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राजनीति

मेघालय के न्यायाधीश का साहसिक निर्णय

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राकेश कुमार आर्य( पंथनिरपेक्ष राष्ट्र नीति ही देश का धर्म होती है । इस धर्म से हीन राष्ट्र मृतक के समान हैं । हिंदुत्व इसी राष्ट्र नीति का पोषक तत्व है । हिन्दुत्व के विषय में जब दो न्यायाधीश एक भाषा बोल रहे हों तो सरकार को भी इस भाषा के मर्म को समझना चाहिए)  […]

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गजल

 यकीं का यूँ बारबां टूटना  

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डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ यकीं का यूँ बारबां टूटना आबो-हवा ख़राब है मरसिम निभाता रहूँगा यही मिरा जवाब है मुनाफ़िक़ों की भीड़ में कुछ नया न मिलेगा ग़ैरतमन्दों में नाम गिना जाए यही ख़्वाब है दफ़्तरों की खाक छानी बाज़ारों में लुटा पिटा रिवायतों में फँसा ज़िंदगी का यही हिसाब है हार कर जुदा, जीत कर भी कोई तड़पता रहा नुमाइशी हाथों से फूट गया झूँठ का हबाब है धड़कता है दिल सोच के हँस लेता हूँ कई बार  तब्दील हो गया शहर मुर्दों में जीना अज़ाब है ये लहू, ये जख़्म, ये आह, फिर चीखो-मातम तू हुआ न मिरा पल भर इंसानियत सराब है  फ़िकरों की सहूलियत में आदमियत तबाह हुई  पता हुआ ‘राहत’ जहाँ का यही लुब्बे-लुबाब है  

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