युवा तरूणाई को आगे लाने के फार्मूले पर काम आरंभ किया शिवराज ने!

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(लिमटी खरे)
परिवर्तन प्रकृति का अटल नियम है। इस संसार में कोई भी चीज अटल नहीं है। इसी तर्ज पर मध्य प्रदेश भाजपा में भी अब युवा तरूणाई को आगे लाने की कवायद होती दिख रही है। वर्तमान में सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान इसके प्रणेता बने दिख रहे हैं। बतौर मुख्यमंत्री चौथी पारी खेल रहे शिवराज सिंह चौहान के द्वारा पदभार संभालने के 15 माह बाद हाल ही में जिलों के प्रभारी मंत्रियों की घोषणा की है।
जिस तरह की जमावट शिवराज सिंह चौहान के द्वारा की गई है उसके अनेक निहितार्थ भी लगाए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि मंत्रियों के प्रभार वाले जिलों की घोषणा करके शिवराज सिंह चौहान के द्वारा न केवल खुद को मजबूत धरातल पर खड़ा रहने का अहसास अपने विरोधियों को कराया है वरन उनके द्वारा टी पालिटिक्स (चाय पर चर्चा कर उसकी फोटो सोशल मीडिया पर वायरल करने वाले) करने वाले नेताओं को आईना भी दिखाने का प्रयास किया गया है।
एक समय था जब प्रदेश में मुख्यमंत्रियों को अपनी कुर्सी सलामत रखने के लिए संगठन में वजनदार कद वाले किसी नेता को साथ लेकर चलना अवश्यंभावी हुआ करता था। अस्सी के दशक में मोती लाल वोरा और माधव राव सिंधिया का उदहारण हो अथवा राजा दिग्विजय सिंह और कमल नाथ की जुगलबंदी, इस तरह के अनेक उदहारण आज भी लोगों के सामने हैं।
मार्च 2020 में कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा में शामिल हुए यूथ आईकान ज्योतिरादित्य सिंधिया का ग्लैमर अपने आप में एक नायाब विशेषता ही माना जा सकता है। जिस तरह नब्बे के दशक में युवाओं के मन में पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ से आई कांटेक्ट बनाने की होड़ लगी होती थी, आज वही स्थिति ज्योतिरादित्य सिंधिया के अंदर देखने को मिल रही है।
इधर, प्रदेश में चार बार मुख्यमंत्री रहने वाले शिवराज सिंह चौहान को सियासी अखाड़े का उम्दा एवं समझदार खिलाड़ी माना जा सकता है। देश के हृदय प्रदेश में सबसे ज्यादा बार मुख्यमंत्री रहने का रिकार्ड उन्हीं के नाम पर है। बार बार उन्हें हटाए जाने की अटकलें चलती हैं, पर हर बार वे इन अटकलों पर विराम लगाकर अपना काम बहुत ही धेर्य और संयम से करते नजर आते हैं।
शिवराज सिंह चौहान ने युवा तरूणाई के प्रतीक बन चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया की पसंद का जिलों के प्रभार बांटने में जिस तरह ध्यान रखा है उसे देखकर तो यही प्रतीत हो रहा है कि आने वाले विधान सभा चुनावों तक उनके विरोधी उनकी कुर्सी का एक पाया तक हिलाने में सक्षम नहीं होंगे।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के द्वारा केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा, केद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल, जयभान सिंह पवैया आदि जैसे स्तंभों की पसंद को दरकिनार करते हुए उनके प्रभाव वाले जिलों में अपने या ज्योतिरादित्य सिंधिया के विश्वस्त वजीरों को बिठाया है वह वास्तव में आश्चर्यजनक ही माना जाएगा, क्योंकि इनमें से कुछ नेता सोशल मीडिया पर चल रही चर्चाओं में शिवराज सिंह चौहान को पदच्युत करने के प्रयासों में रत बताए जा रहे थे।
वैसे भी चार बार के मुख्यमंत्रित्व काल में शिवराज सिंह चौहान के द्वारा अपना आधार बहुत ज्यादा मजबूत ही किया है। अमूमन सांसद या विधायक बनने के बाद नेता आत्मकेंद्रित हो जाते हैं, पर बिरले नेता ही इस तरह के होते हैं जो अपने अलावा अपने आसपास यहां तक कि विरोध करने वालों को भी उपकृत कर अपना बनाने में माहिर होते हैं। सिवनी के निर्दलीय विधायक रहे दिनेश राय जो वर्तमान में भाजपा से विधायक हैं, इसका एक उदहारण माने जा सकते हैं। दिनेश राय ने भाजपा के दो बार के विधायक रहे नरेश दिवाकर को बतौर निर्दलीय परास्त कर इतिहास रचा था। जब दिनेश राय के भाजपा में आने की अटकलें चल रहीं थीं, तब यह बात भी फिजां में थी कि दिनेश राय अगर भाजपा में आए तो उसके बाद सिवनी विधानसभा से न तो उन्हें कोई हरा सकेगा और न ही उनकी टिकिट ही कोई काट पाएगा।
बहरहाल, 01 जुलाई से स्थानांतरण से हटे प्रतिबंध में प्रभारी मंत्री की अनुशंसा आवश्यक होगी। ऐसी स्थिति में अब बड़े बड़े दिग्गजों को भी अपने प्यादों के बजाए या तो ज्योतिरादित्य सिंधिया या शिवराज सिंह चौहान के गणों की चिरौरी करने पर मजबूर होना पड़ सकता है।
ग्वालियर एवं चंबल संभाग में सिंधिया परिवार के दबदबे से इंकार नहीं किया जा सकता है। यहां तुलसी सिलावट को ग्वालियर, गोविंद सिंह राजपूत को भिंड, ब्रजेंद्र सिंह सिसोदिया को शिवपुरी, प्रद्युम्न सिंह तोमर को अशोक नगर एवं गुना, सुरेश धाकड़ को दतिया राजवर्धन दत्तीगांव को मंदसौर जिले का प्रभारी मंत्री बनाया गया है। कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि पन्ना और कटनी में प्रदेश भाजपाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा, दमोह में केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल, दतिया में मंत्री नरोत्तम मिश्रा, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के प्रभाव वाले मुरैना की पसंद को शिवराज सिंह चौहान के द्वारा दरकिनार ही किया गया है।
मंत्रियों को चुनना, उन्हें विभाग देना या प्रभार देना मुख्यमंत्री का विवेकाधिकार होता है यह बात कही तो जाती है पर इसमें कितना दम होता है यह सभी जानते हैं। इस लिहाज से इस पूरी कवायद में भाजपा के आला नेताओं की सहमति से इंकार नहीं किया जा सकता है।
सोशल मीडिया पर यह बात लगातार ही बहुत तेजी से वायरल होती रही है कि भाजपा में जाने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद घटा है, पर मंत्रियों को प्रभार दिए जाने पर अगर नजर डाली जाए तो यही साबित होता दिखता है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया अब भाजपा में स्थापित हो चुके हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया का पूरा पूरा मान शिवराज सिंह चौहान के द्वारा रखा गया है। अब आने वाले समय में अगर शिवराज सिंह चौहान के मार्ग में कोई शूल बोएगा तो ज्योतिरादित्य सिंधिया उन्हें इससे बचाने का प्रयास अवश्य ही करते नजर आएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अब मध्य प्रदेश में शिव ज्योति एक्सप्रेस दौड़ती नजर आ सकती है।

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