शब्दों का कल्पवृक्ष : संस्कृत

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sanskritडॉ. मधुसूदन

प्रवेश: विषय को ध्यान से ही पढने का अनुरोध है। शायद कठिन हो सकता है।
पर बहुत महत्त्वका विषय है।
(एक)
शब्द कल्पवृक्ष
कल्पवृक्ष एक ऐसा वृक्ष माना जाता है; जिस के नीचे खडे हो कर आप जिस वस्तु की कल्पना करें . वह वस्तु यह वृक्ष आपको देता है। ऐसे वृक्ष को , कल्पद्रुम, कल्पतरु, या देवतरु ऐसे नामों से भी जाना जाता है।
हमारी संस्कृत भाषा भी ऐसा कल्पवृक्ष है; पर शब्दों का कल्पवृक्ष। आप को जिस अर्थ का नवीन शब्द चाहिए, बिलकुल वैसा, उसी अर्थका शब्द रचकर देने की क्षमता संस्कृत का यह शब्द कल्पवृक्ष रखता है। संसार की किसी अन्य भाषा में ऐसी क्षमता देखी नहीं है। कुछ मात्रा में होगी; पर संस्कृत इस शब्द रचना-विधि में अतुल्य है।
हमारी ९३ % प्रादेशिक भाषाएँ ७० से ८० प्रतिशत संस्कृत के तत्सम (संस्कृत समान) और तद्‍भव (संस्कृत से निकले हुए) शब्दों से सम्पन्न हैं। और,संस्कृत सुगठित, सुबद्ध शब्द देती है।
जिसका प्रयोग लगभग सारी भाषाएं कर सकती हैं।

(दो)
संस्कृत शब्द रचना
संस्कृत शब्द की रचना में शब्द के अंदर ही अर्थ को ठूँस कर, कसकर भरा होता है; जिससे शब्द अति संक्षिप्त बन जाता है।अंग्रेज़ी में जिसे Compact कहते हैं।
यह शब्द-संक्षेप का गुण अद्‍भुत है। अन्य भाषा में (अंग्रेज़ी में भी) ऐसा गुण दिखा नहीं।

(तीन)
अर्थ दो शब्द लो।
कुछ उदाहरणों से इस विधि की झलक दिखाई जा सकती है।
इस विधि से कई पर्यायवाची शब्द मिल जाते हैं। फिर आप को अपनी रुचिका शब्द चुनने की भी सुविधा होती है। ध्यान रहे; कोई शब्द तुरंत रूढ नहीं होता। उसे रूढ करने की प्रक्रिया भी कुछ समय लेती है। अर्थ आपको देना होता है। शब्द आप के अर्थ को पारदर्शकता से व्यक्त करता है। यह विशेष गुण संस्कृत शब्द का है। और इस पहलू की, छः दशकों की उपेक्षा के कारण, समझमें आने में कुछ कठिनाई हो सकती है।
(चार)
संस्कृत शब्द का लाभ:
संस्कृत शब्द हमारी परम्परा का होने से, उस के प्रयोग से हम भूत और भविष्य काल की हमारी पीढियों से जुडे रह सकते हैं। जिससे अलग अलग (भविष्य और वर्तमान) काल में भी परस्पर विचारों का संप्रेषण सरल हो सकता है। और विशेष, ऐसा शब्द सभी प्रादेशिक भाषाओं में घुल मिल सकता है।
इधर उधर के परदेशी शब्द अंधाधुंध स्वीकारने पर हमें ऐसा पारम्परिक लाभ नहीं होगा।
हम अपने पुरखों ने जो लिखा उसे पढ कर समझना चाहते हैं। आपस में भी परस्पर विचार जानना चाह्ते हैं। और आने वाली पीढियों के लिए भी हमारे अनुभवों की धरोहर छोडना चाहते हैं।
(पाँच)
केल्टिक भाषा का अनुभव
परदेशी शब्दों की अंधाधुंध स्वीकृति हमारी भाषा को केल्टिक भाषा जैसी जटिल बना सकती है। केल्टिक भाषा की ऐसी खिचडी हो चुकी थी, कि, अंतमें आपसी विचार संप्रेषण भी कठिन हो गया।
और भाषा नष्टप्राय हो गई।

(छः)
शब्द रचना शास्त्र
ऐसे लघु आलेख से शब्द रचना के शास्त्र पर प्रभुत्व नहीं पाया जाता। वैसे आचार्य डॉ. रघुवीर और उनके ६९ विद्वान सहायको ने पहले ही दो लाख शब्द रच कर बडा काम कर रखा हैं। उस समय शासन ने उसका लाभ नहीं उठाया; और इतना सक्षम प्रगति का मौलिक काम, राजनीति में उलझ कर रह गया। उनके शब्द कोशके प्रारंभ में शब्द-रचना-विधि का ढाँचा संक्षेप में दिखाकर गए हैं।
२०१२ धातुओं का ज्ञान, कुछ निरुक्त का ज्ञान, २२ उपसर्ग, सैंकडो प्रत्यय और समास का ज्ञान होना इस प्रक्रिया की (Prerequisite) पूर्वावश्यकता है।

(सात)
शब्द रचना के उदाहरण:

(१) Non profit Organisation

अमरिका की, अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति Non profit Organisation के लिए हिन्दी शब्द चाहती थी।किसी ने अलाभकारी संस्था शब्द प्रयोज था। विचार करने पर मेरी ओरसे *लाभ निरपेक्ष शब्द सुझाया गया।

(२) Pump, pumping, और pumping Capacity

पानी बहने के लिए, *वहन* या *जल वहन* होगा। पर बहाने के लिए *वाहन*होता है।
उद से ऊपर की दिशा दर्शायी जाती है। तो उद+ वहन हुआ उद्वहन।
पर पम्प पानी को ऊपर की दिशा में बहाता है। इस लिए pumping के लिए उद्वहन हुआ।
pump के लिए उद्वाहक हुआ। और pumping Capacity के लिए उद्वहन क्षमता शब्द हुआ।
pump=उद्वाहक,
pumping= उद्वहन,
pumping Capacity=उद्वहन क्षमता
(३) Free Of charge
Charge के लिए शुल्क होता है।
निः =बिना। Free of Charge= *निःशुल्क* हुआ।
अब Free of Charge के तीन शब्द हुए, और १२ अक्षर।
पर निःशुल्क मात्र तीन या चार अक्षरों का शब्द पूरा अर्थ व्यक्त करता है।

(४)Income, Expense, और Budget

Income = *आय*
Expense = *व्यय*
Income and Expense के लिए हुआ आय-व्यय
और Budget के लिए फिर होगा *आयव्ययक*

(५) Thermometer

पहले Meter लेते हैं।मिटर मापने का काम करता है।
तो मिटर के लिए बना *मापक*। और थर्म =का अर्थ होता है, उष्णता, उष्मा, ताप,
तो आप उष्णतामापक, उष्मामापक, और तापमापक ऐसे तीन शब्द गढ सकते हैं।
इन सभी में तापमापक सबसे अच्छा दिखता है।

(६) Tragedy
किसे कहते हैं? जिस नाटक का अंत दुःख दायक होता है। उसे Tragedy कहते हैं।
अभी दुःख के लिए शब्द हुआ करुणा, शोक, या दुःख। अंत करनेवाला अंतक होगा।
फिर करुणांतक, शोकान्तक, दुःखांतक नाटक के लिए होगा।
और नाटिका के लिए होगा *शोकान्तिका, करूणान्तिका, या दुःखान्तिका*
ऐसे तीन शब्द अर्थ व्यक्त करते हुए हैं, फिर TragedYको लेने में कौनसा
तर्क?
(७) Computer:

वैसे कम्पुटर क्या करता है? कम्प्युट करता है। अर्थात गणना करता है। तो गणक का अर्थ हुआ गणना करनेवाला। और बडा होने पर संगणक कहा जाएगा।

(आठ)
शब्द कोशकार Monier Williams
शब्द कोशकार Monier Williams ,इंग्लिश-संस्कृत डिक्षनरी की प्रस्तावना में, संस्कृत क्रियापदों के विषय में जो कहते हैं, जानने योग्य है। वे कहते हैं —
======================================================================
===>*१९०० धातुओं का संग्रह, जिस के पास है, और हर धातु पर पांच स्तर के गुणाकार से अनेक क्रिया-वाचक शब्दों की रचना संभव है। इसके अतिरिक्त असंख्य संज्ञाओंसे भी जो सम्पन्न है, ऐसी संस्कृत भाषा के लिए, अंग्रेज़ी की क्रियाओं के समानार्थी शब्द ढूंढनें में न्यूनतम कठिनाई अपेक्षित है।* <==========================================================
अंग्रेज़ी में==>
==>”It might reasonably be imagined that, amongst a collection of 1900 roots, each capable of five -fold multiplication, besides innumerable nominals, there would be little difficulty in finding equivalents for any form of English verb that might present itself.”<==
—-Monier Williams

आलेख बहुत कठिन नहीं लगा ना?

{यह भाग भी सम्मेलन में प्रस्तुति का विस्तारित भाग है।}

13 COMMENTS

  1. (प्रोफ़ेसर राधेश्याम . द्विवेदी, P h D)द्वारा (प्रोफ़ेसर राधेश्याम . द्विवेदी, P h D)द्वारा

    नमस्ते मधुसूदन जी,
    देवनागरी लिपि में उत्तर देना चाहता था, किन्तु वह अभी सम्भव नहीं है, अगली बार प्रयत्न करूंगा।
    आपका लेख अति सुन्दर तो है ही, समीचीन भी है।संस्कृत शब्द रचना बेजोड है;ये ज्ञान कौन देगा?
    अंग्रेज़ी के रंग में सराबोर अधिकांश भारतीयों को इसका आभास भी नहीं है, कि संस्कृत के कारण ही हम बच गए, बचे हुए है।
    इतना विपुल साहित्य किसी भाषा में नहीं है।
    संस्कृतका एक अर्थ ’refined’ भी होता है, यह पढे-लिखों की भाषा थी और रही है, व्याकरण, उच्चारण से लेकर अर्थ तक, अनेकों पर्यायवाची शब्द एक ही वस्तु के—साधारण से जल को ही लीजिए तो कम से कम दस शब्द हैं, कमल के पचिसों हैं, सूर्यके अनेकों हैं, और सहस्रनामों की तो छटा ही निराली है; जितने मुख्य देवता हैं आद्या शक्ति (ललिता सहस्रनाम) से लेकर उनका पूरा परिवार -गणेश, शिव,आदि -और विष्णु के कई अवतार (कुछ नाम गिना रहा हूँ), ये अपूर्व क्षमता किसी और भाषामें नहीं है।

    यास्क का आपने स्मरण करा ही दिया है, पतंजलि, पाणिनि, वाल्मीकि, व्यास से लेकर बाणभट्ट, भवभूति,कालीदास, से आधुनिक युगमें विद्वानों तक एक समृद्ध श्रृंखला है।

    दुस्साहस कर रहा हूँ, आप जैसे आचार्य को क्या बताना?

    विषयांतर हो गया….कभी कभी अपने ही विचार प्रवाह में बह जाना(या बहक जाना) अच्छा लगता है।
    आप सहृदय हैं, क्षमा करेंगे। कभी मिलने पर और चर्चा होगी।
    आशा है, सकुशल है,

    भवदीय
    (प्रोफ़ेसर राधेश्याम . द्विवेदी, P h D)

  2. बहुत ही उपयोगी लेख है। संस्कृत भाषा की महत्ता का पूरा आभास कराता है।

    • आपकी टिप्पणी से मैं प्रोत्साहित हूँ।
      समय देकर आलेख पढने के लिए धन्यवाद।

  3. Dr. Madhusudan ji Jhaveri is right on money. HOW CAN ANY NATION NOT PROGRESS IN HER OWN MOTHER TONGUE? HINDI AND SANSKRIT ARE INDIA’S MOTHER TONGUES. THE VEDAS WERE GIVEN IN SANSKRIT ONLY. ENGLISH LANGUAGE IS THE LANGUAGE OF SLAVE INDIA’S MASTERS. IT IS SAD THAT IT IS TO DATE CONSIDERED AS LANGUAGE OF INDIA DUE TO SLAVERY OF INDIAN MINDS ON THE PRETEXT THAT IT IS A AN INTERNATIONAL LANGUAGE. I WENT TO FRANCE IN 1980’s AND WAS SURPRISED TO SEE HIGH SELF-ESTEEM OF FRENCH PEOPLE WHO KNEW ENGLISH BUT THEY PREFERRED TO TALK WITH US IN FRENCH.

    IT IS VERY TRUE THAT HE FOUND MOST OPPONENTS OF SANSKRIT OR HINDI IGNORANT OF HINDI AND SANSKRIT. AS HE STATED THAT THE “IGNORANCE OF SANSKRIT IS THE ROOT OF
    OPPOSITION OF HINDI AND/OR SANSKRIT” BUT PLEASE ALSO DO ADD IN IT THE VERY LOW SELF-ESTEEM OF INDIANS AND INFERIORITY COMPLEX OF OUR PEOPLE, ARE THE ROOT CAUSES OF OPPOSITION TO HINDI AND SANSKRIT. EVEN IN INDIA THE BRIDE IS CHOSEN BY HER FAIR COMPLEXION (“GORI CHAMADI”) INSTEAD OF HER VALUES, CHARACTER, AND GOOD HUMAN VALUES. THIS IS SAD.

    NO COUNTRY CAN DO GOOD LET ALONE PROSPER AND FLOURISH UNLESS THEY SPEAK THEIR OWN LANGUAGE, STUDY IN THEIR OWN EDUCATION SYSTEM, AND FOLLOW THEIR OWN CULTURE AND VALUES, AND TAKE PRIDE IN THAT INSTEAD OF HAVING HIGH EGO, AND FALSE PRIDE. WE SHOULD NOT PUT ANY OTHER’S DOWN AND RESPECT ALL BUT OUGHT TO HAVE A HIGH SELF-ESTEEM. LET NOBLE THOUGHTS COME TO ME FROM ALL TEN DIRECTIONS -RIGVEDA, TRULY SAID.

    SORRY I VERY MUCH WANTED TO WRITE THIS COMMENT IN HINDI FOR SURE BUT THIS YAHOO DOES NOT HAVE THAT PROVISION IN MY COMPUTER. I COULD HAVE WRITTEN IN GMAIL WHICH DOES HAVE MANY LANGUAGES AND THEN COPY AND PASTE IT BUT THAT WOULD HAVE TAKEN A LOT MORE TIME, SO PLEASE FORGIVE ME.

    THANK YOU, DEAR DR. MADHUSUDAN JI JHAVERI ONCE AGAIN FOR YOUR VALUABLE INPUT AND THANK TO PRAVAKTA FOR THEIR GOOD WORK AS USUAL.

  4. उत्तम, अति उत्तम ।
    क्या आप इसे भारत की शिक्षा प्रणाली मे संस्कृत का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करने हेतु स्मृति जी व मोदी जी को प्रेरित करने भेज सकते हैं । कृपया । धन्यवाद ।

  5. आदरणीय मधुसूदन भाई ,
    सादर प्रणाम । आपके सभी सारगर्भित आलेख मुझे प्रभावित करते रहे है , वैसे ही आपका ये आलेख पढ़कर भी मैं चकित रह गई , प्रभावित भी हुई और गर्वित भी । जितनी सहजता और स्पष्टता से आपने समस्त बिन्दुओं पर प्रकाश डालते हुए , तथ्यों को प्रस्तुत किया है – वह किसी संस्कृत के विद्वान ने भी कभी नहीं किया । संस्कृत के रूप-धातु कंठस्थ करने को कष्टप्रद कठिनाई बताकर , संस्कृत से अनभिज्ञ सामान्यजन उसे “रटन्त विद्या” कहकर उसकी उपेक्षा करते रहे हैं, किन्तु बचपन से ही अंग्रेज़ी की लम्बी चौड़ी ऊटपटाँग स्पेलिंग वालेशब्दों की स्पेलिंग रटने में कभी किसी ने कोई आपत्ति नहीं की अपितु प्रसन्नमन से उसे अपना कर अत्यधिक परिश्रम से रट रट कर याद कर लिया । अब उसी का धड़ल्ले से प्रयोग करने में अपनी शान समझते हैं । प्रशंसा करते नहीं थकते ।
    सच तो ये है कि डंडे के ज़ोर से हम भारतीयों ने भिन्न लिपि वाली फ़ारसी / उर्दू और अंग्रेज़ी को सहज ही अपना लिया और उसका समर्थन करके उनको आगे भी बढ़ाया । ये हम भारतीयों के लिये लज्जा का विषय है कि अपने सोने का मूल्य न जानने से उसकी निरन्तरर उपेक्षा ही की गई और विदेशी को हर्ष और गर्व से अपना लिया ।
    आप जितनी निष्ठा से भारतीय संस्कृति एवं संस्कृत के प्रचार – प्रसार में निरन्तर संलग्न हैं , वह संस्कृत के पंडितों के लिये भी आदर्श और उदाहरणस्वरूप है । आपके गहन वैदुष्य और प्रतिबद्धता की जितनी भी सराहना की जाए , कम होगी । देश के शासन में अंग्रेज़ी के स्थान पर संस्कृत से जन्मे हिन्दी के शब्दों को लाने के कार्य में आप जैसा दूसरा सहायक दुर्लभ होगा । इस कार्य में सभी भारतीयता के उपासकों का समर्थन और सहयोग अपेक्षित भी है और वांछनीय भी ।
    सादर,
    शकुन्तला बहादुर

  6. Dear Ken—-
    They are not difficult.
    I am out for next 5 weeks at least. NO TIME TO READ COMMENT FULLY)
    PLEASE OBTAIN DICTIONARIES BY
    (1) Hardev Bahari and (1+ Lakh words/
    (2) Dr. Raghuvira (2 Lakhs)
    (3) Abhinavam Shaariram ( Benaras Hindu University )
    (4) Various papers at Conferences also.
    YOU NEED SANSKRIT WORD SCIENCE KNOWLEDGE TO GRASP TOO.
    and see it yourself.
    May I know how much SANSKRIT YOU HAVE STUDIED?

    truly
    madhusudan

  7. Dr.Madhusuudan,
    How Shabdawkaa Kalpavruksh will help in translating these Indian companies’ names in Hindi and solve Hindi propagators’ dilemma?
    भारत सरकार द्वारा शुरू की गई अंग्रेजी नाम और अंग्रेजी प्रतीक-चिह्न वाली योजनाएँ एवं पहलें:

    एम्पैक्टिंग रिसर्च इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी IMPacting Research INnovation and Technology: (IMPRINT)-India,
    डोमेस्टिक एफ़िशिएन्ट लाइटिंग प्रोग्राम Domestic Efficient Lighting Programme (DELP),
    इंटीग्रेटेड पावर डेवलपमेंट स्कीम Integrated Power Development scheme (IPDS)
    नेशनल फ़ूड ग्रिड National Food Grid (NFG),
    ग्लोबल इनिशिएटिव ऑफ़ अकेडमिक नेटवर्क्स Global Initiative of Academic Networks (GIAN),
    नेशनल स्पोर्ट्स टैलेंट सर्च स्कीम National Sports Talent Search Scheme (NSTSS),
    मेक इन इण्डिया Make in India,
    पिल्ग्रिमेज रिजुवनेशन एंड स्प्रीचुअलिटी औग्मेंटेशन ड्राइव Pilgrimage rejuvenation and spirituality augmentation drive (PRASAD),
    सॉइल हैल्थ कार्ड Soil health card,
    नेशनल हैरिटेज सिटी डेवलपमेंट एंड औग्मेंटेशन योजन National Heritage City Development and Augmentation Yojana (HRIDAY),
    डिजिलॉकर Digilocker
    स्कूल नर्सरी योजना School Nursery Yojana,
    वन रैंक वन पेंशन स्कीम One Rank One Pension (OROP) Scheme,
    स्मार्ट सिटी Smart City Scheme,
    इलेक्ट्रिक बस,
    गो ग्रीन,
    आइवेज़,
    सुपर हाईवे,
    नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इण्डिया The National Institution for Transforming India (NITI) Aayog ,
    माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफायनेंस एजेंसी योजना Micro Units Development & Refinance Agency Ltd (MUDRA)
    अटल मिशन फॉर रिजुवनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation (AMRUT),
    उज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना Ujwal DISCOM Assurance Yojana (UDAY),
    बुलेट ट्रेन,
    मेट्रो ट्रेन,
    प्रीमियम ट्रेन,
    डिजिटल इण्डिया,
    स्टार्ट अप, स्टैंड अप इण्डिया,
    स्किल इण्डिया
    गिव_इट_अप (GiveItUp)
    प्रोएक्‍टिव गवर्नेंस एंड टाइमली इम्प्लीमेंटेशन Pro-Active Governance And Timely Implementation:PRAGATI

    • डॉ. मधुसूदन
      DEAR KEN
      (1) I have taught college through English medium for 3 decades.
      (2) Used to believe *Bharat can progress through English only.* (Do not believe today)
      (3) Had few awards, medals, and recognition.
      (4) Last 10 years, serious study of Sanskrit, and Hindi changed me thoroughly.
      (5) I know Gujarati, Marathi, Hindi, Sanskrit, English and some
      German at Ph D. read about other languages in linguistic books.
      (6) FOUND MOST (ALL) OPPONENTS OF SANSKRIT OR HINDIIGNORANT OF HINDI AND SANSKRIT.
      (7)IGNORANCE OF SANSKRIT IS THE ROOT OF OPPOSITION OF HINDI AND/OR SANSKRIT.
      (7)SERIOUS THOUGHTS AND STUDY IS BEHIND MY POSITION.
      Now please tell me–
      ==> Do you know Hindi and Sanskrit (both)– before opposing them? Or you think you can oppose them without knowing them? <====

    • Dear Ken:
      I went to Middle East -Lebanon, Jordan, and Egypt, in 1985 and I had to have an interpreter for Arabic to English (preferred Hindi though), My son went to China for a week and had to get a Chinese to English interpreter. Simply because at one time there was no sunset in British Empire. Although now there is no Sunrise (may be during summer we see for 2-6 weeks Sun light and heat in Britain) but the lingering effect has made these nations use English. There is nothing man can’t do. If people of India determine they can develop all these agencies and companies names in Hindi but India’s first priority is make Indian people educated in their own language. When we go to catch a distance objects we miss our own near by one. And that is precisely happened with India. And people -great big people, we all know that money is dead and it can’t move without the help of a living man, but still the world is after money and that is what made the world today at the brink of it’s misery -killing live people for setting empires for money or ruling.

      Shouldn’t we emphasize and focus on people than FDI, Make in India, etc. ? Who has not taken the profit in to their own pocket in to their own country and helped their fellows -relatives, parent company when they went to other countries? Yes, it shall provide employment, but until and unless our own people are educated, skilled, in morals, ethics, spirituality, honesty, etc .the foreigner’s will be compelled to bring their own skilled people from foreign land and encroach rather may put our land in slavery again. As it is India is already a slave of foreign powers. Isn’t it?

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