कविता जो पल तेरे साथ बिताये,वे पल आज भी याद है July 16, 2018 / July 16, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment आर के रस्तोगी जो पल तेरे साथ बिताये,वे पल आज भी याद है बसर कर लूंगी जिन्दगी अब कोई नहीं फरियाद है भले ही तुम मेरे पास नहीं,वो पल यादो के तो मेरे पास है अब कोई गिला शिकवा न होगा अब कोई नहीं फरियाद है धीरे से आना,बदन पर हाथ फिराना सब कुछ मुझे […] Read more » आंखों आज भी मुझे सब कुछ याद है जो पल तेरे साथ बिताये तुम्हारे हाथो से खाना खिलाना वे पल आज भी याद है शहर
राजनीति अस्तित्व में आते स्मार्ट शहर February 7, 2016 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment देश में स्मार्ट शहर गति पकड़ने वाले हैं। फिलहाल 20 शहरों को स्मार्ट शहर के रूप में विकसित करने का लक्ष्य सामने आ गया है। संघ शासित दिल्ली समेत 11 राज्यों से इन शहरों को चुना गया है। ये शहर नई दिल्ली,लुधियाना,जयपुर,उदयपुर,अहमदाबाद,सूरत,इंदौर,भोपाल,जबलपुर,पुणे,सोलापुर,वेलगम,दावणगेरे,चौन्नई,कोयम्बटूर,कोच्चि,काकीनाड़ा,विशाखापट्टनम,भुवनेश्वर और गुवाहाटी हैं। उत्तर प्रदेश ,पश्चिम बंगाल,बिहार जैसे बड़े राज्यों का इस सूचि […] Read more » अस्तित्व में आते स्मार्ट शहर शहर
कला-संस्कृति बदलते शहर में बस, नाम रह जाएगा October 21, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment कुदसिया बाग नलिन चौहान दिल्ली की ऐतिहासिक विरासतों को सहेजने की ज़िम्मेदारी भले ही उत्तरी दिल्ली के हिस्से ज्यादा नहीं आती हो, लेकिन बहुत कम लोगों को ये पता है कि, यह शहर का सबसे अधिक दिलचस्प इलाका है जो पग-पग पर स्वप्नदर्शी पुरातन स्थलों से भरा हुआ है। इस शहर में पुरानी दिल्ली के […] Read more » कुदसिया बाग नाम रह जाएगा बदलते शहर में बस शहर
कविता गांव से शहर June 17, 2014 / October 8, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- नदिया के तीरे पर्वत की छांव, घाटी के आँचल मे मेरा वो गांव। बस्ती वहां एक भोली भाली, उसमे घर एक ख़ाली ख़ाली। बचपन बीता नदी किनारे, पेड़ों की छांव में खेले खिलौने। कुछ पेड़ कटे कुछ नदियां सूखीं, विकास की गति वहां न पहुंची। छूट चला इस गांव से नाता, कोलाहल से […] Read more » गांव गांव कविता गांव से शहर शहर शहर कविता हिन्दी कविता
कविता शहर April 16, 2013 / April 16, 2013 by राघवेन्द्र कुमार 'राघव' | Leave a Comment राघवेन्द्र कुमार “राघव” जब गाय मिले चौराहों पर कुत्ता बैठा हो कारों में । तब ये आप समझ जाना कोई शहर आ गया । टकराकर तुमसे जवां मर्द बोले क्या दिखता तुम्हें नहीं । तभी वृद्ध दादा जी बोलें सॉरी बेटे दिखा नहीं । बस इतने से ही जान लेना कोई शहर आ गया ।। […] Read more » शहर
विविधा सिकुड़ती धरती, पसरता शहर May 28, 2010 / December 23, 2011 by सतीश सिंह | Leave a Comment -सतीश सिंह तेज शहरीकरण की आपाधापी में इंसान उन बुनियादी तथ्यों को भूल चुका है जो प्रकृति द्वारा प्रदत्ता संसाधनों की हदों से वास्ता रखते हैं। जमीन इंसान की तरह अपनी आबादी को नहीं बढ़ा सकती। इस वास्तविकता को इंसान समझने के लिए आज भी तैयार नहीं है। छोटे से लेकर बड़े शहरों में दनादन […] Read more » city शहर