शिव पराकाष्ठा हैं।

शिव पराकाष्ठा हैं।

राग की, वैराग्य की।

स्थिरता की, दृढ़ता की।

ध्यान की, विज्ञान की।

ज्ञान के प्रकाश की।।

वे समेटे हैं।

प्रेम को, क्रोध को।

शांति को, भ्रांति को।

त्याग को, विश्वास को।

भक्ति को, शक्ति को।।

शिव स्त्रोत हैं।

प्राण का, प्रमाण का।

धर्म का, कर्म का।

आचार का, विचार का ।

अंधकार के विनाश का।।

उनमे समाए हैं।

गीत भी, संगीत भी।

विष भी, अमृत भी।

समय भी , विनय भी।

आरम्भ भी अंत भी।।

लोग कहते है, शिव संहारक हैं,

वो संहार करते हैं,अंत करते हैं।

परंतु वह भूल जाते हैं कि

शंकर अंत करके एक नई शुरुआत का आरम्भ करते हैं।

वे सृजन भी करते हैं, संहार भी करते हैं।

ज़रूरत पड़ने पर चमत्कार भी करते हैं।

शिव ब्रह्मा भी हैं वेद भी।

जीवन का हैं भेद भी ।

शिव नारी भी हैं, पुरुष भी।

माया भी हैं, मोक्ष भी।।

वो निर्गुण भी हैं, सगुण भी।

सात्विक भी है, तामसिक भी।

ध्वनी भी हैं, दृष्टि भी।

श्वास भी हैं, मुक्ति भी।।

वो साधन भी हैं साधना भी।

चिंता भी हैं, और चिंतन भी।

वो अंदर भी हैं, बाहर भी।

और मुझ में भी हैं, तुझ में भी।।

मेधावी महेंद्र

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