भारत के लगभग सभी राज्यों में आई फ्लू तेजी से फैल रहा है। स्वास्थ्य क्लीनिकों का डेटा बताता है कि इन दिनों हर 5वें व्यक्ति में से 4 आंखों के संक्रमण से पीड़ित हैं। विशेषज्ञों की मानें तो आंखों का संक्रमण एक वायरस जनित रोग है। जो तेज गर्मी, बारिश, बाढ़ और रुके हुए पानी की स्थिति में तेजी से फैलता है। इसे पिंक आई या मैड्रस आई के नाम से भी जाना जाता है।
कंजक्टिवाइटिस आंखों का सफेद वाला भाग जिसे कंजक्टिवा कहते हैं उसमें होने वाला संक्रमण है। तीव्र संक्रमण होने से आंखें लाल होने के साथ सूज जाती हैं और दर्द होता है। डॉक्टरों के अनुसार व्यस्कों की तुलना में बच्चों में इसका संक्रमण तेजी से फैलता है। वे लोग जो यात्रा के लिए पब्लिक सिस्टम मेट्रो, बस, ट्रेन का प्रयोग करते हैं वो अधिक संवेदनशील होते हैं।
ऐसे में यात्रा के दौरान संक्रमित सतहों को छूने के बाद हाथों को सही से सेनेटाइज करके ही आंखों को छूना चाहिए। आमतौर पर कंजक्टिवाइटिस 3-4 दिनों में सही हो जाता है और व्यक्ति की आंखों की रोशनी पर कोई असर नहीं पड़ता है। लेकिन एम्स के विशेषज्ञों की मानें तो आई फ्लू के समय बरती गई लापरवाही और बिना डॉक्टरी सलाह के उपचार हमेशा के लिए आंखों की रोशनी छीन सकता है। हाल ही में एआईआर पर छपी रिपोर्ट में एम्स के डॉक्टर जेएस टिटियाल ने चेताया कि कंजक्टिवाइटिस होने पर यदि मरीज बिना डॉक्टरी परामर्श के स्टेरॉयड युक्त आईड्रॉप का इस्तेमाल करता है तो वह अंधा हो सकता है। डॉ. टिटियाल कहते हैं आज बाजार में कई स्टेरॉयड युक्त आई ड्रॉप उपलब्ध है। जिनका लंबे समय तक प्रयोग करने से कॉर्निया पर धब्बे आने लगते हैं और साथ ही आंखों पर दवाब बढ़ने का खतरा रहता है।
जिससे आंखों की रोशनी जा सकती है। उन्होंने कहा कि एम्स ने अपने उपचार प्रोटोकॉल में स्टेरॉयड को शामिल नहीं किया है और इसे बहुत ज्यादा जरुरत होने पर डॉक्टर की सलाह पर ही दिया जाना चाहिए।
उन्होंने चेतावनी दी कि हैवी स्टेरॉयड वाले आईड्रॉप शीघ्र लाभ तो देते हैं, लेकिन बाद में मरीजों में आंखें खराब होने की संभावना को बढ़ाते हैं। इसलिए बेहतर है कि कंजक्टिवाइटिस से बचने के लिए स्टेरॉयड की जगह बचाव के अन्य तरीकों को अपनाया जाए साथ ही जनसंपर्क में कमी, जनयातायात प्रयोग में कमी की जाए। तभी आंखों के संक्रमण से होने वाले नकारात्मक प्रभावों से बचा जा सकता है।
सीमा अग्रवाल