सिद्धार्थ गौतम भगवान बुद्ध

—विनय कुमार विनायक
ब्राह्मणवाद और जातिप्रथा के बैरी
अवतारवाद के दुश्मन,
अहिंसा की मूर्ति
बुद्ध तथागत को
तुमने ही दरेरा मारकर
घर से निकाला!
उनके अहिंसा दर्शन को चुराकर
स्वनाम घोषित किया,
प्रबुद्ध बुद्ध/
बौद्ध जन को बुद्धू बनाकर!
तुम्हारी खोखली
अवतारवाद और पुनर्जन्म की
कपोल कल्पना की पोल खोलते,
उन्होंने ही कहा था
तुम मृत मानवीय समाधि
और पाषाण मूर्ति को पूज सकते!
किन्तु दीन-दलित जीवंत मानवीय
प्रतिमा को छूने से कतराते,
तुम अपवित्र हो जाते,
क्षुधाग्रस्त मानव को अन्न तो अन्न,
लोटाभर जल तक नहीं दे पाते!
कैसी विडम्बना!
एक दीन-हीन मानव को मानव नहीं,
गंदी नाली के कीड़े समझे जाते!
तुम कुत्ते को रोटी खिला सकते,
तोते को ज्ञान की घुट्टी पिला सकते,
बगेरी और कौए को गृहवास दे सकते,
बिल्ली को प्यार बांटते,
किन्तु दीन-हीन-दलित मानव को
अन्न का एक दाना,
वस्त्र का एक चिथडा़,
गृह का एक कोना,
ज्ञान की एक घुट्टी,
प्यार का एक शब्द दे नहीं पाते!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here