ग्रामों के क्लस्टर बनाकर देश के आर्थिक विकास को दी जा सकती है गति

 

कोरोना महामारी के कारण लगभग दो माह के लॉक डाउन के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था को वापिस पटरी पर लाने की चुनौती अब हम सभी के सामने है। न केवल भारत बल्कि विश्व में कई देशों द्वारा धीरे धीरे अपनी आर्थिक गतिविधियों को पुनः प्रारम्भ किया जा रहा है। हाल ही में भारत के प्रधान मंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक उदबोधन में भरोसा जताया है कि कोरोना महामारी के कारण संकट से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था शीघ्र ही पुनः पटरी पर लौट आएगी। उन्होंने कहा है कि कोरोना महामारी से निपटकर देश निश्चित तौर पर अपनी विकास दर को हासिल कर लेगा और यह मुमकिन है। इस विश्वास के पीछे उनके पास कई कारण भी हैं।

 

कोरोना महामारी के बाद खोली जा रही अर्थव्यवस्था में क्षेत्रीय (सेक्टोरल) बदलाव देखने को मिल सकता है। देश के आर्थिक विकास में कृषि का योगदान बहुत कम है, जो लगभग 16 प्रतिशत रहता है, जबकि देश की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी गावों में निवास करती है। इसके चलते गावों में ग़रीबी की दर बहुत अधिक रहती है। देश के आर्थिक विकास में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान लम्बे समय से लगभग स्थिर है। अभी तक केवल सेवा क्षेत्र ही तेज़ी से बढ़ रहा था। लेकिन अब शायद देश के आर्थिक विकास में, कुछ अवधि तक, सेवा क्षेत्र का योगदान भी कम हो सकता है क्योंकि यह क्षेत्र कोरोना महामारी के चलते बहुत अधिक प्रभावित हुआ है। पर्यटन उद्योग, होटेल उद्योग, विमान सेवाओं सहित यातायात उद्योग, आदि जो हाल ही में कोरोना महामारी के चलते बहुत अधिक प्रभावित हुए हैं, ये सभी उद्योग सेवा क्षेत्र के अंतर्गत ही आते है। सेवा क्षेत्र में विभिन्न उद्योगों को शायद GST के अंतर्गत करों में कुछ रियायत दिए जाने की आवश्यकता पड़ सकती है, ताकि ये उद्योग तेज़ी से पटरी पर वापिस लौंटें। देश में इसी क्षेत्र में रोज़गार के अधिकतम अवसर उत्पन्न होते हैं। अतः GST के माध्यम से सेवा क्षेत्र को अधिकतम लाभ दिया जा सकता है। 

 

हाल ही में देश में कई क्षेत्रों में सुधार कार्यक्रम लागू किए गए हैं। शुरुआत में हमें देश में बुनियादी ढाँचे एवं लाजिस्टिक के विकास की ओर ज़्यादा ध्यान देना होगा। रेल्वे, राजपथ, बंदरगाह, आदि इन सभी क्षेत्रों की समस्याएँ प्राथमिकता के आधार पर हल करनी होंगी। ऊर्जा, रक्षा, हवाई अड्डा जैसे क्षेत्रों में बहुत अधिक निवेश की आवश्यकता है। इस समय इन क्षेत्रों में ख़र्च बढ़ाया जा सकता है ताकि रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर निर्मित हों। खुदरा एवं आवास निर्माण क्षेत्रों की ओर भी ध्यान दिया जा सकता है क्योंकि इस क्षेत्र में बहुत अधिक मात्रा में तेज़ी से रोज़गार के नए अवसर निर्मित होते हैं। जिन क्षेत्रों में  विभिन्न कारणों से परियोजनाएँ अटकी पड़ीं हैं, उनके मुद्दे अथवा समस्याएँ सुलझाकर उन्हें तुरंत चालू किया जाना चाहिए। कोयला क्षेत्र एवं खनन के क्षेत्रों को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए। भारत हाल ही के समय में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक फ़ार्मेसी हब के रूप में उभर रहा है। गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देकर इस क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत आगे तक ले जाया जा सकता है। फ़ार्मेसी क्षेत्र में कई उत्पादों के कचे माल के लिए हमारे देश की कम्पनियाँ चीन पर निर्भर हैं। इस निर्भरता को बिल्कुल ख़त्म करने की अति आवश्यकता है ताकि भारत में ही इस कच्चे माल को निर्मित किया जा सके।

 

भारत को कई क्षेत्रों में आत्म निर्भरता हासिल करनी है। वर्तमान में कई तरह के उत्पाद जो देश में ही आसानी से निर्मित किए जा सकते हैं, उनका आयात भी हम चीन से करने लगे हैं। जैसे, बच्चों के लिए खिलौने, बिजली का सामान, दवाईयों के लिए कच्चा माल, भगवान की मूर्तियाँ, कृत्रिम फूल, आदि। यदि इस तरह की वस्तुओं का चीन से आयात बंद कर भारत में ही पुनः निर्माण होने लगे तो देश में ही रोज़गार के करोड़ों अवसर पैदा किए जा सकते हैं। इसी कारण से ही प्रधान मंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी ने देश को आत्म निर्भर बनाने का नारा दिया है। भारत के आत्म निर्भर बनने से सबसे अधिक लाभ कृषि तथा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग को होने वाला है। देश की जनता को भारत को आत्म निर्भर बनाने में अपना पूरा सहयोग देना होगा। इलेक्ट्रॉनिक्स सामान सहित चीन में निर्मित समस्त वस्तुओं के उपयोग पर स्वतः अंकुश लगाना होगा। जब भारतीय नागरिक ही इसका उपयोग बंद कर देंगे तो किस प्रकार चीन में निर्मित सामान का आयात हो सकेगा।

 

चीन से आयात की जाने वाली बहुत सी वस्तुएँ इस श्रेणी की हैं कि इनका निर्माण भारत के गावों में कुटीर एवं लघु उद्योग स्थापित कर बड़ी ही आसानी से किया जा सकता है। दरअसल, कुटीर एवं लघु उद्योंगों के सामने सबसे बड़ी समस्या अपने उत्पाद को बेचने की रहती है। इस समस्या का समाधान करने हेतु एक मॉडल विकसित किया जा सकता है, जिसके अंतर्गत लगभग 100 ग्रामों को शामिल कर एक क्लस्टर (इकाई) का गठन किया जाय। 100 ग्रामों की इस इकाई में कुटीर एवं लघु उद्योगों की स्थापना की जाय एवं उत्पादित वस्तुओं को इन 100 ग्रामों में सबसे पहिले बेचा जाय। सरपंचो पर यह ज़िम्मेदारी डाली जाय कि वे इस प्रकार का माहौल पैदा करें कि इन ग्रामों में निवास कर रहे नागरिकों द्वारा इन कुटीर एवं लघु उद्योगों में निर्मित वस्तुओं का ही उपयोग किया जाय ताकि इन उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुओं को आसानी से बेचा जा सके। तात्पर्य यह है कि स्थानीय स्तर पर निर्मित वस्तुओं को स्थानीय स्तर पर ही बेचा जाना चाहिए। ग्रामीण स्तर पर इस प्रकार के उद्योगों में शामिल हो सकते हैं – हर्बल सामान जैसे साबुन, तेल आदि का निर्माण करने वाले उद्योग, चाकलेट का निर्माण करने वाले उद्योग, कुकी और बिस्कुट का निर्माण करने वाले उद्योग, देशी मक्खन, घी व पनीर का निर्माण करने वाले उद्योग, मोमबत्ती तथा अगरबत्ती का निर्माण करने वाले उद्योग, पीने की सोडा का निर्माण करने वाले उद्योग, फलों का गूदा निकालने वाले उद्योग, डिसपोज़ेबल कप-प्लेट का निर्माण करने वाले उद्योग, टोकरी का निर्माण करने वाले उद्योग, कपड़े व चमड़े के बैग का निर्माण करने वाले उद्योग, आदि इस तरह के सैंकड़ों प्रकार के लघु स्तर के उद्योग हो सकते है, जिनकी स्थापना ग्रामीण स्तर पर की जा सकती है। इस तरह के उद्योगों में अधिक राशि के निवेश की आवश्यकता भी नहीं होती है एवं घर के सदस्य ही मिलकर इस कार्य को आसानी सम्पादित कर सकते हैं। परंतु हाँ, उन 100 ग्रामों की इकाई में निवास कर रहे समस्त नागरिकों को उनके आसपास इन कुटीर एवं लघु उद्योग इकाईयों द्वारा निर्मित की जा रही वस्तुओं के उपयोग को प्राथमिकता ज़रूर देनी होगी। इससे इन उद्योगों की एक सबसे बड़ी समस्या अर्थात उनके द्वारा निर्मित वस्तुओं को बेचने सम्बंधी समस्या का समाधान आसानी से किया जा सकेगा। देश में स्थापित की जाने वाली 100 ग्रामों की इकाईयों की आपस में प्रतिस्पर्धा भी करायी जा सकती है जिससे इन इकाईयों में अधिक से अधिक कुटीर एवं लघु उद्योग स्थापित किए जा सकें एवं अधिक से अधिक रोज़गार के अवसर निर्मित किए जा सकें। इन दोनों क्षेत्रों में राज्यवार सबसे अधिक अच्छा कार्य करने वाली इकाईयों को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार प्रदान किए जा सकते हैं। इस मॉडल की सफलता सरपंचो एवं इन ग्रामों में निवास कर रहे निवासियों की भागीदारी पर अधिक निर्भर रहेगी।      

 

केंद्र सरकार ने अभी तक जो भी क़दम उठाए हैं, वे सभी सही दिशा में जा रहे हैं एवं  इनके परिणाम स्वरूप देश में आर्थिक गतिविधियों में कुछ-कुछ तेज़ी भी दिखाई देने लगी है। परंतु, केंद्र सरकार द्वारा लिए गए कुछ क़दमों का प्रभाव मध्यम अवधि एवं लम्बी अवधि में देखने को मिलेगा। अल्पक़ालीन अवधि में वस्तुओं की माँग निर्मित करना अति आवश्यक है। इसलिए रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर उत्पन्न करना भी बहुत आवश्यक है। यह कार्य ग्रामीण इलाक़ों में लघु एवं कुटीर उद्योगों को अधिक से अधिक संख्या में स्थापित कर शीघ्रता से किया जा सकता है।

 

हमारे देश की अर्थव्यवस्था मुख्यतः उपभोग आधारित है। अतः प्रयास करने होंगे कि देश में किस प्रकार शीघ्रता से वस्तुओं के उपभोग की मात्रा बढ़े। इसके लिए यदि GST  की दरों को पुनर्निरधारित करने की आवश्यकता पड़े तो इन्हें युक्तिसंगत बनाया जाना चाहिए। कोरोना महामारी के बाद देश के नागरिकों की आय बहुत कम हुई है। हालाँकि केंद्र सरकार ने बहुत बड़ी तादाद में देश के ग़रीब वर्ग तक आर्थिक मदद पहुँचाई है परंतु अब वस्तुओं की माँग उत्पन्न करने के लिए देश में निर्मित वस्तुओं की एक तो निर्माण लागत कम करने हेतु प्रयास करने होंगे और दूसरे करों को युक्तिसंगत बनाकर भी इन वस्तुओं को उपभोक्ता तक सस्ती दरों पर पहुँचाया जा सकता है। इससे उत्पादों की माँग शीघ्रता से निर्मित होने लगेगी एवं अंततः रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर भी निर्मित होने लगेंगे।

 

 

प्रह्लाद सबनानी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here