सुदर्शन जी की चिंता का मुख्य विषय था गौवंश

0
194

भाजपा के आगामी चुनावी घोषणापत्र में स्पष्ट होना चाहिए गौवंश वध पर पूर्ण प्रतिबन्ध की बात ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

भारत में गौवंश वध और उसका सरंक्षण एक राष्ट्रीय, चिंता, बहस और सामाजिक सरोकार का ज्वलंत विषय सदा से रहा है और वर्तमान में यह विषय और अधिक महत्वपूर्ण व ज्वलंततम होता जा रहा है. संघ के पूर्व सरसंघचालक और हाल ही में स्वर्गवासी हुए कुप्पहल्ली सीतारमैया सुदर्शन के ध्यान, उद्बोधनों और कार्य में गौवंश का विषय सदा सदा ही एक प्रखर विचार के रूप में प्रकट होता रहा है. आर एस एस के पूर्व सरसंघचालक सुदर्शन जी सम्पूर्ण संघदर्शन पर अपने प्रभावी विचार रखते थे व सर्वव्यापी दृष्टि के धनी थे किंतु गौवंश उनकी चिंताओं और कार्यों का एक प्रमुख केन्द्र बिंदु रहा है. उनके जीवन में उनकें द्वारा किये गएँ अनथक प्रवासों को देखें, व्यक्त विचारों को पढ़ें, उनके लेखन कार्य का अध्ययन करें, उनसे प्रेरित अभियानों की समीक्षा करें तो सागर स्वरुप संघ उनके उन्नत ललाट और चमकती महत्वाकांक्षी किंतु संवेदनशील आँखों में लहराता परिलक्षित होता था. संघ के सामरिक विचारों के ध्वजवाहक होते हुए गौवंश सरंक्षण का विचार सुदर्शन जी के संघ ध्वज पर सदा वैसा ही विराजित रहा जैसा महाभारत के युद्ध के दौरान लीलाधर, योगाचार्य श्रीकृष्ण द्वारा चलाये जा अर्जुन के रथ की ध्वजा पर हनुमान एक आशीर्वाद के रूप में विराजित थे.

गोवंश वध पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगानें और केन्द्रीय कानून बनानें का उनका महत्वाकांक्षी प्रस्ताव उनके जीवनकाल में क्रियान्वित नहीं हो पाया इसका खेद, दुःख और क्षोभ उन्हें और उनसे प्रेरित सभी स्वयंसेवकों और राष्ट्र को सदा रहेगा. किंतु अब कम से कम भाजपा शासित इस प्रस्ताव पर सख्त कानून बनाएँ और उस पर अमल करें यह आवश्यक भी है सामयिक भी और ऐसा करना दिवंगत पूर्व सरसंघचालक सुदर्शन जी को सच्ची श्रद्धांजलि भी होगा.स्पष्ट यद्दपि मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने गौवंश वध निरोधक कानून पारित किया है तथापि इस प्रदेश में उस कानून के क्रियान्वयन में चल रही लेतलाली और लापरवाही चिंता का विषय है. मध्यप्रदेश सरकार द्वारा यह गौवंश वध कानून प्रावधानों की दृष्टि से भी कमजोर ही है. दिवंगत सुदर्शन जी द्वारा गौवंश वध पर पूर्ण प्रतिबन्ध के विषय में जिस प्रकार के केन्द्रीय क़ानून की कल्पना की गई थी उसमें गौवध पर मानव वध जैसे कानून लगाएं जाने की बात थी. सुदर्शन जी द्वारा सोचे गए केन्द्रीय कानून में अवैध गौवंश के परिवहन में प्रयोग किये जाने वाले वाहन को राजसात करने के वैसे ही प्रावधान का उल्लेख था जैसा कि वन सरंक्षण के अंतर्गत अवैध लकड़ी परिवहन में प्रयोग किये जा रहे वाहन के सम्बन्ध मंक होता है. वर्तमान में भारतीय गणराज्य के ४८ वें अनुक्क्षेद में गौवंश वध पर प्रतिबन्ध का प्रावधान बहुत ही लचर और कमजोर स्थिति में किया गया है. वर्तमानं में भारत में पशुवध राज्यों के अधिकार वाला विषय है तथा इस सम्बन्ध विभिन्न राज्यों में अलग-अलग कानून है जिनमें बहुत अधिक विरोधाभास है. सुदर्शन जी द्वारा जिस गौवध के सन्दर्भ में जिस केन्द्रीय कानून की अपेक्षा की गई थी उसमें इन सभी कानूनी विरोधाभासों को समाप्त कर एक व्यापक कानून बनानें का संकल्प था जो उनकी मृत्यु पर्यन्त अधूरा ही रहा.

इस राष्ट्र में जहां गौवंश इस देश में रहने वाले ८५% निवासियों के आस्था, आराधना, श्रद्धा, विश्वास और गहरे धार्मिक सरोकारों से जुड़ा विषय रहा है वहाँ इस आस्था, श्रद्धा और धार्मिक सरोकार की चिंता केन्द्र सरकार को कितनी है इस प्रश्न का जवाब बड़ा ही हास्यास्पद किंतु क्षोभ जनक है. इस देश के पचासी प्रतिशत मूल निवासियों से और उनकी गहन प्रागेतिहासिक आस्थाओं से जुड़े इस विषय की उपेक्षा और अनदेखी की भयावहता को हम इसी बात से से समझ है कि पिछले वर्ष भारतीय योजना आयोग के पशुपालन एवं डेयरी कार्यदल ने देश से गोमांस निर्यात की अनुमति दिए जाने की कथित सिफारिश कर दी थी. योजना आयोग के कार्यदल ने १२वीं पंचवर्षीय योजना२०१२-१७ के दौरान पशुपालन एवं डेयरी क्षेत्र के विकास के लिए प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में कहा था कि गौमांस निर्यात पर प्रतिबन्ध हटने से इस देश के विदेशी मुद्रा भण्डार पर सकारात्मक प्रभाव होंगे. उसने यह भी कहा था कि देश में इस समय जो गोमांस के निर्यात पर प्रतिबंध है वह प्रतिगामी है तथा उसे तत्काल प्रभाव से खत्म किया जाना चाहिए. योजना आयोग के अनुसार इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए पूरे देश में एक जैसा कानून बनाया जाना चाहिए. इसके कार्यदल ने कहा है कि भारत दुनिया में मांस उत्पादन की दृष्टि से दुनिया में पहले नम्बर पर आ सकता है लेकिन इसके लिए क्षमता का पूरा उपयोग जरूरी है और इसके लिए गौमांस निर्यात आवश्यक है.

भगवान महावीर की भूमि भारत देश में इस समय३० ऎसे बूचड खाने हैं जहां से मांस निर्यात होता है. इसके अलावा मांस परिष्करण के ७७ संयंत्र है जिनसे ५६ देशों में निर्यात होता है. यहाँ यह देख सुनकर स्झार्म से गड़ने और मरनें का मन होता है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक गोमांस के निर्यात पर रोक हटाने की मांग उस कार्यदल की ओर से की गई है जिसे पशु संवर्धन के बारे में सुझाव देने थे. पशु संवर्धन के स्थान पर जिस प्रकार इस आयोग ने पशु शोषण के सुझाव दिये है वे बड़े ही क्षोभ जनक थे. केन्द्रीय योजना आयोग की इस शर्मिदा और पानी पानी कर देनें वाली रिपोर्ट में आभास होता है जैसे पूरा देश भूखों मर रहा हो और पवित्र गाय का माँस बेच देने से पूरे देश को भोजन मिल जाएगा. इस देश के योजना आयोग में बैठे अधिकारियों और इसका नेतृत्व कर रहे इसमें बैठे राजनेताओं को इस देश की जनता का यह जवाब समझ लेना चाहिए कि भोजन तो छोडिये यदि वे पूरे देश मेवों, मिठाइयों, व्यजनों से भी पाट देने की भी बात करें तो भी हम इस जलील और नीच प्रस्ताव के लिए तैयार नहीं होंगे और इसके पारित होने पर मर मिटने के लिए सड़कों पर लेट, बिछ जायेंगे.

यहाँ जब हम दिवंगत के सी सुदर्शन जी को श्रद्धांजलि स्वरुप गौवंश विषय की चर्चा कर रहें है तब यह उल्लेख भी आवश्यक हो जाता है कि भाजपा शासित राज्यों में अन्य भारतीय राज्यों की अपेक्षाकृत तो प्रयास किये जा रहें है किंतु समय की दृष्टि से और अधिक प्रयासों, कानूनों, क्रियान्वयनों और चिंता करनें की परम आवश्यकता प्रतीत होती है.

केन्द्रीय भाजपा कार्यकारिणी भी गौवंश के विषय में सख्त प्रस्तावों को अपने कार्यकारी एजेंडा में सम्मिलित करे और आने वालें लोकसभा चुनावों के मद्देनजर तैयार होने वालें चुनावीं घोषणा पत्र में इस विषय को समुचित स्थान प्रदान करें यह आशा सामयिक और समीचीन प्रतीत होती है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,673 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress