व्यंग्य व्यंग्य: हैसियत नजरबट्टू की अन्यथा सड़के ही सोने की होती November 15, 2010 / December 19, 2011 by रामस्वरूप रावतसरे | 1 Comment on व्यंग्य: हैसियत नजरबट्टू की अन्यथा सड़के ही सोने की होती एक बार किसी कारण वश मुझे नगर परिषद जाना पडा । वहां कुछ लोग बैठे थे तभी एक सज्जन आये ,और उन्होने पहले से बैठे अपने परिचित एवं स्वजातीय एक सज्जन से पूछा ’’आज यहां कैसे बैठे हो?’’पहले से बैठे सज्जन ने कहा कि ’’वे अपने मौहल्ले की सडक के निर्माण का प्रस्ताव लेकर आये […] Read more » golden roads in India व्यंग्य सड़के ही सोने की होती हैसियत नजरबट्टू की
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य : हैसियत नजरबट्टू की November 12, 2010 / December 20, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on हास्य-व्यंग्य : हैसियत नजरबट्टू की बैचेनियां समेटकर सारे जहान की,जब कुछ न बन सका तो मुझे कवि बना दिया।वैसे तो यह हर कवि का आत्मकथ्य है,जो जिंदगी के दंगल में चौतरफा शिकस्त हासिल करता है,वो जुझारू व्यक्ति अचानक कविता का मुकुट पहनकर साहित्य के सिंहासन पर उछलकर चढ़ जाता है ठीक वैसे ही जैसे कि शोले फिल्म में वीरू निराशा […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य हास्य व्यंग्य : षष्टिपूर्ति बनाम शोक सभा November 9, 2010 / December 20, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on हास्य व्यंग्य : षष्टिपूर्ति बनाम शोक सभा – पं. सुरेश नीरव और साहब बेचारे प्रेमीजी आखिर बाकायदा सठिया ही गए। मतलब ये हुआ कि जीवन के पूरे साठ पतझड़ झेलकर भी वे अभी तक नाटआउट हैं। लोग खुश हैं कि इतनी दरिद्रता भोगने के बाद भी प्रेमीजी मरे नहीं हैं। वे कुछ दिन और कष्ट भोगें उनकी यही अखंड अमंगल कामनाएं हैं। […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ महिला शौचालय का लोकार्पण October 22, 2010 / December 20, 2011 by अशोक गौतम | 4 Comments on व्यंग्य/ महिला शौचालय का लोकार्पण -अशोक गौतम शहर के मेन बस स्टैंड के पास बड़े दिनों से महिला शौचालय बनकर तैयार था पर कमेटी के प्रधान बड़ी दौड़ धूप के बाद भी उस शौचालय के लोकार्पण के लिए मंत्री जी से वक्त नहीं ले पा रहे थे और महिला यात्री थे कि पुरूष शौचालय में जाने के लिए विवश थे। […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ मैं तो कुतिया बॉस की October 12, 2010 / December 21, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/ मैं तो कुतिया बॉस की -अशोक गौतम वे आते ही मेरे गले लग फूट- फूट कर रोने लगे। ऐसे तो कभी लंबे प्रवास से लौट आने के बाद भी मेरी पत्नी जवानी के दिनों में मेरे गले लग कर भी नहीं रोई। हमेशा उसके मन में विरह को देखने के लिए मैं ही विरह में तड़पता रहा। पता नहीं उसमें […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य / सत मत छोडों शूरमा, सत छौडया पत जाय October 9, 2010 / December 21, 2011 by रामस्वरूप रावतसरे | 5 Comments on व्यंग्य / सत मत छोडों शूरमा, सत छौडया पत जाय -रामस्वरूप रावतसरे तनसुख ने घर की बिगड रही हालत को सुधारने के लिये कहां कहां की खाक नहीं छानमारी। किस किस की चौखट पर नाक नहीं रगडी, लेकिन दरिद्र नारायण उसके यहां पर इस प्रकार बिराजे है कि बाहर जाने का नाम ही नहीं ले रहे है। हां, वह इस दरिद्रनारायण से पीछा छुडाने के […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ इक्कीसवीं सदी के लेटेस्ट प्रेम October 8, 2010 / December 21, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/ इक्कीसवीं सदी के लेटेस्ट प्रेम -डॉ. अशोक गौतम वे सज धज कर यों निकले थे कि मानो किसी फैशन शो में भाग लेने जा रहे हों या फिर ससुराल। बूढ़े घोड़े को यों सजे धजे देखा तो कलेजा मुंह को आ गया। बेचारों के कंधे कोट का भार उठाने में पूरी तरह असफल थे इसीलिए वे खुद को ही कोट […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ चल वसंत घर आपणे…!!! October 8, 2010 / December 21, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/ चल वसंत घर आपणे…!!! -डॉ. अशोक गौतम वसंत पेड़ों की फुनगियों, पौधों की टहनियों पर से उतरा और लोगों के बीच आ धमका। सोचा, चलो लोगों से थोड़ी गप शप हो जाए। वे चार छोकरे मुहल्ले के मुहाने पर बैठे हुए थे। वसंत के आने पर भी उदास से। वे चारों डिग्री धारक थे। दो इंजीनियरिंग में तो दो […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ गॉड फादर नियरे राखिए…. September 11, 2010 / December 22, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/ गॉड फादर नियरे राखिए…. -अशोक गौतम फिर एक और मोर्चे पर से असफल हो लौटे बीवी को मुंह बताने को मन ही नहीं कर रहा था। क्या मुंह बताता बीवी को! हर रोज वह भी मेरा हारा हुआ थोबड़ा देख देख कर थक चुकी थी। सो एक मन किया कि रास्ते में पड़ने वाले कमेटी के पानी के टैंक […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ लोकार्पणों के दौर में September 11, 2010 / December 22, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम शहर के मेन बस स्टैंड के पास बड़े दिनों से महिला षौचालय बनकर तैयार था पर कमेटी के प्रधान बड़ी दौड़ धूप के बाद भी उस षौचालय के लोकार्पण के लिए मंत्री जी से वक्त नहीं ले पा रहे थे और महिला यात्री थे कि पुरूष शौचालय में जाने के लिए विवश थे। […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/पुलिस नाक पर भगवान August 28, 2010 / December 22, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/पुलिस नाक पर भगवान -अशोक गौतम ज्यों ही अखबार में छपा कि पुलिस लेन के लक्ष्मीनारायण के मंदिर में पुलिस की नाक तले चोरी हो गई तो पुलिस को न चाहते हुए भी हरकत में आना पड़ा। हांलाकि एक सयाने ने अखबार को परे फेंकते कहा भी, ‘यारो! डरने की कोई बात नहीं। मजे से सोए रहो। सरकार यहां […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/एक जूता तो तबीयत से उछालो प्रभु! August 26, 2010 / December 22, 2011 by अशोक गौतम | 3 Comments on व्यंग्य/एक जूता तो तबीयत से उछालो प्रभु! -अशोक गौतम कल मैं जब विधानसभा से तोड़ फोड़ कर फटी सदरी के कालर खड़े किए शान से घर आ रहा था कि अचानक नारायण मिले, मुस्कुराते हुए पूछा, ‘और मुरारी लाल! क्या हाल है? कैसी चल रही है राजनीति? मजे लगे हैं न? पांचों उंगलियां घी में और सिर कड़ाही में होगा?’ कसम से, […] Read more » vyangya व्यंग्य