देखें हैं रंग हजार

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मध्यप्रदेश स्थापना दिवस 1 नवम्बर पर
मनोज कुमार
एक बार फिर मध्यप्रदेश अपनी स्थापना दिवस मनाने की तैयारी में है. पांच साल में एक बार चुनाव आचार संहिता के दायरे में मध्यप्रदेश को अपना जन्मदिन मनाना पड़ता है. इस बार भी मध्यप्रदेश के जन्मदिन पर चुनाव आचार संहिता का कड़ा पहरा है. आयोजन तो होगा लेकिन आदर्श प्रारूप में. हर साल की तरह देश का दिल मध्यप्रदेश दिल से बात जरूर करेगा. 71वें स्थापना दिवस में मध्यप्रदेश जब जब मुडक़र पीछे देखता है तो बरबस वह कहता है-‘देखें हैं मैंने रंग हजार.’ यह कहना वाजिब है. 1956 में जब मध्यप्रदेश का गठन हुआ तो यह अबूझ प्रदेश था. भौगोलिक रूप से, सांस्कृतिक रूप से, भाषाई रूप से लेकिन एक खासियत इस प्रदेश के हिस्से में आयी तो वह यह कि मध्यप्रदेश देश का ह्दयप्रदेश था. उसकी बनावट और बुनावट ऐसी थी कि वह भारत वर्ष की धडक़न बन गया. मध्यप्रदेश की नींव रखने वाले स्वप्रदृष्टा प्रखर स्वतंत्रता सेनानी पंडित रविशंकर शुक्ल को सजाने-संवारने का जिम्मा मिला लेकिन नियती को यह बहुत लम्बा मंजूर नहीं था और वे असमय हमें छोडक़र चले गए. इसके बाद के मध्यप्रदेश के शिल्पकार के रूप में एक के बाद एक अनुभवी और तपस्वी लोगों का साथ मिला. सबने अपने अपने कार्यकाल में मध्यप्रदेश को नई दिशा और दृष्टि देने का भरसक कोशिश की और आज जिस मध्यप्रदेश की हम चर्चा कर रहे हैं, वह सामूहिक प्रयासों का परिणाम है. मध्यप्रदेश को कभी पिछड़ा तो कभी बीमारू प्रदेश कहा गया. भाषा और संस्कृति की अनेकता इस प्रदेश की पहचान थी लेकिन मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व करने वाली भाषा और संस्कृति में एकरूपता नहीं थी. अंचलों के नाम पर मध्यप्रदेश की पहचान थी. उसके हिस्से में शब ए मालवा की महक थी तो छत्तीसगढ़ की गमक. विंध्य के शेर की दहाड़ थी तो महाकोशल संस्कृति की छाप. बुंदेलखंड-बघेलखंड के साथ चंबल की धमक मध्यप्रदेश को गौरवशाली बनाता था. लेकिन उसके भीतर तब भी और छत्तीसगढ़ राज्य बन जाने के बाद भी एक पीड़ा अगर है तो वह उत्तरप्रदेश की तरह, राजस्थान, बिहार, झारंखड, गोवा या केरल की तरह अपनी अलग भाषा और संस्कृति विकसित नहीं कर पाया. यह कर पाना संभव भी नहीं है क्योंकि मध्यप्रदेश की भौगोलिक संरचना इस बात की इजाजत नहीं देता है. इन सबके बावजूद सुकून देने वाली बात है तो यह कि मध्यप्रदेश देश का ह्दय प्रदेश है जो कोई और नहीं. मध्यप्रदेश शांति का टापू कहलाता है जो कोई और नहीं. यह गौरव, यह मान केवल मध्यप्रदेश के खाते में आता है, किसी और प्रदेश के हिस्से में नहीं.
देश का ह्दय प्रदेश होने के कारण इस प्रदेश की सहनशक्ति भी गजब की है. वह हर दुख को, हर गम को अपना बना लेता है. फिर उसके अभिन्न अंग छत्तीसगढ़ को अलग कर नए राज्य के रूप में मान्यता दे दी जाती है तो भी वह उफ नहीं करता है. तिस पर मध्यप्रदेश के विभाजन की तारीख वही एक नवम्बर जिस दिन मध्यप्रदेश की स्थापना हुई थी. छत्तीसगढ़ राज्य बन जाने में मध्यप्रदेश ने कोई विरोध-अवरोध उत्पन्न नहीं किया बल्कि आज 18 साल बाद भी दोनों राज्यों के बीच सौहाद्र्र का वातावरण कायम है. छत्तीसगढ़ के पृथक हो जाने के बाद मध्यप्रदेश की पहचान को धक्का लगा और राजस्व का बड़ा नुकसान भी  हुआ लेकिन हर आघात को झेल लेने का माद्दा मध्यप्रदेश में है सो वह निरंतर प्रगति करता रहा. यह मिसाल उस मध्यप्रदेश की जो देश की धडक़न का प्रदेश है. प्रकृति ने भी इस प्रदेश के लिए सुनियोजित ढंग से जो संरचना की है, वह भी आनंद से अभिभूत कर देती है. जिस अमरकंटक से मां नर्मदा बहकर निकलती है, वह मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ की सीमा को जोड़ती है. मां नर्मदा की जयकारा करते दोनों प्रदेश अपने अपने में प्रसन्न हैं.
अनेकता में एकता की मिसाल बना हुआ है मध्यप्रदेश. कई किस्म की आपदा मध्यप्रदेश के हिस्से में आयी लेकिन संयम इस प्रदेश ने कभी नहीं खोया. साम्प्रदायिक सद्भाव का यह प्रदेश शांति का टापू है. सिंह की गर्जना से थर्राते घने जंगल हैं तो महाकाल का आशीर्वाद मध्यप्रदेश पर है. मां पीताम्बरा, मां शारदीय समेत देवों का आशीष मध्यप्रदेश को मिला हुआ है. जनजातीय कला और संस्कृति से परिपूर्ण मध्यप्रदेश की कलाएं सातों दिशाओं को आलौकित करती है. कलाकेन्द्र भारत भवन अपने आपमें बेमिसाल है. शास्त्रीय संगीत की धुन से मध्यप्रदेश का कोना-कोना मदहोश सा हो जाता है. परम्पराओं को सहेजने वाले मध्यप्रदेश ने अपनी अलग पहचान बनायी है.
राजनीतिक दृष्टि से भी मध्यप्रदेश सम्पन्न रहा है. जिस प्रदेश में सत्तासीन होने वाली कभी जनता पार्टी अपना एक कार्यकाल पूरा नहीं कर पायी, वहीं भाजपा ने लगातार तीन कार्यकाल पूरा कर मध्यप्रदेश के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है. इसके पहले का दस साल का सत्ता में बने रहने का रिकार्ड कांग्रेस के खाते में रहा है. अपने इस पूरे सफर में मध्यप्रदेश ने संविद शासन भी देखा है और अलग अलग कारणों से तीन बार राष्ट्रपति शासन भी मध्यप्रदेश में लागू हुआ. स्थिर सरकारों का कार्यकाल भी देखा और सरकारों को अस्थिर होने का साक्षी भी मध्यप्रदेश बना लेकिन विकास की गति कभी मंद तो कभी तेज बनी रही. आज पलट कर देखते हैं तो गर्व से हमारा सिर ऊपर उठ जाता है कि हमने कितनी प्रगति की है. यह गर्व करने वाली बात है कि हमने दुनिया में सबसे पहले लोकसेवा गारंटी अधिनियम लागू कर तंत्र को जिम्मेदार बनाया. बीमारू प्रदेश का कलंक खत्म हो चुका है क्योंकि हमारे कार्यक्रम, हमारी योजनाएं देश के दूसरे प्रदेशों के लिए नजीर बन चुकी हैं. आज जब हम मध्यप्रदेश की स्थापना दिवस उत्सव मना रहे हैं तो हम गर्व से भरे हैं. मान से भरे हैं. कहना ना होगा..मेरा मध्यप्रदेश.
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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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