महत्वपूर्ण लेख राजनीति

अरविंद केजरीवाल का ‘स्वराज’

आर. सिंह

अन्ना हज़ारे ने इस पुस्तक के मुख्य आवरण पृष्ठ पर लिखा है, “यह किताब व्यवस्था-परिवर्तन और भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारे आंदोलन का घोषणा -पत्र है और देश में असली स्वराज लाने का प्रभावशाली मॉडल भी”

इसके पीछे वाले आवरण पृष्ठ पर महात्मा गाँधी का विचार उद्धृत है.जो यों है, “सच्ची लोकशाही केंद्र में बैठे हुए दस बीस लोग नही चला सकते.सत्ता के केन्द्र बिंदु दिल्ली, बंबई और कलकत्ता जैसी राजधानियों में हैं.मैं उसे भारत के सात लाख गाँवों में बाँटना चाहूँगा.”

इसी आवरण पृष्ठ पर आगे लिखा है, “वर्ष २०११ अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार -विरोधी आंदोलन से परिभाषित हुआ. सालेगन सिद्धि के फकीर ने सत्ता के गलियारों में खलबली मचा दी. और इस बार तो मध्यवर्गीय भारत और यहाँ तक क़ि ‘इलीट’भी–जो क़ि सदा ही अपनी बैठक में राजनीति पर बहस करते नज़र आते थे–सड़कों पर निकल पड़े. अरविंद केजरीवाल की इस आंदोलन में महत्व पूर्ण भूमिका रही है. टीम अन्ना की मुख्य माँग थी, लोकपाल क़ानून का क्रियान्वयन. केंद्रिय शक्तियों ने वादे तो बहुत किए,लेकिन बिल अब तक संसद में पास नहीं हुआ.

यह किताब हमें इस मुकाम से आगे का रास्ता बताती है. लोकपाल पर चर्चा के अलावा, ये उपयोगी सुझाव देती है कि सच्चे स्वराज्य के लिए भारत की जनता और राजनीतिक पार्टियों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं. सरकारी नीतियों की खामियों से लेकर ग्राम पंचायत के स्तर पर व्याप्त कमियाँ, बि.पि.एल. राजनीति,नरेगा का भ्रम,कृषि,शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी ज़रूरी सेवा में सुधार पर लेखक की विशेष टिप्पणियाँ हैं. एक जनतंत्र होने के नाते किस प्रकार इस देश की बागडोर उसके लोगों के हाथ दी जाए न कि नेताओं के कदमों तले, उस लक्ष्य की ओर अरविंद केजरीवाल की के किताब हमे अग्रसर करती है.”

महात्मा गाँधी ने कहा था, “सबसे गरीब और सबसे कमजोर आदमी के चेहरे को याद करो. और अपने आप से पूछो कि जो कदम तुम उठाने जा रहे हो,वह क्या उसके किसी काम आयेगा?क्या उसको इससे कोई लाभ होगा?क्या यह उसके जिन्दगी और उसकी तकदीर पर उसका अधिकार वापस दिलाएगा? दूसरे शब्दों में ,क्या इससे लाखों भूखे और मानसिक रूप से पीड़ित व्यक्तियों को स्वराज मिल पायेगा/”

इन्ही कुछ प्रश्नों का उत्तर यह पुस्तक तलाशता है.यह पुस्तक स्वराज की राह देख रही आम जनता को समर्पित है.

अन्ना हजारे ने इस पुस्तक की भूमिका में दो शब्द कहते हुए लिखा है, ” आज देश भर में बदलाव की एक लहर दिख रही है.हर धर्म, हरेक जाति,हरेक उम्र के लोग,अमीर हों या गरीब,शहरी हों या ग्रामीण ,सबकी आँखे बदलाव का सपना देख रही है.अगर यह जोश कायम रहा तो आजाद भारत के इतिहास में जो काम ६४ साल के इतिहास में नहीं हुआ,वह १० साल में हो सकता है.महंगाई और भ्रष्टाचार के चलते आम आदमी का जीना मुश्किल हो रहा है..आजादी के ६४ साल बाद भी न हर हाथ को काम है और न हर पेट को रोटी.

अगर देश की अर्थ नीति को बदलना है तो गाँव की अर्थ नीति को बदलना होगा.और यह अर्थ नीति दिल्ली में बैठ कर बन रही योजनाओं या इनके तहत बाँटें जा रहे पैसे से नहीं बदलेगी.यह काम होगा, लोगों को मजबूत बनाने से.आज हमारे तंत्र लोग पर हावी हैं.कभी तो लगता है कि तंत्र ही लोक का मालिक बन कर बैठ गया है. हमें सच्ची लोकशाही का मतलब समझना होगा.हमें यह समझना होगा कि लोक तंत्र में लोगों की भूमिका पांच साल में एक बार वोट देकर सरकार चुनने की ही नहीं होती..इसके लिए आम लोगों की सत्ता में भागीदारी जरूरी है.सता के केंद्र बिंदु को दिल्ली और राजधानियों से निकाल कर गाँव और कस्बों तक लाना होगा ”

अन्ना हजारे यह भी कहते हैं कि इस तरह के छिट पुट प्रयोग जहाँ भी हुए हैं हैं वहां खुश हाली भी बढी है और भ्रष्टाचार भी कम हुआ है.फिर क्यों न इस तरह के प्रयोगों की एक आम रूप रेखा बनाई जाए और पूरे देश में इसको व्यवहार में लाया जाए?

अरविन्द केजरीवाल की इस पुस्तक में व्यवस्था के बदलाव और सम्पूर्ण क्रांति की विस्तार से चर्चा की गयी है.इस पुस्तक से यह भी उम्मीद जगती है कि बेरोजगारी ,महंगाई, भ्रष्टाचार, आर्थिक विषमता, ऊँच-नीच, हिंसा, नक्‍सलवाद जैसी जटिल समस्याओं के समाधान खोज रही दुनिया इस पुस्तकं के माधाम से इन समस्याओं के सरल समाधान खोज सकेगी.

करीब दो सौ पृष्ठों की यह पुस्तक जन लोक पाल से बहुत आगे बढ़ कर सोचने की दिशा तैयार करने का प्रयत्न करती है. लगता है इस पुस्तक को मूर्तरूप देने के पहले अरविन्द केजरीवाल ने देश के विभिन्न भागों का दौरा किया है और वहां जो नए प्रयोग हुए हैं ,उससे प्रभावित भी हुआ है, न केवल रालेगण सिद्धि ,बल्कि केरल के भी गांवों में इस तरह के प्रयोग चल रहे हैं.इससे न केवल ग्रामीणों का जीवन सुधरा है,बल्कि उन्हें अपनी जिम्मेवारियों का भी ज्ञान हुआ है.पहले तो विद्वान लेखक ने तर्क द्वारा और विभिन्न उदाहरणों से यह सिद्ध करने का प्रयत्न कियI है कि वर्तमान व्यवस्था में विकास के नाम पर दिल्ली से भेजा हुआ धन किस तरह गांवों की कोई भलाई नहीं कर पाता,बल्कि कुछ ख़ास लोगोंकी जेब भरने का काम करता है, फिर वह बताता है कि इसका विकल्प क्या है? उसने यह भी प्रश्न उठाया है की आखिर क़ानून बनाने का हक़ किसे है?जनता का या जनता के विचारों की अवहेलना करके संसद का? जनता की भलाई के लिए बनने वाले कानूनों में जनता की भागीदारी आवश्यक है,पर यह हो कैसे इसका भी विस्तृत विवरण इस पुस्तक में है.

ग्राम पंचायतों के वर्तमान में सीमित अधिकारों और उनके अधिकारों में वृद्धि से आगे बढ़ कर ग्राम सभाओं द्वारा लिए गए निर्णयों को इसमे सर्वोपरी माना गया है

वास्तविक लोक तंत्र के उस इतिहास पर भी प्रकाश डाला गया है,जो वास्तव में भारत की देन थी.

लेखक शहरों की वर्तमान हालत से भी खुश नहीं है. यद्यपि पुस्तक का अधिकांश भाग में गांवों के विकास पर जोर दिया गया है,पर शहरों के विकास के लिए भी उपाय सुझाए गए हैं.

गाँधी के उस कथन पर ख़ास जोर दिया गया है कि सच्चा स्वराज तभी आएगा जब हर हाथ को काम और हर पेट को रोटी मिलेगा.

वर्तमान व्यवस्था में सरकारी कर्मचारियों का स्थान सर्वोच्च हो जाता है.लेखक ने इस व्यवस्था में आमूल परिवर्तन के लिए दिशा निर्देश दिया है.उसका यह मानना है कि वर्तमान व्यवस्था पग पग पर भ्रष्टाचार को जन्म देती है और उसे प्रश्रय भी देती है.इसमे आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है.बहुत से बदलाव संविधान की वर्तमान रूप रेखा के अंतर्गत ही सम्भव हैं हैं पर कही कही संविधान में संशोधन की भी आवश्यकता पड़ सकती है.विद्वान लेखक ने यह माना है कि सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन या सम्पूर्ण क्रांति के लिए हमें जन लोकपाल से आगे सोचने की आवश्कता है,तभी देश को वास्तविक आजादी और जनता को स्वराज मिलेगा.

ऐसे इस पुस्तक में कुछ कमियां भी हैं.सबसे बड़ी कमी दिखती है कि लेखक बिजली के उत्पादन और वितरण के मामले में एक दम चुप है,जब कि मेरे विचारानुसार भारत के सर्वांगीण विकास के लिए वहन करने यौग्य मूल्य पर हर घर और हर छोटे बड़े उद्योग के लिए बिना बाधा के अनवरत बिजली की उपलब्धता अति आवश्यक है.