मनोज कुमार
सनातन काल से स्वयमेव आयोजित होने वाला सिंहस्थ एक बार फिर पूरी दुनिया को आमंत्रित कर रहा है। सिंहस्थ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है अपितु यह दर्शन, विज्ञान एवं संस्कृति का वह अनुष्ठान है जिसमें समय काल के गुजरने के साथ-साथ नए तत्व एवं संदर्भों की तलाश की जाती है। विज्ञान ने समय के साथ प्रगति की है तो उसकी प्रगति में प्राचीनकाल से होने वाले सिंहस्थ जैसे आयोजन बुनियाद में रहे हैं। इसी तरह दर्शन की दृष्टि से भी यह आयोजन व्यापक महत्व वाला है। सांसारिक व्यक्ति को एक समय के बाद शांति और मोक्ष की तलाश होती है। वह परोक्ष और अपरोक्ष रूप से की गई अपनी गलतियों को सुधारने का अवसर चाहता है। उसे इस बात का अहसास होता है कि 12 वर्षों के अंतराल में होने वाला यह सिंहस्थ उन गलतियों के पश्चाताप के लिए एक अवसर है। वह यहां मोक्ष की कामना के साथ आता है और मन में एक विश्वास लेकर जाता है कि सिंहस्थ का यह स्नान उसे मोक्ष प्रदान करने में सहायता करेगा। विश्वास के भाव को आप अंधविश्वास कह सकते हैं लेकिन मानव के भीतर टूटते, दरकते आत्मविश्वास को सिंहस्थ दुबारा से संचित करता है, सृजित करता है और इसे आप दर्शन के रूप में जांच-परख सकते हैं।
उज्जैन सिंहस्थ का अनादिकाल से साक्षी रहा है। महाकाल यहां बिराजते हैं। काल भैरव की आराधना और माता की जयकारा की गूंज धर्म-धम्म से परिचय कराती है तो इस बात की तलाश करते हुए सदियां निकल गई और कोई इस बात की तलाश नहीं कर पाया कि आखिर काल भैरव द्वारा सेवन की जाने वाली मदिरा कहां चली जाती है। महाकाल में प्रतिदिन होने वाले भस्म आरती भी उन लोगों के लिए अबूझ पहेली बनी हुई है जो तर्क के साथ जीत जाने के लिए जुटे हुए हैं। सिंहस्थ में भी ऐसे लोगों की तादाद कम नहीं होती है जो अपने तर्कों के साथ उन तथ्यों को तलाश करने चले आते हैं जिनका जवाब उनके स्वयं के पास नहीं होता है।
सिंहस्थ महाकुंभ महापर्व पर देश और विदेश के भी साधु-महात्माओं, सिद्ध-साधकों और संतों का आगमन होता है। इनके सानिध्य में आकर लोग अपने लौकिक जीवन की समस्याओं का समाधान खोजते हैं। इसके साथ ही अपने जीवन को ऊध्र्वगामी बनाकर मुक्ति की कामना भी करता है। मुक्ति को अर्थ ही बंधनमुक्त होना है और मोह का समाप्त होना ही बंधनमुक्त होना अर्थात् मोक्ष प्राप्त करना है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार पुरुषार्थों में मोक्ष ही अंतिम मंजिल है। ऐसे महापर्वों में ऋषिमुनि अपनी साधना छोडक़र जनकल्याण के लिए एकत्रित होते हैं। वे अपने अनुभव और अनुसंधान से प्राप्त परिणामों से जिज्ञासाओं को सहज ही लाभांवित कर देते हैं। इस सारी पृष्ठभूमि का आशय यह है कि कुंभ-सिंहस्थ महाकुंभ जैसे आयोजन चाहे स्वरस्फूर्त ही हों, लेकिन वह उच्च आध्यात्मिक चिंतन का परिणाम है और उसका सुविचारित ध्येय भी है।
विज्ञान एवं दर्शन तथ्य एवं तर्कों की कसौटी पर खरा उतरने के बाद किसी निष्कर्ष पर पहुंचता है और संभवत: विज्ञान एवं दर्शन ने इस बात को परख लिया है कि उज्जैन में जो कुछ घटता है, वह अवैज्ञानिक है। काल गणना एक वैज्ञानिक पद्धति है और काल गणना के अनुरूप सिंहस्थ का आयोजन प्रति 12 वर्षों के अंतराल में किया जाता है। भारतीय संस्कृति, आस्था और विश्वास के प्रतीक कुंभ का उज्जैन के लिये केवल पौराणिक कथा का आधार ही नहीं, अपितु काल चक्र या काल गणना का वैज्ञानिक आधार भी है। भौगोलिक दृष्टि से अवंतिका-उज्जयिनी या उज्जैन कर्कअयन एवं भूमध्य रेखा के मध्य बिंदु पर अवस्थित है। बारह वर्षों के अंतराल से यह पर्व तब मनाया जाता है जब बृहस्पति सिंह राशि पर स्थित रहता है। प्रत्येक स्थान पर बारह वर्षों का क्रम एक समान हैं अमृत-कुंभ के लिए स्वर्ग की गणना से बारह दिन तक संघर्ष हुआ था जो धरती के लोगों के लिए बारह वर्ष होते हैं। प्रत्येक स्थान पर कुंभ पर्व भिन्न-भिन्न ग्रह स्थिति निश्चित है। उज्जैन के पर्व को लिए सिंह राशि पर बृहस्पति, मेष में सूर्य, तुला राशि का चंद्र आदि ग्रह-योग माने जाते हैं। सिंहस्थ उज्जैन में सिंहस्थ के साथ ही कुम्भ की भी अनुरूपता है। हालांकि दोनों पर्वों में खगोलीय विभिन्नताएं हैं किन्तु उज्जैन में दोनों की अनुरूपता एक महत्वपूर्ण संकेत है। इसलिए उज्जैन के सिंहस्थ कुंभ महापर्व का विशेष महत्व माना गया है।
यह शायद पहला अवसर है कि जब सिंहस्थ को मात्र एक धार्मिक आयोजन के स्वरूप में न देखते हुए इसे समाज के विभिन्न आयामों से जोडऩे का प्रयास किया गया है। सिंहस्थ के विभिन्न आयामों को लेकर विगत कई महीनों से विमर्श हो रहा है। सिंहस्थ को उसके मूल स्वरूप के साथ ही दर्शन, विज्ञान, संस्कृति, पर्यटन एवं पर्यावरण की दृष्टि से रेखांकित करने का प्रयास विभिन्न विमर्श के माध्यम से किया जा रहा है। समूचे संसार के विद्वान इस विमर्श में हिस्सेदारी कर रहे हैं और एक तरह से सिंहस्थ को नयी दृष्टि के साथ देखने और समझने की कोशिश हो रही है।
विमर्श की इस श्रृंखल इस मायने में भी सार्थक है जब पूरा समाज मूल्यविहिनता की तरफ अग्रसर है। पाश्चात्य संस्कृति भारतीय संस्कृति को निगलने के कगार पर है तब हमें भारतीय मूल्यों की तरफ लौटाने की पहल है। इसे आप सिंहस्थ के दार्शनिक दृष्टि से देख-समझ सकते हैं। धर्म और दर्शन के मध्य विज्ञान का समावेश इस तरह हो चुका है कि हर कसौटी पर यह बात स्थापित हो चुकी है कि भारतीय संस्कृति की बुनियाद में विज्ञान एवं दर्शन की गहरी समझ है। सिंहस्थ कुंभ धार्मिक व आध्यात्मिक चेतना का महापर्व है। धार्मिक जागृति द्वारा मानवता, त्याग, सेवा, उपकार, प्रेम, सदाचरण, अनुशासन, अहिंसा, सत्संग, भक्ति-भाव अध्ययन-चिंतन परम शक्ति में विश्वास और सन्मार्ग आदि आदर्श गुणों को स्थापित करने वाला पर्व है। सिंहस्थ सामाजिक परिवर्तन और नियंत्रण की स्थितियों को समझने और तदनुरूप समाज निर्माण का एक श्रेष्ठ अवसर है।