समाज क्यों बदहाल एवं उपेक्षित है बचपन? November 19, 2018 / November 19, 2018 by ललित गर्ग | Leave a Comment ललित गर्ग- संपूर्ण विश्व में ‘सार्वभौमिक बाल दिवस’ 20 नवंबर को मनाया गया। उल्लेखनीय है कि इस दिवस की स्थापना वर्ष 1954 में हुई थी। बच्चों के अधिकारों के प्रति जागरूकता तथा बच्चों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए यह दिवस मनाया जाता है।बच्चों का मौलिक अधिकार उन्हें प्रदान करना इस दिवस का प्रमुख […] Read more » कागज क्यों बदहाल एवं उपेक्षित है बचपन? पढ़ाई-लिखाई प्लास्टिक राजनीतिज्ञ लोहा शीशी समाज सरकार
व्यंग्य अजीब है न लोकतंत्र का ई त्यौहार October 26, 2018 / October 26, 2018 by अभिलेख यादव | Leave a Comment अंकित कुंवर लोकतंत्र का बरसों पुराना त्यौहार नजदीक आ रहा है। यह त्यौहार सियासत के गलियारे में शामिल होने के लिए है। एक मौका है जिसपर चौका लगाना सबकी चाहत। अब तो समझो हम का कहना चाह रहें हैं। ई त्यौहार का नामकरण सोच समझकर फिक्स हुआ है। ‘चुनाव’ नाम है इसका। इस नाम का […] Read more » अजीब है न लोकतंत्र का ई त्यौहार कागज फोटो लोकतंत्र सोशल मीडिया
गजल एक गजल -सिगरेट की बदनसीबी August 4, 2018 / August 4, 2018 by आर के रस्तोगी | 7 Comments on एक गजल -सिगरेट की बदनसीबी खुद को जलाकर,दूसरो की जिन्दगी जलाती हूँ मैं बुझ जाती है माचिस,जलकर राख हो जाती हूँ मैं पीकर फेक देते है रास्ते में,इस कदर सब मुझको चलते फिरते हर मुसाफिर की ठोकरे खाती हूँ मैं करते है वातावरण को दूषित पीकर जो मुझे लेते है लुत्फ़ जिन्दगी का बदनाम होती हूँ मैं लिखी है वैधानिक […] Read more » एक अजीब रिश्ता पाती हूँ मैं एक गजल -सिगरेट की बदनसीबी कागज तम्बाकू मैं उनकी सगी बहन हूँ
कविता ‘मुल्क हिंदुस्तान हूँ….’ May 9, 2018 by कुलदीप प्रजापति | Leave a Comment कुलदीप विद्यार्थी झाड़ियों पर वस्त्र, लोहित देह से हेरान हूँ, कल मैं कब्रिस्तान था औ’ आज मैं शमशान हूँ। कौनसी वहसत भरी हैं आपके मस्तिष्क में, पाँव पर कल ही चली मैं, एक नन्हीं जान हूँ। नोच लूँगा मैं हवस में बाग की कलियाँ सभी, मत कहो इंसान मुझको, मैं तो बस शैतान हूँ। हैं […] Read more » 'मुल्क ईमान कागज कुंठित व लुंठित झाड़ियों हिंदुस्तान
कविता दर्दो को कागजो पर लिखता रहा April 19, 2018 by आर के रस्तोगी | 2 Comments on दर्दो को कागजो पर लिखता रहा जिन्दगी के दर्दो को,कागजो पर लिखता रहा मै बेचैन था इसलिए सारी रात जगता रहा जिन्दगी के दर्दो को,सबसे छिपाता रहा कोई पढ़ न ले,लिख कर मिटाता रहा मेरे दामन में खुशिया कम् थी,दर्द बेसुमार थे खुशियों को बाँट कर,अपने दर्दो को मिटाता रहा मै खुशियों को ढूढता रहा,गमो के बीच रहकर वे खुशियों को […] Read more » Featured कागज गिरगिट ज़िन्दगी दर्दो लिखता
मीडिया विविधा साहित्य प्रकाशन बनाम सोशल मीडिया का प्रभाव January 1, 2018 by अर्पण जैन "अविचल" | Leave a Comment डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’ एक दौर था, जब साहित्य प्रकाशन के लिए रचनाकार प्रकाशकों के दर पर अपने सृजन के साथ जाते थे या फिर प्रकाशक प्रतिभाओं को ढूँढने के लिए हिन्दुस्तान की सड़के नापते थे, परंतु विगत एक दशक से भाषा की उन्नति और प्रतिभा की खोज का सरलीकरण सोशल मीडिया के माध्यम से […] Read more » Featured Impact of literature publication versus social media अखबार कल के गर्भ में मीडिया की भूमिका: कागज जानें कितना नुकसान होता है अख़बार के कागज के बनने पर …. भारत के गांवों में इंटरनेट की पहुंच भारत में इंटरनेट की पहुंच मीडिया की भूमिका वर्तमान में सोशल मीडिया का प्रभाव: सोशल मीडिया सोशल मीडिया का प्रसार सोशल मीडिया का प्रसार और भारत में इंटरनेट की पहुंच