सोफे का दर्द

आत्माराम यादव पीव

मैं अपने सोफे पर बैठा
मोबाईल में डूबा हुआ था
और ढूंढ रहा था
पसंद की रिंगटोन
चिड़ियों की चहकने-फुदकने
कोयल-बुलबुल की बोलियाॅ
गिलहरियों सहित अनेक
कर्णप्रिय आवाजें
मुझे जंगल के खग-मृग का
मधुर कलरव सा
आनंद दे रही थी।
अचानक मेरी तंद्रा टूटी
जैसे लगा कि मेरा सोफा
मुझसे कुछ बातें करना चाहता है
अभी हाल ही में तो
सागौन का यह सौफा
मेरे घर आया था।
मैंने मोबाइल की रिंगटोन बंद की
और सोफे की ओर
अपना पूरा ध्यान लगाया
लगा सोफा अपना दर्द
मुझे बाॅटना चाहता है।
जो रिंगटोन मोबाईल से सुनी
लगा उससे मधुर ध्वनि
सोफे में सुनाई दी।
मेरा सोफा भी
कभी जंगल में
एक छायादार
सागौन का पेड़ रहा है
जिस पर सारे-खगवृन्द
विश्राम करते,
उसकी टहनियों पर चोंच मारते
फुदक-फुदक का संगीत सुनाते
हुक हुक,टें टें कर फुर्र से
उड़ जाते-फिर आ जाते
कभी गिलहरियाॅ आॅख-मिचैली करती
कभी चिड़ियायें
तिनके तिनके जोड़ घर बनाती
सभी का लाड़ला था
वह सागौन का पेड़
जिसमें पक्षियों का कलरव
हिंसक जानवरों का उपद्रव
सभी ऋतुओं का शांत व रोद्र रूप
झेलकर बढ़ना सीखा था।
वह सागोन का पेड़ अंजान था
जंगल के इस विशालकाय पेड़
जिसने पक्षियों के संगीत को
अपनी आत्मा का
ताज बना रखा था को
पता हीं नहीं था कि
वह एक दिन
धराशाही हो जायेगा
उसके टुकड़े टुकड़े कर
पीव जंगल से बेघर हो
शहर में आ जायेगा और
सोफा बन अपना दर्द सुनायेगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,013 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress