सुरेन्द्र नाथ गुप्ता
दशरथ वेद के प्रतीक हैं, उनकी तीन रानियाँ अध्यात्म के तीन मार्ग हैं-कौशल्या ज्ञान मार्ग, सुमित्रा भक्ति मार्ग और कैकेयी कर्मकांड मार्ग

राम भगवान हैं – ज्ञान और अक्षय सुख के भंडार
लक्ष्मण – वैराग्य
सीता – भक्ति व शान्ति
रावण – लोभ व मोह
जनकपुर मॆं सीता के भवन का नाम ‘सुन्दर भवन’ है | जहाँ भक्ति होती है वहीँ सुख, सुन्दरता, शान्ति और आनंद होता है |
अयोध्या मॆं, सीता-राम के भवन का नाम ‘कनक भवन’ है | राम को बनवास हुआ तो सीता (भक्ति) ने राम के लिए कनक भवन (स्वर्ण के सुखों) का त्याग कर दिया | वन में रावण ने मारीच को कनक मृग बना कर सीता के पास भेजा | सीता ने राम से कनक मृग मार कर लाने को कहा | ये अयोध्या वाली सीता नही है, उसकी छाया है इसीलिये नकली सीता (भक्ति) ने कनक (स्वर्ण) मृग के लिए राम (ज्ञान) को अपने से दूर् किया| मारीच ने मरते वक्त लक्ष्मण का नाम पुकारा तो सीता समझी कि राम पर विपत्ति आयि है| सीता तो राम की आवाज़ पहचानती थी परन्तु मारीच की आवाज़ से भ्रम क्यों हुआ? ये तो सीता की नकली छाया थी | नकली भक्ति भगवान को नहीं पहचान सकती | लक्ष्मण ने कहा कि माता जिनका नाम लेने से सब संकट दूर् हो जाते है, उन पर भला संकट कैसे आ सकता है | लक्ष्मण (वैराग्य) ने सत्य को पहचाना परन्तु सीता नकली थी इसलिए नही पहचान सकी और उसने मर्म वाचन कह कर लक्ष्मण को भी अपने से दूर् कर दिया | तुलसी ने लिखा, ” मर्म वचन तब सीता बोला” | बोला शब्द पुर्लिंग है और इसलिए प्रयोग किया गया क्योंकि ये शब्द सीता ने नही अपितु सीता का प्रतिरूप जो सीता का साया था उसने बोला था |
राम ने लक्ष्मण को सीता की रक्षा हेतु छोड़ा था | जब तक लक्ष्मण (वैराग्य) सीता के समीप रहा, रावण (लोभ) कुछ नहीं कर सका | यदि भौतिक सुख (स्वर्ण) प्राप्ति के प्रयास करते हुए उसमें आसक्ति न हो, अर्थात वैराग्य भाव से प्रयास किये जाएँ तो लोभ (रावण) कुछ नही बिगाड़ सकता | लेकिन जैसे ही नकली सीता (भक्ति) ने राम (ज्ञान) और लक्ष्मण (वैराग्य) दोनो को हटाया, रावण (लोभ) सीता का हरण करके कनक की लंका में ले गया | कनक मृग की आसक्ति ने नकली सीता (भक्ति/शान्ति) को कनक की लंका में कैद करा दिया | भौतिक सुखों का मोह अधिकाधिक जकड़ता जाता है, इच्छाये बढ़ती जाती हैं और शान्ति छिनती जाती है|
रावण अकूत सम्पत्ति का स्वामी था, सोने की लंका थी, सभी दैविक और आसुरी शक्तियाँ उसके नियंत्रण में थीं और पृथ्वी से स्वर्ग तक के समस्त भौतिक सुख उसको उपलब्ध थे, परन्तु उसे शान्ति नहीं थी | लंका में प्रवेश करने से पहले हनुमान जी सोचते हें
“पुर रखवारे देख् बहु, कपि मन कीन्ह विचार |
अति लघु रुप धरि निशि मह, नगर करौ पेसार ||”
स्वर्ण व सम्पत्ति की चोरी होने या छीने जाने का डर सदैव सदैव सताता रहता है अतः उसकी रक्षा हेतु रक्षक रखने पड़ते हें | अति सम्पत्ति – विपत्ति का पर्याय होती है | रावण ने शान्ति पाने के लिए सीता का हरण किया, परंतु स्वर्ण का मोह नही त्याग सका, अतः असली शान्ति नहीं मिलीं |
रावण (मोह व लोभ) ने राम (ज्ञान) की सीता (शान्ति) का हरण किया | सीता (शान्ति) की पुनः प्राप्ति के लिए रावण (मोह व लोभ) का नाश अनिवार्य था | शान्ति (भक्ति) प्राप्ति के लिए स्वर्ण (भौतिक सुखों) का मोह त्यागना ही होगा, परन्तु मोह त्याग का अर्थ केवल भौतिक सुखों में आसक्ति का त्याग अर्थात वैराग्य भाव उत्पन्न करना है अपने दयित्व से भागना नहीं | यही है रामायण का सार और यही है गीता का निश्काम कर्म योग |