कविता विविधा हमें पार जाना ही है April 26, 2015 / April 26, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -मनीष सिंह- नाव भँवरों की बाहों में है फंस गयी , उस पार पर हमको जाना ही है। घिर गए हैं तूफ़ान में गर तो क्या , पार पाने जा जज़्बा दिखाना ही है। अँधियारा है घना बुझ रहे हैं दिये , हैं खड़ी मुश्किलें सामने मुँह किये। रास्तों में जो काँटे पड़े हों […] Read more » Featured कविता जीवन कविता हमें पार जाना ही है
कविता युग देखा है June 21, 2014 by बीनू भटनागर | 2 Comments on युग देखा है -बीनू भटनागर- एक ही जीवन में हमने, एक युग पूरा देखा है। बड़े बड़े आंगन चौबारों को, फ्लैटों मे सिमटते देखा है। घर के बग़ीचे सिमट गये हैं, बाल्कनी में अब तो, हमने तो पौधों को अब, छत पर उगते भी देखा है। खुले आंगन और छत पर, मूंज की खाटों पे बिस्तर, पलंग निवाड़ […] Read more » कविता जीवन कविता युग देखा है हिन्दी कविता
कविता तितली सी चंचलता June 19, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -लक्ष्मी जायसवाल- तितली सी चंचलता तितली सा चंचल बन मन मेरा उड़ना चाहता है। नन्हीं सी तितली रानी देख तुम्हें मन मेरा हर्षाता है। उड़कर तेरी तरह मन मेरा फूलों पर मंडराना चाहता है। डाल-डाल पर बैठकर यौवन मेरा इठलाना चाहता है। रंग-बिरंगे पंख हों मेरे दिल यही मांगना चाहता है। कोमल सी काया चंचल […] Read more » कविता जीवन कविता तितली सी चंचलता हिन्दी कविता
कविता हम नदी के दो किनारे May 22, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- नदी के दो किनारों की तरह, मै और तुम साथ साथ हैं। हमारे बीच ये नदी तो, प्रवाह है, जीवन और विश्वास है। हमारे बीच इसका होना, हमें साथ रखता है, जोड़ता है, न कि दूर रखता है। मानो कि ये नदी हो ही नहीं, तो क्या किनारे होंगे! नदी पहाड़ पर हो […] Read more » कविता जीवन कविता