शक्ति

चुन-चुनकर तिनका
जब चिड़िया अपना
नीड़ बनाती है,
धैर्य और हौंसला जुटा
वह अपने बच्चों का
आशिआना सजाती है।
मौसम के थपेड़ों से
संतान को बचाने को
नन्हीं चिड़िया जाने कहाँ से
इतनी शक्ति लाती है ?

प्रसव-वेदना सहकर
स्त्री जब शिशु को
जन्म देती है
माँ की उस शक्ति की
न कोई उपमा न थाती है।
शिशु का रुदन सुन
माँ की खोई शक्ति
लौट आती है।
होंठों पर जब देखती
उसके खिलती मुसकान
हर्ष से वो न फूली समाती है।

पुत्री से पुत्रवधू
तक का सफर
पूरे दिल से निभाती है।
अबला नहीं
सशक्त है वो भी
पूरे प्रमाण के साथ
बताती है।
कष्ट कोई भी हो
जीवन में
पूरे धैर्य के साथ
सह जाती है।
पता नहीं हे जननी !
तू इतनी शक्ति
कहाँ से जुटाती है ?

शक्ति केवल बल प्रदर्शन
या सहने का पर्याय नहीं है
सौम्य-शांत सहज भाव भी
शक्ति का अभिप्राय ही है।
कभी-कभी मधुर वाणी
हर समस्या हर लेती है
बल प्रयोग बिना अपना
अभीष्ट प्राप्त कर लेना भी
शक्ति की ही पावन ज्योति है।

लक्ष्मी अग्रवाल

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दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातक, हिंदी पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा तथा एम.ए. हिंदी करने के बाद महामेधा, आज समाज जैसे समाचार पत्रों व डायमंड मैगज़ीन्स की पत्रिका 'साधना पथ' तथा प्रभात प्रकाशन में कुछ समय कार्य किया। वर्तमान में स्वतंत्र लेखिका एवं कवयित्री के रूप में सामाजिक मुद्दों विशेषकर स्त्री संबंधी विषयों के लेखन में समर्पित।

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