
इसको कहते लोग समोसा ,
उसको कहते लोग कचौड़ी |
लेकिन जिसमें मज़ा बहुत है ,
वह कहलाती गरम पकौड़ी |
गरम पकौड़ी के संग चटनी ,
अहा !जीभ में पानी आया |
रखी प्लेट में लाल मिर्च थी ,
तभी स्वर्ग सा सुख मिल पाया |
इतना खाया, इतना खाया ,
ख्याल जरा भी न रख पाया |
किन्तु बाद में पेट राम ने ,
मुझको जी भर खूब छकाया |
एक तरफ तो टॉयलेट था ,
एक तरफ मैं खड़ा बेचारा |
बार- बार कर स्वागत मेरा ,
टॉयलेट भी थक कर हारा |
घर के सभी बड़े बूढ़ों ने ,
आकर तब मुझको समझाया |
उतना ही खाना अच्छा है ,
जितना पेट हजम कर पाता |
ठूँस -ठूँस कर पेट भरोगे ,
कहाँ स्वस्थ तब रह पाओगे |
बीमारी को बिना दवा के,
ठीक नहीं फिर कर पाओगे |
इसीलिए तो कहा गया है,
खाना बस उतना ही खाओ |
गरम -गरम और बिलकुल सादा ,
जितना पूर्ण हज़म कर पाओ |