कविता मेरी आँखों के सामने अब कोई अँधेरा नही, September 10, 2018 by प्रवक्ता ब्यूरो | 1 Comment on मेरी आँखों के सामने अब कोई अँधेरा नही, लेखक : बबली सिंह मेरी आँखों के सामने अब कोई अँधेरा नही, कि हर धूल मैंने झाड़ दी है अब, मुझे अब अपने दर्द की नुमाइश भी नही करनी, कि हर मर्ज़ की दवा ढूंढ़ ली है अब, हाँ मुझे देखते है लोग भरी बाज़ारों में, सड़कों पे,गाड़ियों में, देखते नही घूरते है, हाँ! तो […] Read more » अँधेरा नही अस्तित्व दुत्कारा मारा मेरी आँखों मैला-कुचैला कर डाला
कविता वे किसी सत्ता की महत्ता के मुँहताज नहीं ! July 12, 2018 / July 12, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment (मधुगीति १८०७१२) गोपाल बघेल ‘मधु’ वे किसी सत्ता की महत्ता के मुँहताज नहीं, सत्ताएँ उनके संकल्प से सृजित व समन्वित हैं; संस्थिति प्रलय लय उनके भाव से बहती हैं, आनन्द की अजस्र धारा के वे प्रणेता हैं ! अहंकार उनके जागतिक खेत की फ़सल है, उसका बीज बो खाद दे बढ़ाना उनका काम है; उसी को देखते परखते व समय पर काटते हैं, वही उनके भोजन भजन व व्यापार की बस्तु है ! विश्व में सभी उनके अपने ही संजोये सपने हैं, उन्हीं के वात्सल्य रस प्रवाह से विहँसे सिहरे हैं; उन्हीं का अनन्त आशीष पा सृष्टि में बिखरे हैं, अस्तित्व हीन होते हुए भी मोह माया में अटके हैं ! जितने अधिक अपरिपक्व हैं उतने ही अकड़े हैं, सिकुड़े अध-खुले अन-खिले संकुचित चेतन हैं; स्वयं को कर्त्ता निदेशक नियंत्रक समझते हैं, आत्म-सारथी गोपाल का खेल कहाँ समझे हैं ! वे चाहते हैं कि हर कोई उन्हें समझे उनका कार्य करे, पर स्वयं को समझने में ही जीव की उम्र बीत जाती है; ‘मधु’ के बताने पर भी बात कहाँ समझ आती है, प्रभु जगत से लड़ते २ भी कभी उनसे प्रीति हो जाती है ! Read more » Featured अस्तित्व आशीष पा सृष्टि बीज बो खाद वे किसी सत्ता की महत्ता के मुँहताज नहीं !
कविता समाज अस्तित्व June 19, 2018 / June 25, 2018 by डॉ छन्दा बैनर्जी | Leave a Comment डॉ. छन्दा बैनर्जी मैं एक फोटो फीचर जर्नलिस्ट हूँ । शहर के सांस्कृतिक गतिविधियों से सम्बन्धित फीचर तैयार करता हूँ । साधारणतया ऐसे कार्यक्रम जहाँ किसी महापुरुष की जन्म शताब्दी समारोह हो या कोई दिवस विशेष पर मनाया जाने वाला वार्षिकी समारोह, सहसा मुझे आकर्षित नहीं कर पाते । चूँकि मीडिया के प्रोफेशन में हूँ […] Read more » अस्तित्व आकाशवाणी उपन्यास फीचर जर्नलिस्ट