दूसरा अभिमन्यु: चन्द्रशेखर ‘आजाद’ नाम पिता ‘स्वाधीन’

—विनय कुमार विनायक
मां जगरानी और पंडित सीताराम का लाला,
बड़ा ही जिगरा, हिम्मतवाला, वीर मतवाला,

वो रोबीला, मूंछोंवाला, छैल छबीला चंदूबाबा,
आजादी का दीवाना, सरदार भगत का साथी,

चन्द्रशेखर ‘आजाद’ नाम पिता का ‘स्वाधीन’
पता मत पूछो उनका, पूछ लो सिर्फ मंजिल,

राजगुरु, बटुकेश्वर दत्त, राम प्रसाद ‘बिस्मिल’
सबके सब आजादी के दीवाने, लोहे के दिल!

भारत के बेटे कुंवारे, मौत मंगेतर थी जिनकी,
रंग गेरुआ सर पे कफनी बांधे, हाथ में संगीन!

वे चले सब सीना ताने, मृत्यु से रास रचाने,
खून से मांग भरके, आजादी की दुल्हन लाने!

दुल्हन तो आई मगर, दुल्हे सब गए छीन,
मां पड़ी उदास, पिता स्वाधीन, दीन, मलीन!

तेईस जुलाई उन्नीस सौ छःमें मध्यप्रदेश के,
झाबुआ के भाबरा गांव का ये बावरा सलोना!

ऐसा था महावीर, ना रोक सका अंग्रेजों का
शमशीर, ना बांध सका, अंग्रेजी लौह जंजीर,

सुनकर उन्नीस सौ उन्नीस के अमृतसर के
जलियांवाला बाग का भीषण खूनी नरसंहार,

इस तेरस वर्षीय बालक ने ठाना था मन में,
एक दूसरा अभिमन्यु बन जाने का विचार!

बच्चों की सेना ले कूद पड़े आजादी रण में,
उन्नीस सौ बीस के असहयोग आंदोलन में!

गिरफ्तार हुआ चौदह वर्षीय दूजा अभिमन्यु,
पन्द्रह बेंत मारने की अंग्रेजों ने सजा दे दी!

पहली बेंत की मार से, पीठ की चमड़ी छिली,
हर बेंत पे निकली भारत मां जय की बोली!

कसम खाई थी मन में मिले जीत या मौत,
किया नहीं स्वीकार जीते जी बालक ने हार!

उन्नीस सौ बाईस की चौरा चौरी की घटना से
गांधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लिए

आजाद, भगतसिंह, रामप्रसाद बिस्मिल सरीखे
युवाओं ने गांधी-नेहरू के कांग्रेस को छोड़ दी!

युवा बिस्मिल,सान्याल,योगेश का उन्नीस सौ
चौबीस में हिन्दुस्तान प्रजातांत्रिक संघ बना!

आजाद नौ अगस्त पचीस में हो गए शामिल
काकोरीकांड में, पकड़े गए असफाक-बिस्मिल!

सन सत्ताईस में सरफरोशी की तमन्ना में झूले
बिस्मिल,असफाक,रोशनसिंह, लाहिड़ी फांसी पे!

पर आजाद तो आजाद बाज सा मंडरा जा मिले
सत्तरह दिसंबर अठाईस में भगतसिंह,राजगुरु से!

लाल लाजपत के हत्यारे सैंडर्स को गोली मार,
राजगुरु,भगतसिंह,चन्द्रशेखर आजाद हुए फरार!

आजाद के नेतृत्व में भगतसिंह, बटुकेश्वर ने
उन्नीस सौ उनतीस में एसेंब्ली में बम फोड़े!

भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी को
रोक सके नहीं गांधी-नेहरू,आजाद भी घिर पड़े!

अल्फ्रेड पार्क इलाहाबाद में नाट बाबर ने घेरा,
पड़ा अभिमन्यु को गोरों के चक्रव्यूह का फेरा!

किन्तु टूटे रथ का पहिया नहीं, अबके हाथ में
बंदूक और गोली,,मुख में वंदेमातरम की बोली!

चलती रही तड़-तड़ गोली, बचा अंत में एक ही
कनपटी में गोली मार बलिदान हो गए खुद ही!

सत्ताईस फरवरी उन्नीस सौ इकतीस पुण्यतिथि,
चौबीस वर्षीय मां के रणवांकुरे की ये आपबीती!
—विनय कुमार विनायक
दुमका, झारखण्ड-814101.

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