‘सेवा’ में करियर…!!

careerतारकेश कुमार ओझा
साइकिल – घड़ी और रेडियोयदि एेसी चीजें सात फेरे लेने जा रहे दुल्हे की खिदमत में पेश की जाती थी, तो आप सोच सकते हैं कि वह जमाना कितना वैकवर्ड रहा होगा। तब की पीढ़ी के लिए करियर का मतलब साइकिल के पीछे लगे उस सहायक उपकरण  से था, जिस पर बैठा कर वह ज्यादा से ज्यादा अपनी पत्नी को सिनेमा दिखाने ले जा सकता था। या फिर इसका इस्तेमाल भतीजे को बिठा कर घर से  स्कूल पहुंचाने या स्कूल से घर लाने में कर सकता था। लेकिन आधुनिकता के साथ बाजारवाद का प्रभाव बढ़ने पर हमें पता चला कि करियर का मतलब कुछ और भी है। उस जमाने की फिल्मी पत्रिकाओं में तब के हीरो – हीरोइनों के अक्सर बयान छपते थे कि … अभी मेरा पूरा ध्यान करियर पर है, फिलहाल शादी का मेरा कोई इरादा नहीं है…। मैं अपने करियर को लेकर इन दिनों काफी सीरियस हूं… दूसरी बातों के लिए मेरे पास समय नहीं है…वगैरह – बगैरह। समय के साथ सामान्य वर्ग के युवा भी करियर बनाने की चिंता में दुबले होने लगे। अपने जैसे लड़कों को करियर की बात करते देख हमें हैरत होती कि यह आखिर क्या बला है। हमने तो कभी इस विषय पर सोचा ही नहीं। अपने राम हमेशा नून – तेल लड़की की मशक्कत में डूबे रहे, और एक के बाद एक पीढ़ियां डाक्टरी से लेकर इंजीनियरिंग में करियर की संभावनाएं तलाशती रही। समय की दौड़ में हमें भान हुआ कि करियर बनाने की दौड़ में हम दुनिया से काफी पिछड़ चुके हैं। फिर इस बात का अहसास भी कि सर्वाधिक आरामदायक करियर जनता की  सेवा के क्षेत्र में है। क्योंकि हर प्रकार के चुनाव के समय हर वर्ग के नामचीन लोगों को जनता से कातर प्रार्थना करते सुनता कि … भगवान का दिया उनके पास सब कुछ है, अब उनकी दिली ख्वाहिश है कि वे चुनाव जीत कर जनता की सेवा करें। इसलिए यह मौका उन्हें दिया जाए…। चमकती – दमकती दुनिया के आउट डेटेट व रिटायर्ड कलाकार ही नहीं बल्कि एेश्वर्य – वैभव का भरपूर सुख भोग रहे कलाकारों को भी जनता के सामने सेवा के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए दया भिक्षा करते देखा । पीढ़ी दर पीढ़ी इस क्षेत्र में दबदबा बनाए रखने वालों का तो कहना ही क्या। मतदाता सूची में नाम दर्ज हुआ नहीं कि पहुंच गए चुनावी अखाड़े में … भाईयों अभी तक मैने आप लोगों की तहे दिल से सेवा की… अब आगे यह काम मेरा फलां करेगा…. बस आप लोग इसे आर्शीवाद दें। सेवा में करियर बनाने की आतुरता दुनिया के दूसरे देशों में भी है। पड़ोसी देश के एक नामी खिलाड़ी को रिटायरमेंट के बाद स्वाभाविक रूप से इस क्षेत्र ने अपनी ओर आकर्षित किया। सो वे इसमें चले भी गए। फिर अचानक उन्हें भान हुआ कि बुढ़ौती में उन्हें फिर शादी कर लेनी चाहिए। इसलिए जनता की अनुमति से उन्होंने फिर घर बसा लिया। इसी देश के एक और नामचीन  पिता की प्रेरणा से जनता की सेवा में जुटे। फिर निजी कारणों से पिता से दो साल की छुट्टी मांग ली। ताकि विदेश में कुछ समय अपने लिए भी जी सके। अपने देश में भी यह सुविधा सिर्फ जनता की सेवा के क्षेत्र में ही है कि आप बगैर किसी को कुछ बताए महीनों विदेश में छुट्टियां बिता लें। तिस पर धमक यह कि जनता की अधिक मनोयोग से सेवा के लिए जरूरी चिंतन – मनन को उन्होंने यह समय विदेश मे बिताया। ताकि और अधिक तत्परता के साथ जनता की सेवा कर सके। करियर के करिश्मे से पूरी तरह से वंचित होकर मेरी अब ईश्वर से यही प्रार्थना है कि कम से कम अगले जन्म में मुझे जनता की एेसी ही सेवा करने का मौका दे।
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तारकेश कुमार ओझा
पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ हिंदी पत्रकारों में तारकेश कुमार ओझा का जन्म 25.09.1968 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में हुआ था। हालांकि पहले नाना और बाद में पिता की रेलवे की नौकरी के सिलसिले में शुरू से वे पश्चिम बंगाल के खड़गपुर शहर मे स्थायी रूप से बसे रहे। साप्ताहिक संडे मेल समेत अन्य समाचार पत्रों में शौकिया लेखन के बाद 1995 में उन्होंने दैनिक विश्वमित्र से पेशेवर पत्रकारिता की शुरूआत की। कोलकाता से प्रकाशित सांध्य हिंदी दैनिक महानगर तथा जमशदेपुर से प्रकाशित चमकता अाईना व प्रभात खबर को अपनी सेवाएं देने के बाद ओझा पिछले 9 सालों से दैनिक जागरण में उप संपादक के तौर पर कार्य कर रहे हैं।

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