विविधा मूल्यपरक जीवन का अभाव July 3, 2010 / December 23, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment – राजीव मिश्र आज जिंदगी समस्याओं से संकुल बन रही है, क्योंकि भौतिकता प्रधान एवं अध्यात्मिकता गौण हो रही है। आवेश, उत्तेजना एवं चंचलता से जीवन की धारा बदल गई है, इसलिए मन में अशांति बढ़ रही है। इसी कारण सृजन की नवीन दिशाओं का उद्धाटन नहीं हो पा रहा है। साधारणतः हम कार्य तनाव […] Read more » life मूल्यपरक जीवन
समाज ज़िन्दगी से भागते लोग May 24, 2010 / December 23, 2011 by फ़िरदौस ख़ान | 7 Comments on ज़िन्दगी से भागते लोग -फ़िरदौस ख़ान यह एक विडंबना ही है कि ‘जीवेम शरद् शतम्’ यानी हम सौ साल जिएं, इसकी कामना करने वाले समाज में मृत्यु को अंगीकार करने की आत्महंता प्रवृत्ति बढ़ रही है। आत्महत्या करने या सामूहिक आत्महत्या करने की दिल दहला देने वाली घटनाएं आए दिन देखने व सुनने को मिल रही हैं। कोई परीक्षा […] Read more » life ज़िन्दगी
कविता जीवन की उलझी राहों में ……… July 26, 2009 / December 27, 2011 by जयराम 'विप्लव' | 1 Comment on जीवन की उलझी राहों में ……… ख़ुद से दूर रहना चाहता हूँ , अपने हीं अक्स से घबराता हूँ , प्यार किसी से करता हूँ , क्या प्यार उसी से करता हूँ ? Read more » life जीवन