मांझी के लिए पोलिटिकल वार्गेनिंग का मौसम

lalu nitishजदयू-राजद गठबंधन-4

रंजीत रंजन सिंह

इधर हम जदयू-राजद गठबंधन की चर्चा कर रहे हैं तो दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की पार्टी ‘हम’ यानी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा भाजपा की गोद में जा बैठी। देखिए, क्या मजेदार कहानी बन रही है बिहार की राजनीति में। जिस समय नीतीश कुमार ने श्री मांझी को सूबे का मुख्यमंत्री बनाया तब सबसे ज्यादा दर्द भाजपा के ही पेट में हुआ। हाय-तौबा मचानेवालों में जदयू के नरेन्द्र सिंह भी शामिल थे, क्योंकि वे भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। लेकिन जैसे ही जदयू ने मांझी को हटाकर नीतीश को फिर से सीएम बनाने का फैसला किया, मांझी के शुभचिंतकों में रातों-रात भाजपा और जदयू नेता नरेन्द्र सिंह, वृषण पटेल, नीतीश मिश्रा और डा. अनिल कुमार शुमार हो गए। तब ही यह साफ हो गया कि जदयू के ‘राम’ आज न कल भाजपा के होंगे।

श्री मांझी को एहसास है कि वे भाजपा की सह पर मीडिया तथा सोशल मीडिया द्वारा गढ़ित महादलित नेता है। वरना अपने इतने लंबे राजनीतिक इतिहास में वे कभी कांग्रेस, कभी राजद और कभी जदयू नेता तो कहलाए, लेकिन कभी दलितों या महादलितों के नेता नहीं कहलाए। जिस नीतीश कुमार के खिलाफ वे पटना से लेकर दिल्ली तक आग उगल रहे हैं, क्या नीतीश के अलावा कोई और नेता उनके नाम का प्रस्ताव मुख्यमंत्री पद के लिए किया था? अभी कुछ दिन पहले मांझी ने राजद से गठबंधन के लिए मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में उन्हें (मांझी को) पेश करने की मांग की थी। अब ‘हम’ और भाजपा के बीच गठबंधन हो गया है तो मांझी बताएं कि क्या भाजपा से भी उन्होंने यही मांग रखी है? अगर हां, तो भाजपा की तरफ से क्या आश्वासन मिला? अगर नही, ंतो क्या वे सिर्फ समाजवादी नेताओं के लिए राजनीतिक कब्र खोदने का जिम्मा ले रखे हैं? खबर के अनुसार मांझी ने भाजपा से 90 सीटों की मांग की थी। राजद-जदयू गठबंधन के बाद अब वे सिर्फ 50 सीटों पर अड़े है, 20 से 25 सीटें मिलने की उम्मीद है। मांझी की भी चाहत सिर्फ इतनी है कि उनके सभी मुख्य नेता किसी भी तरह विधानसभा में पहुंच जाएं, इसके अलावा उन्हें और कोई चिंता नहीं है। मांझी को आगे करके नरेन्द्र सिंह, नीतीश मिश्रा, अनिल कुमार और वृषण पटेल भी अपना गेम खेल रहे हैं। भाजपा-हम में समझौता नहीं होता तो इन नेताओं को विधानसभा पहुंचना मुश्किल हो जाता। इन नेताओं ने ही मांझी को मुगालते में रखा है कि महादलितों के 11 प्रतिशत वोट ‘हम’ को मिलेगा। जबकि जमीनी सच्चाई अभी भी अलग है। महादलित नीतीश से नाराज जरूर हैं लेकिन सौ फीसदी महादलित नाराज हैं, ऐसा नहीं है। उनका एक तबका अभी भी नीतीश के साथ है। काफी संख्या में ऐसे भी मतदाता हैं तो नीतीश से नाराज हैं लेकिन वोट नीतीश को ही देने की बात करते हैं। लेकिन यह राजनीति है, ऐसे ही चलती है। कभी खुद चलती है तो कभी किसी के द्वारा चलाई जाती है। ‘हम’ किसके द्वारा चलाई जा रही है शायद आप भी जान रहे हैं और हम भी। जो पार्टी लोकसभा चुनाव के ठीक बाद ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ के नारे से ठीक से झारखंड नहीं जीत सकी, जिस पार्टी को ‘आप’ ने दिल्ली में तीन से चार नहीं होने दी, वो पार्टी जदयू-भाजपा को हराने के लिए आज ‘हम’ के दर पर है। मांझी यहां भाजपा से सीएम पद तो मांग नहीं सकते, क्यांेकि भाजपा में पहले ही ‘एक अनार-सौ बीमार’ वाली हालत है, लेकिन देखना है वे कितने सीटें लेने में सक्षम होते हैं। मांझी के लिए यह पोलिटिकल वार्गेनिंग का मौसम है, बस देखते रहिए। (जारी

2 COMMENTS

  1. लगता है,रंजीत रंजन सिंह आगे भी कुछ लिखने वाले हैं.पता नहीं वे क्या लिखेंगे? पर मुझे तो लगता है कि जीतन राम मांझी से समझौता करके भाजपा पहले ही हथियार डाल चुकी है. जीतन मांझी भाजपा के लिए केवल एक बोझ साबित होंगे.नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों बिहार की राजनीति के लिए अनभिज्ञ सिद्ध हो रहे हैं.

    • धन्यवाद आर. सिंह जी! मैं आपका आभारी हूँ कि आपको मुझसे आगे भी लिखने की उम्मीद है. मै प्रयास करूंगा कि लिखते रहूं, आपलोगों का आशीर्वाद मिलते रहना चाहिये!

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