दुआ

दुआ दिल के बेहद करीब रहती है
पर हर किसी को कहाँ नसीब होती है।
मोल नहीं इसका यह अनमोल मोती है
दुआ में शामिल खुदा की नेहमत रहती है।

पूरी होगी आरजू मन में विश्वास धरें
दुआ उन जवानों के लिए आज करें
जो हमारी सुरक्षा हेतु सीमा पर खड़े।
आँच न पहुंचे हम में से किसी पर
यही दुआ मन में लिए जो बेखौफ हो
सरहद पर शत्रुओं से निरंतर लड़े।

आज सजदे में सिर माँओं के लिए झुके
कि दीप उनके घर का कभी न बुझे।
उन पत्नियों को भी दिल से दें दुआएं
उनके सुहाग की कट जाए सब बलाएं।
इंतजार देख रहीं कबसे जो सूनी कलाई
जल्द ही पहुंचे बहनों के पास वो भाई।
पिता का उन बच्चों के सिर पर भी साया है
अनाथों की तरह जिन्होंने अपना बचपन बिताया है।
मिल जाएं वे पिता पुत्र भी जिन्होंने
कबसे अपनों को ही भूला-बिसराया है।
दुआ करें सरहद के हर उस प्रहरी के लिए
जिसने इतना कठिन सैनिक-धर्म निभाया है।

दिल से निकले दुआ उस अन्नदाता के लिए
जिसने न जाने कितने कड़वे घूँट पिए।
भारत माता के ये भी तो लाल है, पर
क्या जीवन इनका भी खुशहाल है ?
जोत रहे खेत कंधों पर हल लिए
देश के लिए इन्होने कितने त्याग किए।

जीवन में आए इनके भी हरियाली
फीकी न पड़े इनके चेहरों की लाली।
देश का पेट भरने वाला सोए न भूखा
न रहे जीवन इनका भी नीरस-रूखा।
आओ हम सब मिलकर यह प्रण करें
कुछ दुआ दिल में इनके लिए भी धरें।

खुशहाल-उन्नत हो देश का हर किसान
मिटने न पाए इनके चेहरे से कभी मुसकान।
दुआ अपने लिए, अपनों के लिए की बहुत
आज इनके लिए जलाएं निस्स्वार्थ भाव से जोत।

लक्ष्मी अग्रवाल

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दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातक, हिंदी पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा तथा एम.ए. हिंदी करने के बाद महामेधा, आज समाज जैसे समाचार पत्रों व डायमंड मैगज़ीन्स की पत्रिका 'साधना पथ' तथा प्रभात प्रकाशन में कुछ समय कार्य किया। वर्तमान में स्वतंत्र लेखिका एवं कवयित्री के रूप में सामाजिक मुद्दों विशेषकर स्त्री संबंधी विषयों के लेखन में समर्पित।

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