जी हों या राडिया जी। सभी इस धरती की संतान हैं । घोटाले के युग की महान धारा के पैरोकार और झंडाबरदार हैं। जो जिस युग का नेता या अभिनेता होता है उस युग की महान धारा को तो आगे बढ़ाएगा ही। अपने देश की तो परम्परा रही है, महानता की। जब भ्रष्टाचार, हरामखोरी और बेईमानी हमारे लिए कोई दिक्कत नहीं पैदा कर रहे हैं तो घोटालों और घोटालेबाजों को हम क्यों बुरा-भला कहते फिरते हैं? क्या यह स्वार्थपूर्ण भावना की अभिव्यक्ति नहीं है?
* लेखक ‘आर्य संदेश’ पत्रिका के संपादक हैं।
बिलकुल सही कह रहे है श्री अखिलेश जी. वाकई आने वाले हजारो सालो तक इससे “घोटालों का युग” कहा जायेगा. यह घोटालो, भ्रष्टाचारो का उच्चतम स्तर है.