मृत्युंजय दीक्षित
जैसी की संभावना व आशंका व्यक्त की जा रही थी कि संसद का मानसून सत्र हंगामें की भेंट चढ़ जायेगा ठीक वैसा ही हो रहा है। विदेश यात्रा से लौटकर आने के बाद कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी ने कांग्रेस की राजनीति को पटरी पर लाने के लिए मोदी सरकार पर एक के बाद एक झूठे हमले करने शुरू कर दिये और फिर ललित मोदी विवाद पर विदेशमंत्री सुषमा स्वराज फिर उसके बाद मप्र के व्यापम घोटाले पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित राजस्थान की मुख्यमंत्री वसंुधरा राजे के इस्तीफे की मांग पर बेवजह पूरी तरह से अड़ गये हैं। यह केवल और केवल राहुल ब्रिगेड की हठधर्मिता ही है कि वह देश के लोकतंत्र के सबसे बडें मंदिर संसद को नहीं चलने देंगे। कांग्रेस की यह मांग तो यहीं तक नहीं हैं अपितु वह तो चाहती है कि महाराष्ट्र सरकार के दो मंत्री और केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी भी अपने पदों को छोड़ दें। जब से कांग्रेस की एक के बाद एक चुनावो में लगातार पराजय हो रही है और उसे इस संकट से उबरने का कोई उपाय नहीं सूझा तो कांग्रेस ने संसदीय गतिरोध उत्पन्न कर दिया है। यहां पर कांग्रेसाध्यक्ष श्रीमती सोनियागांधी की भी अपनी विवशता है तो इस समय अपने पुत्रमोह में पूरी तरह से जकड़ गयी हैं। श्रीमती गांधी को भी पीएम मोदी से अपना राजनैतिक बदला चुकाना है।
संसद में शोरगुल के बीच अधिकांश कांग्रेसी सांसद यह कहते सुने जा रहे हैं कि मीडिया में व लोकसभा तथा राज्यसभा टी वी कैमरों में विपक्ष के हंगामें व काम को नहीं दिखाया बताया जा रहा है। 2 अगस्त 2015 को तो हालात और दयनीय हो गये जब राज्यसभा में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने मात्र तीन मिनट में अपने बचाव में बयान दिया तो उसके बाद कांग्रेसी सांसदों का हाल देखने लायक था मानो उन्हें सांप सूंघ गया हो। कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने उपसभापति से जोरदार अनुरोध किया कि सुषमा स्वराज का बयान मीडिया में दिखाया जाये। कांग्रेस अभी भी अपनी लोकसभा और विधानसभा चुनावांे में हुई पराजय को नहीं हजम कर पा रही है और वह यह सोच रही है कि वह मोदी सरकार को उसी तरह से गिरा देगी जैसा कि पूर्व में गैरकांग्रेसी सरकारों के साथ धोखा देकर करती आ रही है। मां – बेटे पूरी ताकत के साथ पीएम मोदी की अग्निपरीक्षा ले रहे हैं। कांग्रेसी युवराज समझ रहे हैं कि अपनी गुंडागर्दी के बल पर व संसद को देश के विकास को बंधक बनाकर जनता की वाहवाही लूट लेंगे या फिर जनता को बरगला लेंगे । अभी ऐसा होने में फिलहाल दस साल तक गांधी परिवार को इंतजार करना पड़ेगा। भारत की संसदीय व्यवस्था में फिलहाल कई संवैधानिक रास्ते उपलब्ध हैं जिनके आधार पर सरकार विधेयकों व लम्बित मामलों को हल करती रहती है। कांग्रेस के समक्ष यह बड़ी मजबूरी बन गयी है कि वह देश में विकास के कामों की दुश्मन बन जाये ।
आज पूरे देश मंे इस हंगामे व टकराव के चलते कांग्रेस की छवि बद से बदतर हो रही है। कांग्रेस पार्टी ने पहले भी कोई चुनाव नहीं जीता और अभी आगे भी नहीं जीतने वाली है। बिहार में चाहे कोई जीते या हारे वहां पर कांग्रेस का अपना अस्तित्व अब समाप्त होने जा रहा है। अगले वर्ष बंगाल सहित कई और प्रांतों में चुनाव होने जा रहे हैं जहां पर कांग्रेस की बुरी हालत हैं यहां तक कि कुछ प्रांत उनके हाथ से अभी और जाने वाले हैं। लिहाजा गांधी परिवार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के अंदर और बाहर अपनी परिवारिक छवि को बचाकर रखने की भी आ गयी है। यही कारण है कि आज गांधी परिवार की हठधर्मिता से संसद बंधक बन गयी है और देश की जनता का करोड़ों का नुकसान हो रहा है। कांग्रेस की विपक्ष की विपक्ष की भूमिका बहुत ही अधिक नकारारत्मक और विध्वंसक तथा मूर्खतापूर्ण है। कांग्रेस व अधिकांश विपक्ष को पता है कि पीएम मोदी व कई अन्य मंत्रीगण अच्छे वक्ता हैं यदि संसद का कामकाज चला तो सरकार व पीएम मोदी की छवि में और निखार आता चला जायेगा। तब कांग्रेस मुक्त भारत बनने में अधिक देर नहीं लगेगी। वैसे भी अब जनता को हंगामे व जातिवादी राजनीति पसंद नहीं हैं।
आज जब देश कई प्रकार की आंतरकि व बाहरी समस्याओं से जूझ रहा है तथा कई प्रकार के सामाजिक सरोकार से संम्बधित ज्वलंत प्रश्न उठ खड़े हो रहे हैं उस समय केवल और केवल एक विदेशी मूल की महिला अपने तिरस्कृत व अयोग्य पुत्र को राजनैतिक पुनर्वास कराने के लिए देश की जनता के साथ उसका और पीएम मोदी के विकासरथ का मनोबल तोड़ने का घिनौना षड़यंत्र कर रही है। देश की जनता सब देख रही है सोनिया जी। कांग्रेस का स्तर इतना अधिक गिर चुका है कि वह अब सत्त पाने के लिए याकूब मेनन जैसे आतंकी को फांसी का विरोध करने के लिए दयायाचिका के नाम पर राष्ट्रपति के पास तक पहुंच जाती है। एक प्रकार से वह हर मामले में नकारात्मक रवैया अपना रही है जो उसके भविष्य के लिए ठीक नहीं हैं। आज जब देश में अनुशासन कायम किया जा रहा है तब कांग्रेसियों को लग रहा है कि देश में तानाशाही कायम की जा रही है । लेकिन संभवतः गांधी परिवार यह भूल गया है कि अभी 65 वर्षो तक देश में केवल नेहरू और गांधी खानदान की तानाशाही चली आ रही थी वह अब टूट चुकी है। हर योजना में केवल नेहरू,इंदिरा और राजीव हर विभाग में केवल उनके फोटो। उन्हीं के डाकटिकट। अब यह सब कुछ समाप्त हो रहा है। अब अल्पसंख्यकवाद व चर्च की गतिविधियों को बढ़ावा नहीं दियाजा रहा है अपितु उन पर अंकुश लग गया है। कांग्रेसियों का मुफ्त का खाना पीनाबंद हो गया है कमाई बंद हो गयी है उसी की नाराजगी संसद में हंगामा करके दिखायी जा रही है। आज गांधी परिवार व कांग्रेस के सामन सबसे बड़ा संकट अपना राजनैतिक वजूद बचाना रह गया है इसलिए यह परिवार आज देश की संसद को बंधक बना रहा है। पुत्रमोह में पीड़ित एक विदेशी मूल की महिला जो स्वयं प्रधानमंत्री नहीं बन सकीं और उनका बेटा अयोग्य निकल गया उसी की भड़ास निकालने के लिए यह परिवार इस प्रकार की छुद्र राजनति पर उतर आया है। इस्तीफा मांगना तो महज एक नाटक है इसलिए देश की जनता को लगातार जागते रहने की आवश्यकता है। यह देश अब किसी का गुलाम नहीं रहा सकता ।
मृत्युंजय दीक्षित