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आर्थिकी विविधा

‘मेरा भारत महान’, जहाँका ‘जनजन बेईमान’

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इस देश के रग-रग में भ्रष्टता है, चाहे वो नोट बंदी में चीखे या न चीखे। मुझे बस एक ही ईमानदार दिखाई दे रहा है। इस कुरुक्षेत्र में वो प्रधान सेवक है, वो बर्बरीक है, जिसने अपने ही हाथों अपनी गर्दन काटकर (भ्रष्टाचार मुक्त करने का संकल्प लेकर) खूब तमाशा देख व दिखा रहा है। उस बर्बरीक ने सबको नंगा करके रख दिया है । अपनों को,गैरों को, मुझको, आपको और सबको।हम यदि उसको सहयोग ना कर सके तो कमसे कम हो-हल्ला करने वालों को रोकने-टोकने वा जनता में उसके सही मैसेज को पहुंचाने का काम तो कर ही सकते हैं।

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