शरद पूर्णिमा अर्थात महासरस्वती व कार्तिक अमावस्या अर्थात महाकाली के बीच की कड़ी हर मनुष्य को एक दूसरे से जोड़ने वाली कड़ी है। जैसे शरद का सौन्दर्य श्री का सौन्दर्य है, राधा का सौन्दर्य है, सीता का सौन्दर्य है, शारदा का सौन्दर्य है, वही अलौकिक सौन्दर्य नवदुर्गा की भूक्ति पूजा अर्चना का भी सौन्दर्य बन जाता है। शरदपूर्णिमा का महापर्व राधाकृष्ण की युगल जोड़ी के साथ जुड़ा है इस दिन राधाकृष्ण अपनी समस्त कलाओं के साथ महारास रचाते है और आकाश में चन्द्रमा अपनी चांदनी की छटा से धरा को स्नान कराता है। शरद पूर्णिमा की रात को हमारे देश के हर द्वार पर लक्ष्मी की अगवानी के लिये देहरी पर दीप रख रोशनियॉ बिखेर कर लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है और लोग अपने घरों की छत-मचान पर श्रीलक्ष्मी के प्रतीक खीर रखकर अमृत बरसने की प्रतीक्षा करता है ऐसे अवसर पर माता लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण को निकलती है।
शरद पूर्णिमा को लेकर पुराणों में अनेक व्याख्यायें महारास से जोड़ने से यह सनातन परम्परा अनुसार एक महत्वपूर्ण उत्सव है जिसे महोत्सव का स्वरूप दिये जाने के लिये सभी को उत्साहित होकर इसके धर्मपरायण स्वरूप की महत्ता को समझना होगा और इस सांस्कृतिक, धार्मिक विरासत की जानकारी विद्यालयों-कॉलेजों में दी जाकर छात्रों के बीच चर्चा आवश्यक है। शिक्षकों को चाहिये कि वे समय समय पर आयोजित होने वाले धार्मिक उत्सवों के साथ शरद पूर्णिमा के पौराणिक महत्व, वैदिक दर्शन व धार्मिक,सामाजिक, भौगोलिक व सांस्कृतिक पक्ष के सम्बन्ध में शिक्षित कर उन्हें ऐसा आचार्यत्व दे कि पूरे जीवन में फिर इस पक्ष को लेकर वे देश-दुनिया में कहीं भी जाये तो अपनी ज्ञानध्वजा का पताका फहराकर आये।
शरद पूर्णिमा महापर्व के पूर्व नवदुर्गा महोत्सव का समापन आश्विन माह की विजयादशमी को राम रावण का वध कर 20 दिन बाद अयोध्या लौटते है तब उनके राज्याभिषोष में परब्रम्ह के रूप मेंभगवान राम संपूर्ण ऐश्वर्य के साथ सिंहासन पर विराजते है। अवध के साथ भारतवर्ष के हर गॉव-शहर मोहल्ला झूम उठता है, घरघर दीप प्रज्वल्वित होते है और आनन्द दीपावली के रूप में भारत की संस्कृति में रच बस जाता है। नवरात्रि से दशहरें तक सभी इस त्यौहार में रचे बसे है किन्तु शरण पूर्णिमा महासरस्वती का महापर्व है इसलिये इस दिन स्कूल कालेजों के छा़त्रों में विषयवस्तु को लेकर स्वयं की भावनात्मक प्रस्तुति के साथ अन्य कवियों की रचनाओं का वाचन एक कवि सम्मेलन के रूप में रात्रिकालीन समय में अगर आप किसी नदी-तालाब के किनारे बसे है वहॉ पर, स्कूलप्रांगणों में हो तथा जिन स्कूलों के पास पर्याप्त व्यवस्थायें नहीं है, उन्हें दूसरें बड़े स्कूल कालेजों में शामिल किया जाकर रात्रिकालीन शरद की चांदनी में भ्रमण एवं चर्चाओं की रोचकता से बच्चों को आनन्दकारी वातावरण तैयार कर पूर्ण सुरक्षा व्यवस्था के साथ यह महोत्सव मनाया जाना चाहिये।
वैदिक एवं पौराणिक साहित्य में चन्द्रमा के सम्बन्ध में अनेक प्रसंग एवं कथाएं प्रचलित है तभी प्राचीन काल से सूर्य, चन्द्रमा और इन्द्र आदि देवताओं को हमारे यहां पूजनीय स्थान मिला है। चंद्रमा शांति एवं शीतलता का प्रतीक होने के साथ अपने सौन्दर्य एवं निर्मलता के लिये अनेक उपमाओं का मूलाधार है। यहीं कारण है कि चन्द्रमा के प्रति धार्मिक भावनाएं भी उच्च कोटि की है तभी चन्द्रमा मानवीय मन का स्वामी कहा जाकर नारियों के करवा चौथ के व्रत में उनकी मनोकामना पूर्ण करने का आधार तो है ही वहीं प्रेम और पूजा का आधार भी चन्द्रमा रहा है वही शरद पूर्णिमा की रात्रि चन्द्रमा की किरणें इस धरा पर अमृतवर्ष करती है।
शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा अपनी समस्त कलाओं के साथ-साथ अवतरित होता है। मान्यता है कि इस दिन वह रात्रि में अपनी कलाओं के माध्यम से अमृत वर्षा करता है। विविध स्थानों पर शरद पूर्णिमा के दिन रात्रि जागरण का भी यही कारण है जिसमें लोगों को अमृतमयी खीर के स्वाद के साथ हार्दिक प्रसन्नता भी प्राप्त होती है। शरद पूर्णिमा ऋतु परिवर्तन का प्रतीक है, इस दिन से वर्षा ऋतु की समाप्ति और शरद ऋतु का प्रारम्भ माना है इसका सम्बन्ध सभी के जीवन के साथ कृषक जीवन में विशेष स्थान रखता है। वही पौराणिक के रूप में पूजन की परंपरा शरदोत्सव का धर्म एवं संस्कृति से गहरा नाता है ।
शरद पूर्णिमा उत्सव हिन्दूओं का महत्वपूर्ण त्यौहार है जिसे क्या शहर, क्या गॉव, सभी बिना भेदभाव के मनाकर अपने घरों में खीर बनाकर घरों के बाहर चन्द्रमा की रोशनी में रखकर खीर पर रोशनी को अमृतवर्षा से जोड़कर कुछ उसी रात्रि को तो अधिकांश सुबह परिवार के साथ उस खीर का प्रसाद पाकर आंनन्दित होते है। आज जन जागृति की आवश्यकता है और इस पर्व को महापर्व का स्वरूप दिये जाने के लिये समाज के शिक्षित वर्ग को सभी प्रकार की वैचारिक समन्वयता स्थापित कर इस शरण पूर्णिमा उत्सव को व्यवस्थित रूप से प्रत्येक ग्राम सभा, जनपद, पंचायतों, नगर पालिका, नगर निगम सीमाओं के वार्डो में संचालित प्रत्येक स्कूल कॉलेजों के बच्चों व उनके परिवार को शामिल कर मनाया जाए और ध्यान रहे इसकी पूर्व तैयारी कर इन स्कूल-कॉलेज के आसपास निवासरत प्रबुद्धजनों में धर्माचार्यों, साहित्यकारों, लेखकों,कवियों सहित विधिक सेवा से जुड़े वकीलों, सेवानिवृत्त न्यायाधीशों एवं शासकीय सेवाओं से जुड़े, अधिकारियों आदि को शामिल कर विचार गोष्ठी, काव्य गोष्ठी, आदि सुरुचिपूर्ण धर्म, ज्ञान, जीवन चर्चा की शुरुआत की जावे। जिससे बच्चों के बौद्धिक विकास में उन्हें आत्मनिर्भर बनाते हुये उन्हें शरद पूर्णिमा ही नहीं अपितु अपने प्रत्येक धार्मिक, राष्ट्रीय पर्व स्थानीय संत-महात्माओं, क्षेत्रीय-प्रादेशिक ज्ञान का कुशल कुशल श्रोता बनाकर उसके मस्तिष्क् में संचित ज्ञानत्रिवेणी से उसके अंतस में छिपी उसकी प्रतिभा को उभारकर जन-जन तक पहुॅचाया जा सके और प्रयास हो कि विषयवस्तु के प्रत्येक पक्ष एवं बारीक से बारीक पहलू को आधार बनाकर वह इन आयोजनों से एक कुशल वक्ता के रूप मेंं अपनी पहचान बनाकर अपने घर,परिवार, नगर की भी पहचान विश्वपटल पर रख सके।
आत्माराम यादव पीव