सीता की व्यथा

-महेश कुमार शर्मा-
sita

जो अतीत की भूलों से कुछ सीख न ले पाते हैं।
उनके मालिक राम, नहीं किंचित सुख दे पाते हैं।

निर्वासित कर मुझे राम ने, कितना सुख पाया है।
पूछो धोबी से उसने क्यों अपयश लाभ कमाया है।
किन्तु न मैंने रेख लांघकर अवसर अगर दिया होता।
उपजी ही होती क्यों शंका क्या-क्या गया छिपाया है।

जो भविष्य के संकट का अनुमान न कर पाते हैं।
उनके मालिक राम, नहीं किंचित सुख दे पाते हैं।

मर्यादा का अर्थ कौन मुझसे ज्यादा जानेगा।
जान लिया जितना जिसने उतना ही वह मानेगा।

उल्लंघन करने से पहले जो विचार कर पाया।
वह क्षणसुख हित ऐसा दारुण दैन्य नहीं पालेगा।

लक्ष्मण रेखा का महत्व विस्मृत कर जाते हैं।
उनके मालिक राम, नहीं किंचित सुख दे पाते हैं।

रावण घूम रहा है अब तो गली-गली बेखटके।
अंतर्मन सबका पश्चिम की चकाचौंध में भटके।
अपनी गौरव गरिमा का जो ध्यान तनिक भी रखते।
उन्हें नहीं लगते है हरगिज अपसंस्कृति के झटके।

शाश्वत मूल्य त्याग कर जो भौतिकता अपनाते हैं।
उनके मालिक राम, नहीं किंचित सुख दे पाते हैं।

भूल हुई जो मुझसे उसको सदा ध्यान में रखना।
कंचनमृग के लालच में मत वध की अनुनय करना।
बुद्धि भ्रमित होने पर जो हित की बातें समझाए।
उस पर क्रोधित हुए बिना निज सर्वोपरि हित चुनना।

याद रहे जिनके कार्यों से कुल अपयश पाते हैं।
उनके मालिक राम, नहीं किंचित सुख दे पाते हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

12,675 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress