लेख हिंदी साहित्य में बाजारवाद: चुनौतियां और समाधान June 7, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on हिंदी साहित्य में बाजारवाद: चुनौतियां और समाधान -डॉ. भगवान गव्हाडे- हिंदी साहित्येतिहास के हर काल में बाजार का वर्णन किसी न किसी रूप में होता रहा है । कबीर, सूर, तुलसी, मीरा आदि अनेक संत कवियों के काव्य में भी बाजार की उपस्थिति दर्ज की गई है । बाजार हमारी आवश्यकताओं की परिपूर्ति करता था क्योंकि बाजार और मेलों के साथ आनंद […] Read more » हिंदी साहित्य हिन्दी हिन्दी चुनौती
साहित्य हिन्दी के कालजयी कवियों की रचनाओं का डॉक्युमेंटेशन August 20, 2011 / December 7, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment गौतम चौधरी कला व्यक्ति को व्यक्ति बनाता है। कला के बिना व्यक्ति अधूरा है। कला वह मार्ग है जिससे व्यक्ति परम सत्ता तक को आत्मसात कर लेता है। ऐसी उक्तियां आम बोलचाल में कहने सुनने को मिल जाती है। लेकिन इसका साक्षात दर्शन भी हो सकता है। विगत दिनों मैं बडोदरा के प्रवास पर था। […] Read more » hindi हिन्दी
सिनेमा हिन्दुस्तान में हिन्दी के प्रचार प्रसार का प्रभावी एवं सशक्त माध्यम – बॉलीवुड एवं दूरदर्शन August 10, 2011 / December 7, 2011 by उमेश कुमार यादव | 4 Comments on हिन्दुस्तान में हिन्दी के प्रचार प्रसार का प्रभावी एवं सशक्त माध्यम – बॉलीवुड एवं दूरदर्शन उमेश कुमार यादव आज के तारीख में हिन्दी फिल्म इतनी लोकप्रिय हो चुकी है कि चाहे जो भी भाषा-भाषी हो, हिन्दी फिल्म अवश्य देखते हैं । उनके हिट गानें अवश्य गुनगुनाते हैं, भले ही उसका अर्थ नहीं पता हो । क्योंकि आज लोगों को लगने लगा है कि यदि नाम कमाना है या फिर लोकप्रिय […] Read more » hindi हिन्दी
आलोचना हिन्दी साहित्यालोचना का नीरा राडिया पंथ December 14, 2010 / December 18, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 1 Comment on हिन्दी साहित्यालोचना का नीरा राडिया पंथ जगदीश्वर चतुर्वेदी ‘आलोचना’पत्रिका ने हाल के बरसों में किसी गंभीर साहित्यिक बहस को जन्म नहीं दिया है। और न हिन्दी में किसी आलोचक को प्रतिष्ठित ही किया है सिवाय संपादक नामवर सिंह के। फिर भी हिन्दी में उसे आलोचना की महान पत्रिका कहते हैं। सोचने वाली बात यह है यह पत्रिका भी अब प्रायोजन और […] Read more » hindi हिन्दी
आलोचना नागार्जुन जन्मशती पर विशेष-हिन्दी में कीर्त्ति फल के उपभोक्ता October 9, 2010 / December 21, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 1 Comment on नागार्जुन जन्मशती पर विशेष-हिन्दी में कीर्त्ति फल के उपभोक्ता -जगदीश्वर चतुर्वेदी नागार्जुन पर जो लोग शताब्दी वर्ष में माला चढ़ा रहे हैं। व्याख्यान झाड़ रहे हैं। नागार्जुन के बारे में तरह-तरह का ज्ञान बांट रहे हैं ऐसे हिन्दी में 20 से ज्यादा लेखक नहीं हैं। ये लेखक कम साहित्य के कर्मकाण्डी ज्यादा लगते हैं। आप इनमें से किसी को भी फोन कीजिए ये लोग […] Read more » hindi नागार्जुन हिन्दी
साहित्य राजभाषा हिन्दी और संवैधानिक सीमाएं September 19, 2010 / December 22, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment -हरिकृष्ण निगम क्या हमारे देश के करोड़ों हिंदी प्रेमियों को इस बात का अहसास है कि संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत हिंदी को यद्यपि संघ की राजभाषा का दर्जा मिला है, पर उसके ऊपर जो अंकुश प्रारंभ से ही लगाए गए हैं वे इसके सर्वांगीण विकास में आज भी रोड़ा बने हुए हैं। संविधान का यह […] Read more » hindi हिन्दी
विविधा माथे की बिन्दी- हिन्दी (संविधान, संसद और हम) May 21, 2010 / December 23, 2011 by रत्नेश त्रिपाठी | 1 Comment on माथे की बिन्दी- हिन्दी (संविधान, संसद और हम) -रत्नेश त्रिपाठी एक प्रतिष्ठित पत्रिका में हिन्दी के ऊपर देश के कुछ बुद्धिजीवियों का विचार पढ़ा, आश्चर्य तब अधिक हुआ जब कुछ युवाओं के साथ अन्य तथाकथित बुद्धिजीवियों नें हिन्दी की अंग्रेजी की पैरवी की। हम इस स्थिति के लिए दोष किसे दें। संविधान को, संसद को, सरकार को, लोक प्रशासकों को या खुद को, […] Read more » hindi हिन्दी
लेख जारी है हिन्दी की सहजता को नष्ट करने की साजिश – चिन्मय मिश्र February 14, 2009 / December 24, 2011 by चिन्मय मिश्र | 3 Comments on जारी है हिन्दी की सहजता को नष्ट करने की साजिश – चिन्मय मिश्र यह लेख उस प्रवृत्ति पर चोट है जो कि हिंदी को एक दोयम दर्जे की नई भाषा मानती है और हिंदी की शब्दावली विकसित करने के लिए अंग्रेजी को आधार बनाना चाहती है। Read more » hindi हिन्दी