हिन्दु होने का आरोप लगा कर सुनील जाखड किए पंजाब की राजनीति से बाहर

– डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

                         यह सुविदित ही है कि लगभग चार महीना पहले जब पंजाब में सोनिया कांग्रेस अपने ही मुख्यमंत्री को अपदस्थ करने के षड्यंत्र में लगी हुई थी तो नया मुख्यमंत्री कौन हो , इस पर भी उत्तेजित बहस हो रही थी । मुख्यमंत्री के लिए सुनील जाखड का भी नाम कांग्रेस के भीतर से प्रमुखता से आने लगा था । वे पंजाब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके थे । राजनीति में लम्बे अरसे तक रहने के बावजूद उनका दामन पाक साफ़ माना जाता है । पंजाब में कुछ लोग कहते रहते हैं कि पंजाब का मुख्यमंत्री तो जाट ही बन सकता है । इस लिहाज़ से जाखड भी जाट हैं । मुख्यमंत्री की दौड़ में नवजोत सिंह सिद्धु और सुखजिंदर रंधावा भी दावेदार थे । चरनजीत सिंह चन्नी का नाम भी कहीं कहीं चर्चा में आ जाता था । ऐसी हालत देख कर  सोनिया कांग्रेस ने अपने दल के 79 विधायकों से पूछा था कि मुख्यमंत्री किसको बनाया जाए ? राहुल गान्धी और उनकी बहन प्रियंका गान्धी ही इस काम में लगी हुई थी । इसलिए  पंजाब के कांग्रेसी विधायक दिल्ली जाकर उनसे मिल भी रहे थे । यह काम निपटा कर उन्होंने घोषणा कर दी कि कांग्रेस के अधिकांश विधायक चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में हैं  । ज़ाहिर है सुनील जाखड इस दौड़ से बाहर कर दिए गए और राहुल गान्धी ने फ़ोन पर चन्नी को बता दिया कि उनको मुख्यमंत्री बनाया गया है और कहा जाता है चन्नी इस अप्रत्याशित घोषणा से रोने लगे । अलबत्ता ये आँसू ख़ुशी के थे । लेकिन जाखड को दरवाज़े से बाहर क्यों किया गया , यह रहस्य बना रहा । आख़िर उनकी सोनिया-राहुल-प्रियंका से क्या अदावत थी कि उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया ? क्या वे अपने चरित्र को लेकर या भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे थे ? पंजाब के लोग इतना तो जानते थे कि सुनील जाखड पर ऐसा कोई दाग नहीं है । वैसे तो  सोनिया कांग्रेस की एक तथाकथित वरिष्ठ नेत्री , अम्बिका सोनी ने इशारों इशारों में स्पष्ट कर दिया था । अलबत्ता स्पष्ट करने का ढंग उनका अपना था । उन्होंने कहा कि सोनिया कांग्रेस तो मुझे मुख्यमंत्री  बनाना चाहती थीं लेकिन मैंने साफ़ मना कर दिया कि मैं मुख्यमंत्री नहीं बन सकतीं क्योंकि पंजाब का मुख्यमंत्री कोई सिख ही बन सकता है । लेकिन तब किसी ने उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया था ।वे ज़मीनी नेत्री नहीं हैं । अम्बिका गान्धी पंजाब की मुख्यमंत्री बनेंगी , इसे चुटकुला तो माना जा सकता है , गंभीर बयान नहीं । उस समय सुनील जाखड लगभग चुप ही रहे थे । शायद पार्टी का अनुशासन उन्हें चुप रहने के लिए विवश कर रहा होगा । वैसे भी अब क्या भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पहले से ही पाकिस्तान की गतिविधियों के चलते अस्थिर हो रहे पंजाब में हिन्दु-सिख के आधार पर राजनीति करेगी ? 
                        उसके बाद जल्दी ही विधान सभा चुनावों की घोषणा हो गई । तब सोनिया कांग्रेस ने घोषणा की कि सुनील जाखड , नवजोत सिंह सिद्धु और चरनजीत सिंह चन्नी के संयुक्त नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा । सुनील जाखड को चुनाव समिति का अध्यक्ष भी बना दिया गया । लेकिन शुरु के एक दो पोस्टरों में जाखड की फ़ोटो लगी , उसके बाद ग़ायब हो गई । जैसे जैसे मतदान का दिन  नज़दीक आने लगा कांग्रेस के भीतर फिर बहस उठने लगी कि पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा , इसकी घोषणा करनी चाहिए । एक बार फिर से सुनील जाखड , नवजोत सिंह सिद्धु और  चरनजीत सिंह चन्नी के नाम की चर्चा पार्टी के भीतर और बाहर होने लगी । इस बार राहुल गान्धी ने कहा कि वे यह घोषणा पंजाब की जनता से पूछ कर करेंगे । पूछने की प्रक्रिया चालू हो गई । जब राहुल गान्धी पंजाब की जनता से पूछताछ का पाखंड कर रहे थे , तभी संकेत मिलने लगे थे कि सुनील जाखड को एक बार फिर मुख्यमंत्री के पाले से बाहर किया जा रहा था ।  धैर्य की  भी हद होती है । उनके सब्र का बाँध टूट चुका था ।
                       राहुल गान्धी अपने पूछताछ के परिणाम की घोषणा करें , उससे दो दिन पहले ही सुनील जाखड ने अबोहर की एक जनसभा में धमाका कर दिया । अबोहर की जनसभा में सुनील जाखड ने सार्वजनिक रूप से खुलासा किया की राहुल और उनकी बहन ने उन्हें मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनने दिया और अब भी क्यों नहीं बनने देंगे  । उन्होंने बताया कि  मुख्यमंत्री का निर्णय करने के लिए विधायकों की राय पूछने की जो प्रकिया चलाई थी , उस प्रक्रिया में  उन्हें 42 ,रंधावा को 16, प्रणीत कौर को 12 , नवजात सिंह सिद्धू को 6 और चरणजीत सिंह चन्नी को 2 विधायकों ने मत दिया था । जाखड का कहना है कि  वे विधान सभा के सदस्य भी नहीं हैं , तब भी उन्हें 42 विधायकों ने मत दिया , लेकिन फिर भी उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया । वैसे तो  कांग्रेस के लिए यह कोई नई बात नहीं है । अंग्रेजों के इस देश से जाने के अवसर पर देश का प्रधानमंत्री कौन बनेगा , इसको लेकर कांग्रेस के भीतर राय माँगी गई थी । उस समय पन्द्रह प्रदेश कांग्रेस समितियाँ थीं । उनमें सरदार पटेल को 12 और पंडित जवाहर लाल नेहरु को केवल दो वोट मिले थे । लेकिन प्रधानमंत्री नेहरु ही बने । सरदार पटेल को रास्ते से हट जाने का आदेश महात्मा गान्धी ने जय प्रकाश नारायण के हाथों गुप्त रूप से भिजवाया था । कांग्रेस के इस इतिहास को तो सुनील जाखड भी जानते होंगे । इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री न बनाए जाने में आश्चर्य की क्या बात थी ? उस आश्चर्य की बात का ख़ुलासा भी जाखड ने इस जनसभा में किया ।  महात्मा गान्धी के निर्णय का आधार मज़हब या जाति नहीं थी । लेकिन सोनिया कांग्रेस के निर्णय का आधार शुद्ध रूप से मज़हब ही था । जाखड का कहना है कि उन्हें हिन्दु होने का आरोप  लगा कर पंजाब के मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर कर दिया गया । सुनील जाखड का कहना है यदि सोनिया कांग्रेस उसे किसी आरोप के आधार पर मसलन भ्रष्टाचार , चरित्रहीनता , अनुशासनहीनता के कारण नकार देती तो मुझे कोई दुख न होता । लेकिन सोनिया गान्धी के पास ऐसा कोई आरोप नहीं था  । लेकिन उन्हें हिन्दु होने का आरोप लगा कर बार बार इस दौड़ से बाहर किया जा रहा है , दुख इस बात का है । इतना ही नहीं ,सोनिया कांग्रेस ने हिन्दु होने का आरोप और उसके आधार पर मुख्यमंत्री के लिए अयोग्य होने का सन्देश सार्वजनिक रूप से अम्बिका सोनी के माध्यम से पंजाब और देश के लोगों तक पहुँचाया ।  सुनील जाखड का यह भी कहना है कि राहुल गान्धी ने उसे बुलाकर यह भी कहा कि तुम उप मुख्यमंत्री बन जाओ । लेकिन मुख्यमंत्री क्यों नहीं , जब 42 विधायक ऐसा कह रहे हैं ? उसका उत्तर शायद राहुल के पास एक ही था कि तुम हिन्दू हो ।  इसलिए राहुल गान्धी ने उस पर हिन्दु होने का आरोप लगा कर उसे मुख्यमंत्री के लिए अयोग्य ठहरा दिया । सुनील जाखड का दर्द समझा जा सकता है । पंजाब में वे साफ़ सुथरे आचरण के राजनीतिज्ञ माने जाते हैं । केवल हिन्दु होने के आरोप में किसी को ख़ारिज कर दिया जाए तो कष्ट तो होगा ही । ताज्जुब है कि पंजाब के कांग्रेसी तो हिन्दु-सिख के आधार पर नहीं सोचते । यदि ऐसा होता तो 42 विधायक जाखड का समर्थन क्यों करते ? 
                     यदि सोनिया गान्धी को लगता था कि सुनील जाखड उनको राजनैतिक नफ़ा नुक़सान के आधार पर अनुकूल नहीं लगते तो उनको नकारने का अधिकार उनके पास था ही । लेकिन उसको नकारने के लिए सोनिया कांग्रेस ने जो रास्ता अपनाया , वह पंजाब के लिए बहुत ख़तरनाक है । उनको नकारने का कारण उनका हिन्दु होना बताया गया । इस काम के लिए अम्बिका सोनी को मैदान में उतारा गया । उस महिला ने सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस की ओर से घोषणा की कि पंजाब में कोई हिन्दू मुख्यमंत्री नहीं बन सकता यहाँ केवल सिख ही मुख्यमंत्री बन सकता है । सुनील जाखड को इस बयान के बिना भी मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर किया जा सकता था । लेकिन शायद कांग्रेस का मक़सद जाखड को मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर करना इतना नहीं था जितना हिन्दु-सिखों के मनों में दरार पैदा करना । पंजाब के लोगों को सोनिया कांग्रेस का यह ख़तरनाक खेल इतना घटिया लगा कि अमृतसर स्थित अकाल तख़्त के जत्थेदार को भी कहना पड़ा कि मुख्यमंत्री के लिए योग्यता देखी जानी चाहिए मजहब कोई भी हो , वह महत्वपूर्ण नहीं है । 
              पंजाब में कांग्रेस जो खेल खेल रही है , वह सचमुच बहुत चिन्ताजनक है । पंजाब सीमान्त राज्य है और पाकिस्तान पिछले लम्बे अरसे से यहाँ हिन्दु-सिख में दरारें डालने की कोशिश कर रहा है । इतना ही नहीं वह यहाँ की आन्तरिक राजनीति में हस्तक्षेप कर अपने सैल बनाने के प्रयास में लगा हुआ है । पिछले दिनों कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने बहुत ही सधे हुए शब्दों में ख़ुलासा किया था  कि नवजोत सिंह सिद्धु को मंत्रिमंडल में लेने के लिए उन्हें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के नज़दीकी मध्यस्थ का मैसेज आया था । मैसेज में यहाँ तक कहा गया था कि फ़िलहाल आप सिद्धु को मंत्री बना दें यदि बाद में वह आपके हिसाब से ठीक न रहे तो आप उसे हटा सकते हैं । कैप्टन का कहना है कि उन्होंने वे मैसेज सोनिया गान्धी को अग्रेषित कर दिए थे । सोनिया गान्धी ने रहस्यमय चुप्पी धारण किए रखी लेकिन उनकी बेटी ने जरुर उत्तर दिया कि सिद्धु पागल है , उसे ऐसे मैसेज नहीं करवाने चाहिए । इसके बाद मामला ठप्प हो गया ।  लेकिन शायद इन मैसजों के आदान प्रदान के बाद ही नवजोत सिंह सिद्धु पाकिस्तान गया था , जहाँ उसने एक सार्वजनिक सभा में इमरान खान की जम कर तारीफ़ ही नहीं की थी बल्कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख बाजवा का आलिंगन भी किया था । कुछ पत्रकारों ने सिद्धु की इस पूरे घटनाक्रम पर टिप्पणी लेनी चाही तो उसका उत्तर था कि मरे को क्या मारना ? यानि मैं कैप्टन की किसी बात का उत्तर नहीं दूँगा क्योंकि अब उसकी कोई औक़ात नहीं है । सिद्धु की नज़र में कैप्टन की अब कोई औक़ात नहीं हो सकती लेकिन यह घटना उस समय की है जब कैप्टन की औक़ात थी और सिद्धु की  कोई औक़ात नहीं थी । ज़ाहिर है सिद्धु या तो उत्तर देने से बचना चाहते थे या फिर उनके पास उत्तर था ही नहीं । 
                  लेकिन अब यह मामला सिद्धु से ज्यादा सोनिया गान्धी के आसपास घूमना शुरु हो गया है क्योंकि कैप्टन ने यह भी बताया कि  सोनिया गान्धी जब सिद्धु को कांग्रेस में लेना चाहती थी तो उन्होंने कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को ही उसका मूल्याँकन कर रिपोर्ट देने के लिए कहा था । कैप्टन की रिपोर्ट सिद्धु के पक्ष में नहीं थी । लेकिन उसके बावजूद सोनिया गान्धी ने सिद्धु को पार्टी में शामिल कर लिया । तिथि क्रम से देखें तो सिद्धु के पक्ष में पाकिस्तान के दबाव की घटना इसके बाद हुई । उसके बाद सिद्धु ने पाकिस्तान में जाकर इमरान खान के पक्ष हमें भाषण दिया । इस भाषण के बाद कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने सार्वजनिक रूप से सिद्धु के इस कृत्य से अपनी असहमति जिताई । लेकिन उसके बाद से ही सोनिया गान्धी का दबाब कैप्टन अमरेन्द्र सिंह पर बढ़ने लगा कि नवजोत सिंह सिद्धु को पंजाब कांग्रेस का प्रधान बनाया जाए । ज़ाहिर है कि पाकिस्तान को लेकर उक्त घटनाक्रम के रहते कैप्टन इस बात से कैसे सहमत हो सकते थे । उन्होंने परोक्ष रूप से एक दो बार सार्वजनिक ब्यान भी दिए कि पंजाब सीमान्त प्रदेश है और पाकिस्तान पंजाब में कुछ न कुछ शरारत करता रहता है , वह हिन्दू-सिख में विवाद करवाने के प्रयास भी करता रहता है । इसलिए पंजाब में कोई ऐसा राजनैतिक प्रयोग नहीं करना चाहिए जिससे यहाँ अस्थिरता फैले और पाकिस्तान अपनी चाल में सफल हो सके । लेकिन सोनिया गान्धी का दबाब बराबर बना रहा और कैप्टन को सिद्धू को पंजाब कांग्रेस के रूप में स्वीकार करना पड़ा । मामला यहाँ तक होता तब भी ग़नीमत थी । कैप्टन पाकिस्तान के विरोध में बयानबाज़ी बन्द नहीं कर रहे थे । ज़ाहिर है नवजोत सिंह सिद्धू और उसके यार इमरान खान के बीच कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ही रोड़ा था । इसलिए उसको हटाना जरुरी था । सोनिया गान्धी ने अन्तत: वह भी कर दिया । लेकिन रणनीति तो इससे भी आगे की थी । कैप्टन कह चुके थे कि पाकिस्तान पंजाब में हिन्दु-सिख के बीच दरारें डालने का काम कर रहा है । लेकिन उस काम को कैप्टन को हटाने के बाद सोनिया कांग्रेस ने या तो जानबूझकर कर या फिर अपने संकीर्ण राजनैतिक हितों के लिए सम्पन्न किया । 
               ताज्जुब है सोनिया गान्धी भी पाकिस्तान से आए मैसेजों की बात पर चुप्पी लगाकर बैठ गई हैं , जबकि कैप्टन का कहना है कि उन्होंने  इस सारे घटना क्रम की सूचना उन्हें दे दी थी । सानिया  गान्धी को स्पष्ट करना चाहिए , यह सूचना मिलने के बाद भी वे नवजोत सिंह सिद्धु के पक्ष हमें मोर्चा क्यों संभाले रही ?  तकनालोजी के लोग कहते हैं कि सारे मैसेज पुन: निकाले जा सकते हैं । लगता है धीरे धीरे शिकंजा कसता जा रहा है । 
           पंजाब में हिन्दु-सिख में दरारें डालने का काम पाकिस्तान पिछले लम्बे अरसे से कर रहा है , इसमें कोई संशय नहीं है,  लेकिन इस पूरे घटना क्रम से तो लगता है कि यह काम सोनिया कांग्रेस भी उसी गंभीरता से कर रही है ।वह पंजाब में अपनी पूरी राजनीति ही हिन्दु सिख को बाँट कर चलाना चाहती है ।  कांग्रेस के पास इसका समुचित अनुभव भी है और उद्देष्य भी । दिल्ली में 1984 में हुआ नरसंहार इसका प्रमाण है । 1984 में दिल्ली में सिखों का कतले आम करके वह पंजाब के हिन्दुओं की वोट लेना चाहती थी और अब सुनील जाखड को हिन्दु होने के आरोप में दौड़ से बाहर कर सिखों का ध्रुवीकरण करना चाहती है । राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पंजाब में हिन्दु सिख में अलगाव पैदा करने वाली इस रणनीति से सोनिया कांग्रेस को नुक़सान होने की भी संभावना है । राजनीतिक नुक़सान उठा कर भी सोनिया कांग्रेस पंजाब में हिन्दु सिख की चौसर क्यों  बिछा रही है ? यह रहस्य अभी तक बरक़रार है । 
                        आख़िर कांग्रेस पंजाब को हिन्दु और सिख के आधार पर विभाजित करने का राष्ट्र विरोधी कार्य क्यों कर रही है ? इसका उत्तर राहुल गान्धी ने लोक सभा में दिया । उन्होंने कहा कि भारत राज्यों का संघ है, भारत एक राष्ट्र है ही नहीं । भारत को लेकर यह दुविधा नेहरु-गान्धी परिवार में नई नहीं है । दुविधा पुरानी है , अलबत्ता इसमें इटली का छौंक लग जाने कारण यह दुविधा बढ़ गई है । पंडित जवाहर लाल नेहरू भी अपनेजमाने में भारत को समझने और पहचानने के प्रयास में लगे हुए थे । इस प्रयास में उन्होंने अंग्रेज़ी भाषा में एकमोटी किताब डिस्कवरी आफ इंडिया भी लिख दी थी । वे भारत को कितना समझ पाए और कितना नहीं समझपाए , ये तो नहीं कहा जा सकता लेकिन वे जिस रास्ते पर चल पड़े थे उसका निष्कर्ष उन्होंने यह निकाला किभारत में एक राष्ट्र बनने की प्रक्रिया शुरु हो गई है । नेहरु की एक और दिक़्क़त थी । वे भारत को अंग्रेज़ी भाषाके माध्यम से समझने का प्रयास कर रहे थे । अंग्रेज़ी भाषा में भारत को समझाने के लिए अंग्रेज साम्राज्यवादियोंने कई पाठ्य पुस्तकें लिख दी थीं । अंत: इस रास्ते से भारत को समझना मुश्किल था । भारत को भारतीयभाषाओं और भारतीय संस्कारों से ही समझा जा सकता था । लेकिन नेहरु के दुर्भाग्य से भारतीय भाषाएँ उनकेलिए ग्रीक थीं । अपनी मातृभाषा कश्मीरी तो वे न समझते थे न बोलते थे । जिस उत्तर प्रदेश में जाकर वे बस गएथे , वहाँ की भाषा वे बोल तो लेते थे लेकिन सहजता से लिख पढ़ नहीं सकते थे । अब इतने अन्तराल में कांग्रेस नेभी लम्बी यात्रा तय कर ली है । भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से शुरु हुई यह यात्रा सोनिया कांग्रेस तक पहुंच गई है ।ज़ाहिर है  अब तो इसके लिए भारत को समझना और भी मुश्किल हो गया है । नेहरु कम से कम इतना तो मानतेथे कि भारत राष्ट्र बनने की प्रक्रिया में है , राहुल गान्धी तो उससे भी मुनकिर हो रहे हैं । भारत में राज्य और शासनव्यवस्थाएँ तो अनेक रहीं लेकिन वह एक राष्ट्र है , इस में किसी को कभी संशय नहीं रहा । कांग्रेस भारत के एकराष्ट्र होने पर प्रश्न चिन्ह लगाती रही । राष्ट्र के प्रतीकों को नकारती ही नहीं रही बल्कि प्रत्यक्ष परोक्ष उन्हें नष्टकरने में भागीदार भी बनी रही । यही कारण है कि सोनिया कांग्रेस आज इस मुक़ाम पर पहुँच गई है । राहुलगान्धी को सुन कर तो ऐसा लगता है मानों वह भारत राष्ट्र के खिलाफ कोई जंग लड़ रही हो । इस जंग को तेजकरने के लिए ही उसने कन्हैया कुमार जैसे टुकड़े टुकड़े गैंग को पार्टी में भर्ती किया लगता है । उसकी इस लड़ाईमें साम्यवादी ताक़तें तो साथ दे सकती हैं क्योंकि उनकी लड़ाई भी भारतीय राष्ट्रीयता के खिलाफ ही है , लेकिनभारत का आम आदमी उसका साथ नहीं दे सकता । पहले मैं समझता था , सोनिया कांग्रेस के भीतर जो जी 23 के नाम से विद्रोही ग्रुप पनपा है , वह केवल सत्ता की रेवड़ियों की असंतुलित बाँट के कारण पनपा है , लेकिनराहुल गान्धी के इस भाषण के बाद मुझे लगता है कि इसमें एक कारण सोनिया कांग्रेस का भारत के प्रति यहदृष्टिकोण भी हो सकता है ,जिसकी नुमांयदगी राहुल गान्धी ने लोकसभा में की । 

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