कविता विविधा
सात फेरे – आठ वचन
/ by कुलदीप प्रजापति
-कुलदीप प्रजापति- बांध रही हूँ जीवन को रिश्तो के पक्के धागों से, प्रियतम वचन निभाना अपने मुकर न जाना वादों से, अंजुरी से अंजुरी थाम कर फेरा प्रथम मैं लेती हूँ, बाएं अंग में आऊँ उससे पहले ये कह देती हूँ, दान, धर्म, तीरथ,कोई पुण्य मेरे सात करोगे तुम, वचन अगर मंजूर हैं फिर दूजे […]
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