खान-पान मिलावट: मुंह में नहीं, ज़मीर में घुला ज़हर June 9, 2025 / June 9, 2025 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment मिलावट अब केवल खाने-पीने तक सीमित नहीं रही, यह हमारे सोच, संबंध, और व्यवस्था तक में घुल चुकी है। मूँगफली में पत्थर हो या दूध में डिटर्जेंट, यह मुनाफाखोरी की संस्कृति का विस्तार है। उपभोक्ता की चुप्पी, सरकार की ढील और समाज की “चलता है” मानसिकता ने इसे स्वीकार्य बना दिया है। मिलावट एक नैतिक […] Read more » Adulteration: Poison mixed in conscience मिलावट
विश्ववार्ता लाचार तंत्र से जानलेवा होती मिलावट November 26, 2019 / November 26, 2019 by ललित गर्ग | Leave a Comment – ललित गर्ग – कह तो सभी यही रहे हैं–”बाकी सब झूठ है, सच केवल रोटी है।“ लेकिन इस बड़े सच रोटी यानी पेट भरने की खाद्य-सामग्री को मिलावट के कारण दूषित एवं जानलेवा कर दिया गया है। देश में खाद्य पदार्थों में मिलावट मुनाफाखोरी का सबसे आसान जरिया बन गई है। खाने-पीने की चीजें […] Read more » adulteration in food खाद्य पदार्थों में मिलावट मिलावट
समाज स्वास्थ्य-योग जीवन से खिलवाड़ करती मिलावट की त्रासदी December 23, 2017 by ललित गर्ग | Leave a Comment ललित गर्ग मिलावट करने वालों को न तो कानून का भय है और न आम आदमी की जान की परवाह है। दुखद एवं विडम्बनापूर्ण तो ये स्थितियां हंै जिनमें खाद्य वस्तुओं में मिलावट धडल्ले से हो रही है और सरकारी एजेन्सियां इसके लाइसैंस भी आंख मूंदकर बांट रही है। जिन सरकारी विभागों पर खाद्य पदार्थों […] Read more » Adulteration Adulteration tragedy Featured जीवन से खिलवाड़ करती मिलावट की त्रासदी मिलावट मिलावट की त्रासदी
व्यंग्य साहित्य मिलावट का व्याकरण March 4, 2017 by वीरेन्द्र परमार | Leave a Comment देश के प्रतिष्ठित नक्कालों, कालाबाजारियों और मिलावट विशेषज्ञों को इसका सदस्य बनाया जाएगा I ये सदस्य विभिन्न वस्तुओं की नक़ल बनाने एवं मिलावट की आधुनिक प्रविधि के संबंध में बहुमूल्य सुझाव देंगे I हमारा शोध संस्थान डुप्लीकेट चैनल नामक एक टी वी चैनल आरम्भ करेगा जिसके माध्यम से अलंकृत शैली और काव्यमय – अनुप्रासयुक्त शब्दावली में विज्ञापनबालाओं द्वारा उत्पादों का विज्ञापन किया जाएगा I Read more » मिलावट मिलावट का व्याकरण
व्यंग्य व्यंग्य बाण : मिलावट के लिए खेद है June 13, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment –विजय कुमार- गरमी में इन्सान तो क्या, पेड़–पौधे और पशु–पक्षियों का भी बुरा हाल हो जाता है। शर्मा जी भी इसके अपवाद नहीं हैं। कल सुबह पार्क में आये, तो हाथ के अखबार को हिलाते हुए जोर–जोर से चिल्ला रहे थे, ‘‘देखो…देखो…। क्या जमाना आ गया है ?’’ इतना कहकर वे जोर–जोर से हांफने लगे। […] Read more » Featured मिलावट मिलावट के लिए खेद है व्यंग्य
विविधा मिलावट के इस दौर में असली बचा न कोय October 15, 2011 / December 5, 2011 by डॉ0 शशि तिवारी | Leave a Comment डॉ. शशि तिवारी व्यक्ति की पहचान पहले उसके नाम से बाद में उसके कार्यों से होती है। कार्यों के गुण-दोषों के ही आधार पर लम्बे समय के बाद उसकी छबि बनती एवं असावधानी से बिगड़ती भी रहती है। अर्थात् आदमी को हर पल सजग रहने की आवश्यकता रहती है। वही संस्थाओं की छवि उसकी विचारधारा […] Read more » sophistication मिलावट