बच्चों की रचनात्मकता को आकाश देने का ‘प्रयास’

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-ः ललित गर्ग:-
शिक्षा मंत्रालय स्कूली विद्यार्थियों को वैज्ञानिक पद्धतियों और प्रयोगों से परिचित करा कर उन्हें अनुसंधान और खोज का अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से ‘प्रयास’ यानी ‘प्रमोशन ऑफ रिसर्च एटीट्यूड इन यंग एंड एन्सपायरिंग स्टूडेंट्स’ योजना शुरू करने जा रहा है। इस योजना का मकसद युवा विद्यार्थियों के बीच वैज्ञानिक चिंतन उत्पन्न करना और साक्ष्य आधारित विज्ञान, प्रक्रिया, नवीनता और रचनात्मकता का विकास करना है। छात्रों की रचनात्मकता और कल्पनाशीलता को खुला आकाश देने का यह ‘प्रयास’ सार्थक है। इससे भारत की स्कूली शिक्षा में व्यापक सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे और इससे शिक्षा की अपूर्णताएं दूर हो सकेगी।
किसी भी बच्चे के भीतर रचनात्मकता, कौशल, मौलिकता एवं कार्य-क्षमता की असीमित संभावनाएं होती हैं। अगर उसे एक सीमित ढांचे के भीतर समेट दिया गया है तो उसकी प्रतिभा भी उसी दायरे में सिमट कर रह जाती है। इसलिए बचपन और किशोरावस्था में ही रुचियों की पहचान करके अगर किसी बच्चे को उसकी रुचि के क्षेत्र को जानने-समझने और कुछ करने का अवसर दिया जाए तो पूरी संभावनाएं है कि भारी तादाद में बच्चों की प्रतिभा सामने आएगी और उसका लाभ देश और समाज को मिलेगा। हालांकि शिक्षा व्यवस्था में यह एक बुनियादी पक्ष होना चाहिए और कुछ हद तक इसका खयाल रखा भी गया है, मगर अब सरकार औपचारिक रूप से इस दिशा में एक ठोस पहल करने जा रही है।
हम सब कुछ नहीं कर सकते। पर यह भी सच है कि हम जितना खुद की क्षमताओं के बारे में सोच रहे होते हैं, उससे कहीं अधिक कर सकते हैं। कितनी ही बार हम केवल यही सोच कर पीछे हट जाते हैं कि हम से नहीं होगा। हमसे जो कम हैं, वे आगे बढ़ जाते हैं और हम एक कदम नहीं बढ़ा पाते। यह स्थिति विद्यार्थी जीवन की एक त्रासदी है, विडम्बना है। अब तक की शिक्षा इन बुनियादी बातों पर ध्यान नहीं दे पा रही थी, अब इस दिशा में प्रयास शुरु हुआ है तो उसका स्वागत होना ही चाहिए। यह एक तथ्य है कि बच्चों और किशोरों में खोजने और सीखने की प्रक्रिया काफी तीक्ष्ण होती है। खासकर अगर पढ़ाई-लिखाई के दौरान उनकी रुचि के विषय को निर्बाध तरीके से विकसित होने दिया जाए तो उनकी रचनात्मकता अक्सर कुछ नया खोज लाती है। लेकिन हमारे यहां निर्धारित पाठयक्रम ज्यादातर बच्चों के लिए शिक्षण के ढांचे का एक अनविार्य हिस्सा होता है और उसी के मुताबिक उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी करनी होती है। किताबी ज्ञान से आगे बढ़ने की स्थितियां नगण्य होने से बच्चों की प्रतिभा का समुचित प्रस्फुटन एवं प्रकटीकरण नहीं हो पाता। इसमें कई वैसे बच्चों की प्रतिभा दबी रह जाती है, जिनकी अभिरूचियों को सही दिशा और उसे समझने का अवसर नहीं मिल पाता है। बल्कि इसके उलट ऐसे मामले आम हैं, जिनमें स्कूली शिक्षा के दौरान कई बार अभिभावक बच्चों को ऐसे विषयों की पढ़ाई में झोंक देते हैं, जिसे उन्हें जबरन पढ़ना पड़ता है। यह मान लिया जाता है कि निर्धारित पाठयक्रम और अभिभावकों की इच्छा के मुताबिक ही बच्चों की शिक्षा-दीक्षा होनी चाहिए, उन्हें अपनी पसंद के विषय में कुछ नया समझने और सीखने के प्रति हतोत्साहित किया जाता है।
राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने प्रयास योजना 2023-24 के लिए एक दिशा-निर्देश तैयार किया है। इसकी शुरुआत 10 अक्तूबर 2023 से होगी। ‘प्रयास के दिशा-निर्देश के अनुसार, इसका मकसद युवा छात्रों के बीच वैज्ञानिक चिंतन उत्पन्न करना, उनकी वास्तविक क्षमता, कौशल, क्षमता एवं प्रतिभा के अनुसार उन्हें आगे बढ़ने का अवसर देना है। मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. रॉबर्ट वूड्स ने कहा था, ‘आपकी प्राथमिकता में सबसे आगे कौन है? अगर आप हैं, तो आप जानबूझकर गलतियां नहीं करेंगे। अगर गलती सोची-समझी साजिश के तहत कर रहे हैं तो इसके नतीजे बुरे हो सकते हैं। अनजाने में हुई गलतियां, चाहे काम हो या बात, उन्हें समय रहते संभाला जा सकता है।’
प्रयास के अनुसार, प्रत्येक चयनित शोध प्रस्ताव के लिए कुल 50 हजार रुपये का प्रोत्साहन अनुदान किया जाएगा। इस राशि में से 10 हजार रुपये छात्र को दिए जाएंगे। एक से अधिक छात्र होने पर यह राशि बांट दी जायेगी। इसमें से छात्रों को शोधकार्य करने में सुविधा देने के लिए स्कूलों को 20 हजार और उच्च शिक्षण संस्थान के विशेषज्ञ को 20 हजार रुपये दिए जाएंगे। परियोजना में स्कूल के एक विज्ञान शिक्षक को पूरे कार्यकाल के दौरान छात्रों को उनके शोध कार्य में मार्गदर्शन के लिए नियुक्त किया जाएगा।
तमाम स्थितियों को देखने और उनका आकलन करने के बाद यह तथ्य बार-बार सामने आता रहा है कि अब शिक्षा को कोई नया रूप देना चाहिए। शिक्षा की अपूर्णता एवं अपर्याप्तता को दूर करने के लिये यह एक बहुत बड़ी अपेक्षा है। प्रयास ऐसी ही अपेक्षा को पूरा करने की दिशा में एक कदम है। अक्सर स्कूली शिक्षा के दौरान बहुत सारे बच्चों की रचनात्मक प्रतिभा का एक तरह से दमन हो जाता है। जो बच्चे ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में नई खोज के वाहक बन सकते हैं, वे एक बने-बनाए ढर्रे के अनुगामी बने रह जाते हैं। इस लिहाज से देखें तो ‘प्रयास’ की अहमियत इस रूप में दर्ज की जा सकती है कि इसमें व्यक्तिगत रूप सेे या समूहों में अनुसंधान या खोज करने के लिए विद्यार्थियों की क्षमता विकास पर जोर दिया गया है। दरअसल, बच्चे सबसे ज्यादा अपने आसपास के वातावरण को देख-समझ कर सीखते हैं। इसीलिये प्रयास योजना के अनुसार, इसमें किसी स्थानीय समस्या की पहचान कर उसका अध्ययन किया जाएगा। इसके पीछे के वैज्ञानिक कारणों की जांच करने एवं हल खोजने तथा किसी विचार, कल्पना या अवधारणा पर शोध करने पर जोर दिया गया है। जेन मास्टर मैरी जैक्श कहती हैं, ‘अपनी उलझनों का सामना करते हुए अनजान चीजों को गले लगाना हमें विकास की ओर ले जाता है। हमें आगे बढ़ाता है।’
 ‘प्रयास’ के अंतर्गत स्कूली छात्रों और शिक्षकों के साथ उच्च शिक्षण संस्थानों के एक विशेषज्ञ की सहायता से किसी स्थानीय समस्या का हल करने या अनुसंधान आधारित समाधान निकालने का प्रयास किया जाएगा। इसमें भाग लेने वाले शिक्षार्थियों की आयु 14-18 वर्ष होगी। उनका नौवीं से 11वीं कक्षा में अध्ययनरत होना अनिवार्य होगा। जाहिर है, अगर बच्चों और किशोरों के मनोविज्ञान की समझ रखने वाले विशेषज्ञों के सुचिंतित निर्देशन में सही दिशा में अवसर उपलब्ध कराए गए तो यह योजना विद्यार्थियों की कल्पनाशीलता और रचनात्मकता के आकाश को विस्तार देने के लिहाज से एक अहम पहल साबित हो सकती है। केवल जानने भर से कुछ नहीं होता। हमें उस पर काम भी करना पड़ता है। इसी तरह केवल सोचते रहने या इच्छाएं होने से कुछ हाथ नहीं आता। हमें उन चाहतों को पूरा करने की दिशा में भी कदम बढ़ाना होता है। पर होता यह है कि हमें करना बहुत कुछ होता है, पर हम करते कुछ भी नहीं हैं। इस तरह की शिक्षा प्रक्रिया के कारण विद्यार्थियों की समग्र प्रतिभा सामने नहीं आ पा रही थी, शिक्षा की इस कमी की ओर ध्यान गया है तो उसके परिणाम भी अच्छे देखने को मिलेंगे। शिक्षा के माध्यम से हम जो चाहते हैं, वैसे तत्व शिक्षा में डालने होंगे। बीज बोया जा रहा था बबूल का और अपेक्षा आम के फल की की जा रही थी, यह कैसे संभव होता? अब नयी शिक्षा नीति में इन बातों पर ध्यान दिया जा रहा हैै।

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