कविता जब तक पूर्ण नहीं हो पाते ! November 30, 2018 / November 30, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | 1 Comment on जब तक पूर्ण नहीं हो पाते ! (मधुगीति १८११२८ ब) जब तक पूर्ण नहीं हो पाते, सृष्टि समझ कहाँ हम पाते; अपना बोध मात्र छितराते, उनका भाव कहाँ लख पाते ! हर कण सुन्दरता ना लखते, उनके गुण पर ग़ौर न करते; संग आनन्द लिए ना नचते, उनको उनका कहाँ समझते ! हैं गण शिव के गौण लखाते, शून्य हिये बिन ब्रह्म […] Read more » जब तक पूर्ण नहीं हो पाते ! दोष द्रष्टि शिव
कविता नाम हल्दीराम,हल्दी नहीं May 2, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment हल्दीराम हम गये,न हल्दी मिली न मिले राम हमने पूछा काउंटर से,कहाँ है तुम्हारे हल्दीराम ? कहाँ है हल्दीराम,जरा हल्दी का सैंपल दिखाओ एक किलो हल्दी लेनी है,उसका हमे भाव बताओ ? कह रस्तोगी कविराय,लोगो को क्यों गुमराह करते रखा है नाम हल्दीराम,हल्दी ही नहीं तुम रखते हल्दीराम की दूकान पर,लगी थी बहुत बड़ी भीड़ […] Read more » Featured काउंटर चुडेल द्रष्टि युवक रस्तोगी कविराय हल्दीराम
दोहे धेनु चरन न तृणउ पात ! April 26, 2018 / April 27, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment धेनु चरन न तृणउ पात, त्रास अति रहत; राजा न राज करउ पात, दुष्ट द्रुत फिरत ! बहु कष्ट पात लोक, त्रिलोकी कूँ हैं वे तकत; शोषण औ अनाचारी प्रवृति, ना है जग थमत ! ना कर्म करनौ वे हैं चहत, धर्म ना चलत; वे लूटनों लपकनों मात्र, गुप्त मन चहत ! झकझोरि डारौ सृष्टि, द्रष्टि बदलौ प्रभु अब; भरि परा-द्रष्टि जग में, परा-भक्ति भरौ तव ! विचरहिं यथायथ सबहि विश्व, तथागत सुभग; मधु क्षरा पाएँ सुहृद ‘मधु’, करि देउ प्रणिपात ! रचयिता: गोपाल बघेल ‘मधु’ Read more » Featured डारौ सृष्टि त्रिलोकी द्रष्टि मधु क्षरा राजा