स्कूलों में असुरक्षित बच्चे

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unsafe studentsअरविंद जयतिलक­­­

उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी लखनऊ में एक शिक्षक की हैवानियत से गुरु-शिष्य का पावन रिश्ता फिर तार-तार हुआ है। शिक्षक के कुकृत्य से देश-समाज स्तब्ध है और मानवता शर्मसार। समझ से बाहर है कि जब शिक्षा स्थली में ही बच्चे सुरक्षित नहीं हैं तो फिर अन्यत्र उनकी सुरक्षा पर यकीन कैसे किया जा सकता है। एक शिक्षक का उत्तरदायित्व बच्चों को शिक्षित कर राष्ट्र के लिए सुयोग्य नागरिक तैयार करना है। लेकिन अगर उसका आचरण पशुओं और असुरों जैसा हो जाए तो फिर यह देश-समाज के लिए आघातकारी ही है। यह विचलित करने वाला है कि आरोपी शिक्षक ने पहले छात्रा को ट्यूशन पढ़ने के लिए विवश किया और फिर चाय में नशीला पदार्थ मिलाकर उसके साथ बलात्कार किया। यही नहीं जब छात्रा ने विरोध जताया तो धमकी भी दी की उसने अष्लील फिल्म बनायी है और वह उसे बदनाम कर देगा। लोकलाज के डर से छात्रा चुप रही। लेकिन कहते हैं न कि पाप छिपाए नहीं छिपता। मामला तब उजागर हुआ जब हैवान शिक्षक ने छात्रा का गर्भपात कराया और छात्रा की जान पर बन आयी। हो सकता है कि गुरु के वेश में हैवान शिक्षक को नौकरी से बर्खास्त कर जेल भेज दिया जाए। लेकिन शिक्षक की हैवानियत से जो गुरु-शिष्य रिश्ता कलंकित हुआ है वह किसी त्रासदी से कम नहीं है। गौर करें तो यह पहली बार नहीं है जब शिक्षा की स्थली में शिक्षक का घिनौना आचरण से देश-समाज शर्मिंदा हुआ है। अभी कुछ माह पहले ही देश का आईटी हब माने जाने वाले हाइटेक सिटी बंगलुरु के एक नामी स्कूल में छः साल की बच्ची के साथ बलात्कार की घटना अखबारों की सुर्खियां बनी। इस घिनौने कृत्य को अंजाम देने का आरोप भी स्कूल के ही एक स्केटिंग इंस्ट्रक्टर पर लगा। हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली, मध्यप्रदेश के दामोह और बवाना में भी स्कूली छात्राओं के साथ बलात्कार की घटना सामने आ चुकी है। आज आलम यह है कि देश के विभिन्न हिस्सों में इस तरह की घटनाएं विचलित कर रही हैं। याद होगा गत वर्ष पहले मथुरा में एक शिक्षक द्वारा अपनी शिष्या को डरा धमका कर कई दिनों तक दुराचार करने का मामला सामने आया। उड़ीसा के भुवनेश्वर में एक गुरुजन कहे जाने वाले शैतान शिक्षक दस साल की बच्ची के साथ ज्यादती करते पकड़ा गया। इस तरह की घटनाएं रेखांकित करती हैं कि हमारे शिक्षा मंदिर दूषित और संवेदनहीन होते जा रहे हैं। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का दर्जा प्राप्त है। अनादिकाल से उसे समाज व राष्ट्र का विधाता और युग निर्माता कहा जाता है। धार्मिक और ऐतिहासिक गं्रथों में उसकी महिमा की बखान किया गया है। वेद, पुराण, उपनिषद् और ब्राह्मण ग्रंथों में गुरुजनों की ज्ञान, शील, आचारण के हजारों आख्यान मौजूद हैं। लेकिन त्रासदी है कि शिक्षा के मंदिरों में गुरु का आचरण अब पहले जैसा नहीं रहा। वे संस्कारों की वर्जनाएं तोड़ समाज के मूल्य-प्रतिमानों को आघात पहुंचा रहे हैं। गुरु और शिष्य का पवित्र संवेदनात्मक रिश्ता जो कभी पिता-पुत्र व पिता-पुत्री के तौर पर परिभाषित होता था वह आज शिक्षा मंदिरों में कलंकित होने लगा है। हालात इतने बदतर हो गए हैं कि शिक्षा के मंदिर जहां चरित्र को गढ़ा-बुना जाता है, उदात्त भावनाओं को पंख दिया जाता है, वह आज खुद चरित्र के गहरे संकट से जुझ रहे हैं। जिन शिक्षा मंदिरों से ज्ञान की गंगा प्रवाहित होनी चाहिए वहां अब शारीरिक-मानसिक शोषण की व्यथाएं चीत्कारें मार रही हैं। अभी गत वर्ष पहले महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया कि देश में हर चौथा स्कूली बच्चा यौन शोषण का शिकार हो रहा है। हर ढ़ाई घंटे के दरम्यान एक स्कूली बच्ची को हवस का शिकार बनाया जा रहा है। यूनिसेफ की रिपोर्ट से भी उद्घाटित हो चुका है कि 65 फीसदी बच्चे स्कूलों में यौन शोषण के शिकार हो रहे हैं। इनमें 12 वर्ष से कम उम्र के लगभग 41‐17 फीसदी, 13 से 14 साल के 25.73 फीसदी और 15 से 18 साल के 33.10 फीसदी बच्चे शामिल हैं। यह सच्चाई हमारी शिक्षा व्यवस्था की बुनियाद को हिला देने वाली है। रिपोर्ट पर विश्वास करें तो स्कूलों में बच्चों को जबरन अंग दिखाने के लिए बाध्य किया जाता है। उनके नग्न चित्र लिए जाते हैं। दूषित मनोवृत्ति वाले अधम शिक्षकों द्वारा बच्चों को अश्लील सामग्री दिखायी जाती है। एक दौर था जब गुरुजनों द्वारा बच्चों में राष्ट्रीय संस्कार विकसित करने के लिए राष्ट्रिय महापुरुषों और नायकों के साथ अमर बलिदानियों के किस्से सुनाए जाते थे। इन कहानियों से बच्चों में आत्माभिमान जाग्रत होता था। उनमें समाज व राष्ट्र के प्रति निष्ठा और समर्पण का भाव विकसित होता था। लेकिन आज बच्चों में आदर्श भावना का संचार करने वाले खुद ही आदर्शहीनता से शापग्रस्त दिखने लगे हैं। आज हालात यह है कि शिक्षा मंदिरों में अराजक वातारवरण के कारण बच्चे डरे-सहमे हैं और स्कूल जाने से भी कतराने लगे हैं। उनके मन में खौफ पसर रहा है। सवाल यह उठता है कि ऐसे विकृत माहौल को जन्म देने के लिए कौन जिम्मेदार है? सिर्फ शिक्षक, समाज या हमारी संपूर्ण शिक्षा प्रणाली ही? सवाल यह भी है कि क्या इस तरह के अराजक माहौल में बच्चों में नैतिकता और संस्कार का भाव पैदा हो सकता है? जब शिक्षा देने वाले ही अनैतिक और आचरणविहीन होंगे तो फिर राष्ट्र की थाती बच्चों का चरित्र निर्माण कैसे होगा। गत वर्ष पहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा बच्चों के शोषण पर गहरी चिंता जताया गया। आयोग ने आपत्ति जाहिर करते हुए कहा कि बच्चों की सुरक्षा के निमित्त सरकार द्वारा सकारात्मक कोशिष नहीं की जा रही है। एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया की रिपोर्ट में भी शंका जतायी गयी कि शिक्षण संस्थाओं में बढ़ रहा यौन शोषण समाज को विखंडित कर सकता है। उसकी रिपोर्ट के मुताबिक देश की राजधानी दिल्ली में ही 68.88 फीसदी मामले छात्र-छात्राओं के शोषण से जुड़े पाए गए। ये आंकड़े समाज को शर्मिंदा करने वाले हैं। सोचा व समझा जा सकता है कि जब देश की राजधानियों में बच्चों के साथ इस तरह का व्यवहार हो रहा है तो दूरदराज क्षेत्रों में बच्चों के साथ क्या होता होगा। अभी गत वर्ष ही एक स्कूल में एक नेत्रहीन बच्चे को एक शिक्षक द्वारा जल्लादों की तरह पीटने की घटना इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया में सुर्खियां बनी। सवाल यह कि शिक्षकों द्वार इस तरह का अमर्यादित और घिनौने आचरण का प्रदर्षन क्यों किया जा रहा है? बेहतर होता कि शिक्षक समाज ऐसे गंभीर मसलों पर विमर्श करता और ऐसे शिक्षकों को शिक्षा स्थली से बाहर का रास्ता दिखाता जो शिक्षक कहलाने योग्य नहीं हैं। अभी पिछले वर्ष ही राष्ट्रिय शिक्षक शिक्षा परिशद (एनसीटीई) ने शिक्षकों के लिए मानक आचार संहिता पेश की। उद्देष्य था-छात्रों को मानसिक और भावनात्मक संरक्षण प्रदान करना। लेकिन जिस तरह शिक्षा के केंद्रों में बच्चों के शारीरिक शोषण घटनाएं बढ़ रही हैं उससे शिक्षा के सार्थक उद्देश्यों पर ग्रहण लगता जा रहा है। आज जरुरत इस बात की है कि सरकार और स्कूल प्रबंधन स्कूलों में बच्चों के साथ होने वाली ज्यादतियों और अप्रिय घटनाओं को रोकने के लिए ठोस नीति तैयार करें और साथ ही शिक्षकों की नियुक्ति से पहले उनके आचरण-व्यवहार का मनोवैज्ञानिक परीक्षण कराएं। बच्चे राष्ट्र की थाती हैं और उनके जीवन के साथ खिलवाड़ देश व समाज के लिए शुभ नहीं होगा।

 

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