थाली में है रोली कुमकुम,पीला चंदन है।
करें तिरंगे की पूजा हम , शत अभिनंदन है||

गंगा के पानी से अब तक, श्रद्धा नाता है|
विन्ध्य, हिमालय,अरावली अब भी मुस्कराता है|
जहां नर्मदा माता के , जयकारे लगते हैं|
यमुना का जल लोगों को,अब भी ललचाता है|
सदियों से कृष्णा कावेरी, से अनुबंधन है||
जहाँ सतपुड़ा के जंगल में, मौसम इतराता|
डाल- डाल संगीत बजाती, हर पत्ता गाता|
आम नीम पीपल बरगद में ,ईश्वर की बस्ती|
सूरज किरणों की थाली में ,पूजन करवाता|
पुण्य भूमि के जन जीवन का,तन मन कंचन है||
हिंदु मुस्लिम मिल कर रहते, ईसाई भी यार |
अलग नहीं है किसी तरह भी ,सिक्खों का संसार |
तीजों त्यौहारों पर सब हैं ,आपस में मिलते,
खुशियों के मेले सजते तो ,मस्ती के बाजार |
ऐसी भारत भरत भूमि को, शत नत वंदन है||
दिन में राम अयोध्या से अब भी ऒरछा आ ते|
रास रचाते कृष्ण चंद्र मथुरा में मिल जाते|
अमरनाथ में बर्फानी बाबा का डेरा है|
पितृपक्ष में पितर अभी भी , दर्शन दे जाते|
जन -मन- गण में भारत के अब भी स्पंदन है||
बिना डरे सीमा पर लड़ते रहते सैनानी |
दुश्मन को काटा छांटा है,जब मन में ठानी |
आँख दिखने वाले की वह ,आँख फोड़ देते ,
बैरी को हर बार पड़ी है ,अब मुंह की खानी|
रंग मंच पर अब भारत का ,सुंदर मंचन है |