कामयाबी के साथ मितव्ययता का संदेश भी हो

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मनोज कुमार

एक साल पहले जब कमल नाथ सरकार के हाथों मध्यप्रदेश की सत्ता और शासन आयी तो सबसे पहले चिंता इस बात की गई कि राजकोष खाली है. बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन नहीं है और नई सरकार से आम आदमी की अपेक्षाएं अधिक है. एक तरफ अपेक्षाओं की फेहरिस्त तो दूसरी तरफ इन अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए बजट का अभाव. ऐसे में नाथ सरकार के लिए आम आदमी को साधना सरल नहीं था लेकिन अनुभव के पिटारे ने छोटे-छोटे जतन किए और कुछेक अपेक्षाओं पर खरा उतरने की कोशिश की गई. 
कैलेंडर के मान से देखें तो नाथ सरकार आने वाली 17 तारीख को एक साल का कार्यकाल पूर्ण कर लेगी लेकिन सारे घटनाक्रम पर गौर करें तो लगभग 9 महीने ही नाथ सरकार को काम करने का अवसर मिला. पहले लोकसभा चुनाव और इसके तत्काल बार उपचुनाव पूर्ण कराना सरकार की जवाबदारी थी. खैर मोटामोटी मान लें तो एक वर्ष के कार्यकाल की मीमांसा करना चाहिए. कामयाबी की गीत के साथ मितव्ययता का संदेश दिया जाना प्रदेश की वर्तमान आर्थिक हालत के मद्देनजर बहुत जरूरी है. 
कामयाबी की गरज से जब आप सरकार के कार्यकाल को देखते हैं तो कई मोर्चे पर सरकार कामयाब होती दिखती है. पहला तो यह कि जो भी योजनाएं बनी, वह धरातल पर थी. लोकप्रियता बटोरने के लिहाज से कोई बड़ी योजना या घोषणा नहीं दिखती है. नाथ सरकार ने कुछ कड़ुवे फैसले भी किए जिससे उनकी लोकप्रियता का ग्राफ गिरा. एक साल की नाथ सरकार और बीते 15 साल की भाजपा सरकार के कार्यकाल से तुलना करना भी उचित नहीं है. हालांकि राजनीति में इतनी बारीक लाईन कोई नहीं देखता है और आम आदमी को चश्मा पहना कर वही दिखाया जाता है, जो उसे दिखाना है. 
नाथ सरकार ने कई मोर्चे पर मध्यप्रदेश को नई दृष्टि से देखने का अवसर दिया है. मसलन, इंदौर में हुआ मैंगनीफिशेंट-एमपी एक ऐसा आयोजन था जो तामझाम से दूर उद्योग-धंधे को मध्यप्रदेश में लगाने पर केन्द्रित रहा. इसका एक कारण यह भी था आयोजन के करीब करीब 6 माह पहले से मुख्यमंत्री कमल नाथ उद्योगपतियों से वन-टू-वन हो रहे थे और मध्यप्रदेश में उद्योगों की मूलभूत जरूरतों को समझ कर उन बाधाओं को दूर करने में जुटे हुए थे. इसका परिणाम यह निकला कि उद्योगपतियों ने मध्यप्रदेश में रूचि दिखाई. मुख्यमंत्री कमल नाथ उद्योग स्थापित करने वालों के लिए रेडकारपेट बिछाने को तैयार थे तो उनकी शर्त थी कि उद्योग लगाने पर सहमति दे दी तो इसे पूरा भी करना होगा. उद्योगों में स्थानीय युवाओं को रोजगार देने की शर्त भी मध्यप्रदेश सरकार की थी. नाथ सरकार के भरोसे की बांहें थामे उद्योगपति जमीन पर उतरने लगे हैं और आने वाले समय में मध्यप्रदेश एक बड़े औद्योगिक राज्य के रूप में स्थापित होगा, इसकी उम्मीद कर सकते हैं. 
नाथ सरकार के एक वर्ष के बड़े फैसलों पर नजर डालें तो राईट टू हेल्थ, राईट टू वॉटर एक्ट, महिलाओं की प्रापर्टी में भागीदारी, आदिवासियों का उत्थान एवं उनकी बोली-भाषा के संरक्षण-संवर्धन की कोशिश तथा मिलावटखोरों के खिलाफ सतत अभियान चलाकर आम आदमी के भरोसे को जीतने की कोशिश की गई. महिला सुरक्षा पर भी सरकार का खासा ध्यान रहा. उधर किसानों को वचन के मुताबिक कर्जमुक्त किए जाने का सरकार का दावा है. युवाओं को रोजगार दिलाने तथा उनके लिए कौशल उन्नयन के विशेष जतन किए जाने के लिए युवा स्वाभिमान योजना का आगाज किया गया. यह शायद पहला अनुभव होगा कि किसी योजना के आरंभ होने के बाद स्वयं मुख्यमंत्री संतुष्ट नहीं होते हैं तो उसका पुर्नरीक्षण कर पुन: योजना तैयार की जाती है. ऐसा युवा स्वाभिमान के मामले में हुआ. स्कूल शिक्षा को लेकर भी मुख्यमंत्री कमल नाथ सख्त दिखे. विधान परिषद का गठन किए जाने की कवायद जारी है. संभव है कि शीतकालीन सत्र में इस पर कोई बड़ी पहल हो.
इन फैसलों से जहां कमल नाथ की प्रतिबद्धता दिखती है तो उन्हें इस बात का संदेश देने की जरूरत है कि मध्यप्रदेश एक मितव्ययी प्रदेश के रूप में अपनी छाप छोड़ेगा. तुष्टिकरण की नीति के तहत पिछले सालों में इतनी संस्थाएं खड़ी कर दी गई कि वे सफेद हाथी के अलावा कुछ नहीं हैं. बहुत सारी अनुपयोगी या दोहरे-तिहरे रूप में संचालित संस्थाओं, निगम, मंडल को बंदकर खर्च में कटौती किया जाना प्रदेश की प्राथमिकता में लाना जरूरी होगा. पिछली सरकार ने नए वर्ष पर विभिन्न विभागों द्वारा प्रकाशित किए जाने वाले कैलेंडर और डॉयरियों के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया था. केवल शासकीय मुद्रणालय द्वारा प्रकाशित डायरी एवं कैलेंडर को उपयोग में लाए जाने का निर्देश था. इस निर्णय को भी जस का तस रहने दिया जाना चाहिए. इससे अर्थ की बचत तो होती ही है. एकरूपता भी बनी रहती है. विभिन्न विभागों में वाहनों के नाम पर भी बीते सालों में फिजूलखर्ची बढ़ी है. पुल की गाडिय़ां निर्धारित होना चाहिए तथा चार लोगों के बीच एक कार का आवंटन हो. अभी देखा यह जा रहा है कि जूनियर रैंक के अधिकारी को भी गाड़ी आवंटित है. इस पर रोक लगाया जाना अनुचित नहीं होगा. इसी तरह सरकारी आयोजनों के लिए महंगे होटलों पर भी रोक लगे. देखने में यह खर्चे जरूरी और छोटे होते हैं लेकिन खजाना भरने के लिए यह छोटे प्रयास भी कारगर हो सकते हैं. कुछेक तल्ख फैसलों पर ऐतराज करने के स्थान पर उसकी परख करना चाहिए.  कमल नाथ एक अनुभवी राजनेता हैं और उनके पास लंबा अनुभव है जिसका लाभ मध्यप्रदेश को संवारने में मिलेगा. अभी एक साल का ही समय हुआ है और सभी अपेक्षाएं पूरी हो जाएं, यह उम्मीद करना जल्दबाजी होगी. 
कोशिशें छोटे प्रयासों से शुरू होती हैं और एक बड़ी कामयाबी में बदल जाती है. अभी सरकार को कोई मोर्चे पर लडऩा है और यह विपक्ष का दायित्व है कि वह सरकार के साथ खड़ी होकर उन कार्यों और निर्णयों की आलोचना करे जो प्रदेश का अहित करता हो. प्रदेश के हित में लिए जाने वाले फैसले पर विपक्ष की मुहर भी लगनी चाहिए क्योंकि मध्यप्रदेश की राजनीति में यह पुरानी रवायत रही है. उम्मीद की जानी चाहिए कि मध्यप्रदेश बदलते वक्त का संदेश दे क्योंकि यह प्रदेश देश का ह्दय प्रदेश है.     

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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