विविधा आतंकवाद से जूझने का सरकारी तरीका February 20, 2010 / December 24, 2011 by डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री | 4 Comments on आतंकवाद से जूझने का सरकारी तरीका पूणें में 13 फरवरी 2010 को बम विस्फोट हुआ और उसमें अनेक निर्दोष लोग मारे गए और 100 के लगभग लोग घायल भी हुए। मरने वालों में और घायल होने वालों मे कुछ विदेशी लोग भी थे। वैसे तो पाक द्वारा 26/11 को मुंबई में भारत पर हुए आतंकवादी आक्रमण के बाद ही स्पष्ट हो […] Read more » terrorism आतंकवाद पूणे बम विस्फोट
विविधा इस पर भी तो कुछ फरमाईए चिदम्बरम जी January 6, 2010 / December 25, 2011 by लिमटी खरे | 1 Comment on इस पर भी तो कुछ फरमाईए चिदम्बरम जी देश के ताकतवर गृह मंत्री होकर उभरे पलनियप्पम चिदम्बरम के माथे पर मेघालय पुलिस ने कालिख पोतने का दुस्साहस किया है। लालकिले में सन 2000 में हुए बम विस्फोट के हमलावरों रज्जाक, रफाकत अली और सादिक के बीते दिनों देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली से भागने की बात को सहजता से नहीं लिया जा सकता […] Read more » P. Chidambaram आतंकवाद पी. चिदम्बरम
राजनीति नक्सलवाद मतलब आतंकवाद September 18, 2009 / December 26, 2011 by संजय द्विवेदी | 1 Comment on नक्सलवाद मतलब आतंकवाद देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जब 15 सितंबर, 2009 को दिल्ली में पुलिस अधिकारियों के सम्मेलन में नक्सलवाद को देश का सबसे बड़ा खतरा बताया तो वे कुछ नयी बात नहीं कह रहे थे। इसके पहले भी देश के गृहमंत्री और कई नक्सल प्रभवित राज्यों के मुख्यमंत्री यह बात कहते आए हैं। बावजूद इसके […] Read more » Naxalism आतंकवाद नक्सलवाद
राजनीति आतंकवाद, क्षेत्रवाद, साम्प्रदायिकतावाद: इनके निदान एवं समाधान में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भूमिका September 8, 2009 / December 26, 2011 by वी. के. सिंह | 2 Comments on आतंकवाद, क्षेत्रवाद, साम्प्रदायिकतावाद: इनके निदान एवं समाधान में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भूमिका विगत कुछ वर्षों में आतंकवादियों ने जिस बड़े पैमाने पर दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, राजस्थान, हैदराबाद, असम और उत्तरप्रदेश में आतंक को अंजाम दिया उससे राष्ट्र के नागरिकों के प्रति सरकार और राजनैतिक दलों की प्रतिबद्वता पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसा खौफनाक हमला तो आजादी के तुरंत बाद […] Read more » terrorism आतंकवाद
समाज सब ‘सभ्य’ – हम, हमारा समाज और मीडिया November 12, 2008 / December 22, 2011 by अम्बा चरण वशिष्ठ | 2 Comments on सब ‘सभ्य’ – हम, हमारा समाज और मीडिया लेखक- अम्बा चरण वशिष्ठ ठीक ही तो कहते हैं कि किसी सभ्य समाज में फांसी की सज़ा उस समाज के नाम पर एक कलंक है। पर साथ ही यह कोई नहीं कहता कि यदि वह समाज सभ्य है तो उस में हत्या केलिये भी कोई स्थान नहीं है। जब हत्या नहीं होगी तो फांसी की […] Read more » media terrorism आतंकवाद मीडिया समाज